आलू की बुआई करने की तकनीक, कम मेहनत से होगी अच्छी आमदनी      Publish Date : 30/09/2024

आलू की बुआई करने की तकनीक, कम मेहनत से होगी अच्छी आमदनी

                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

उत्तर प्रदेश में सितंबर का महीना आलू की फसल की बुआई करने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। ऐसे में किसान इस समय आलू की खेती कर अच्छी कमाई कर सकते हैं। साथ ही किसान आलू के उत्पादन को बढ़ाने के लिए मिनी मिनी स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई कर पानी की बचत कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

                                                                 

सितंबर का महीना आलू की फसल की बुवाई के लिए बहुत ही उपयुक्त होता है, ऐसे में उत्तर प्रदेश के जनपद मेरठ के बड़े क्षेत्रफल में किसान आलू की फसल उगाते हैं। इस फसल से बहुत कम दिनों में किसानों को अच्छा मुनाफा मिल जाता है। वहीं, किसान यदि फसल की बुवाई के दौरान कुछ सावधानियां बरतें, तो किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाला आलू और आलू का बंपर उत्पादन भी प्राप्त हो सकता है। इसके अलावा किसानों को आलू की सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए, किसान आलू की फसल में मिनी स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

कृषि वैज्ञानिक ने दी जानकारी

वहीं, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर ने बताया कि मेरठ जिले में आलू मुख्य फसलों में से एक है. जिले में 20,000 हेक्टेयर के क्षेत्र में आलू की फसल उगाई जाती है। यहां करीब 6.5 लाख टन का आलू उत्पादन होता है, जबकि जिले में केवल 3.5 लाख टन आलू का भंडारण करने की क्षमता उपलब्ध है। किसान अगर आलू की बुवाई के समय कुछ सावधानी बरतें तो इससे किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाली उत्तम उपज प्राप्त होती है।

डॉ0 सेंगर ने बताया कि किसान 300 से 350 टन प्रति हेक्टेयर आलू का उत्पादन आसानी ले सकते हैं। खासकर यदि किसान आलू की फसल की बुवाई करते समय बीज को उपचारित करें और सिंचाई का विशेष तौर पर ध्यान रखें। ऐसा करने से किसानों को चमकदार और बड़े आकार का आलू का उत्पादन प्राप्त होता है।

आलू की सिंचाई मिनी स्प्रिंकलर विधि से करें

                                                                 

आलू की फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए सिंचाई का भी विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। ऐसे में यदि किसान पारंपरिक तरीके से सिंचाई करने के स्थान पर यदि मिनी स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई करें तो ऐसा करने से जल का संरक्षण तो होगा ही परन्तु इसके साथ उन्हें आलू की फसल में अगेती झुलसा रोग और पछेती झुलसा रोग से भी बचाव सम्भव हो सकेगा। केवल इतना ही नहीं मिनी स्प्रिंकलर से सिंचाई करने से आलू का साइज बड़ा होता है, साथ ही आलू की खुदाई करते समय उस पर मिट्टी भी नहीं चिपकती है।

इससे आलू के पौधों की पत्तियों पर जमी हुई धूल भी साफ हो जाती है जिसके चलते पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बेहतर तरीके से होती है और अच्छी गुणवत्ता वाला आलू पैदा होता है। आलू में मिट्टी नहीं चिपकती, जिसके कारण बाजार में आलू अच्छा भाव मिलता है। खास बात यह है कि मिनी स्प्रिंकलर से सिंचाई करने से 15 से 20 प्रतिशत तक उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है। सरकार मिनी स्प्रिंकलर लगाने के लिए किसानों को 80 से 90 प्रतिशत तक अनुदान भी उपलब्ध करा रही है।

आलू के बीज का शोधन भी बहुत आवश्यक

                                                               

अपने खेत को तैयार कर लेने के बाद किसान आलू के बीज शोधन अवश्य ही करें क्योंकि बीज शोधन करने से आलू का फंगस रोग से बचाव हो सकता है। बीज शोधन करने के लिए किसान 0.02 ग्राम मैंकोजेब (Mancozeb 75% WP) को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर आलू के कटे हुए टुकड़ों या साबुत आलू को 10 मिनट तक इसमें भिगोकर रखें। उसके बाद छाया में सुखा दें और बीज शोधन के बाद आलू को खेत में बोया जा सकता है।

उर्वरक की मात्रा

आलू फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए उर्वरकों का भी महत्वपूर्ण रोल रहता है। किसान आलू की फसल की बुवाई करते समय 100 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 45 से 60 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम पोटेशियम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अपने खेत में डाल दें। ध्यान रखें कि नाइट्रोजन की आधी मात्रा बेसल डोज और शेष आधी मात्रा बुवाई के 25 से 27 दिन के बाद खेत में डालें।

खरपतवार नियंत्रण

                                              

आलू की फसल में खरपतवार भी एक बड़ी समस्या होती है। आलू की फसल की बुवाई के तुरंत बाद पेंडीमेथिलीन (Pendimethalin) नामक रासायनिक खरपतवारनाशक का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए किसान 500 एमएल दवा से 1 लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं ऐसा करने से खेत में खरपतवार नहीं उगते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।