पराली का समाधान करने वाली मशीन      Publish Date : 01/10/2024

                    पराली का समाधान करने वाली मशीन

                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृषाणु

पराली किसानों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या के तौर पर देखी जाने लगी है, लेकिन अब पराली किसानों के लिए समस्या नहीं बल्कि एक अतिरिक्त आमदनी का स्रोत भी बन चुकी है। बहुत से ऐसे कृषि यंत्र आ रहे हैं, जिनकी मदद से पराली को गट्ठर बनाकर बेचा जा सकता है। ऐसा ही एक कृषि यंत्र है रैकर, जो धान की फसल कटने के बाद पराली को लाइनों में एकत्र कर देता है।

                                                       

कृषि एक्सपर्ट सरदार पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर ने बताया कि रैकर, पराली इकट्ठा करने वाला बेहद उपयोगी कृषि यंत्र होता है. जिसका उपयोग खेतों में कटाई के बाद बचे हुए फसल अवशेष (पराली) को एकत्र करने के लिए किया जाता है। यह यंत्र किसानों के लिए बेहद ही उपयोगी सिद्व होता है। रैकर में लगे हुए दांतों या टाइन की मदद से पराली को जमीन से उठाया जाता है और उसे एक लाइन में एकत्र कर दिया जाता है। लाइनों में एकत्र हुई पराली को बेलर के माध्यम से उठाया जाता है।

डॉ0 सेगर ने आगे बताया कि रैकर कई प्रकार के होते हैं, जैसे कि रोटरी रैकर और रेक रैकर. हर प्रकार के रैकर की अपनी अलग अलग विशेषताएं होती हैं। रैकर की मदद से पराली को आसानी से एकत्र किया जा सकता है। इससे खेत को साफ-सुथरा रखने में मदद मिलती है। पराली को जलाने से प्रदूषण होता है। रैकर की मदद से पराली को जलाने के बजाय अन्य तरीकों से इसका उपयोग किया जा सकता है। पराली को खाद बनाने या बायोगैस बनाने आदि कार्यों में। पराली को खेत में ही छोड़ देने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है तो वहीं पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम करने में मदद मिलती है।

                                                   

अगर आपका खेत समतल है तो रैकर आसानी से काम कर सकता है, लेकिन अगर खेत उबड़-खाबड़ है, तो रैकर को काम करने में मुश्किल होगी। आमतौर पर, एक घंटे में एक रैकर 8 से 10 एकड़ तक के क्षेत्रफल की पराली को एकत्र कर सकता है। रैकर को चलाने के लिए 25 से 30 हॉर्स पावर वाले ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है।

बेलर पहले पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता है, फिर, यह कटी हुई पराली को एक चौम्बर में एकत्र कर लेता है। एक निश्चित मात्रा में पराली एकत्र करने के बाद, बेलर उसे एक मजबूत रस्सी या तार से बांधकर उसका एक गठ्ठा बना देता है। अंत में, यह गठ्ठा चैम्बर से बाहर निकाल दिया जाता है। बेलर चलाने से पहले रैकर का इस्तेमाल किया जाता है।

डॉ0 सेंगर ने बताया कि बेलर या रैकर खरीदने पर सरकार द्वारा 50 से 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है। बेलर की कीमत करीब 17 लाख रुपए और रैकर की कीमत 4 लाख रुपए है। हाांकि यह अलग-अलग कंपनी और अलग-अलग क्षमता के हिसाब से इनके रेट कम और ज्यादा भी हो सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।