भदावरी भैंसः “घी देने वाली भैंस“ के नाम से है प्रसिद्व      Publish Date : 06/07/2025

   भदावरी भैंसः “घी देने वाली भैंस“ के नाम से है प्रसिद्व

                                                                                                                                                      प्रोफेसर डी. के. सिहं 

“एक ब्यांत में देती है 1400 लीटर दूध, भदावरी भैंस की पहचान और इसकी विशेषताएं”

भदावरी भैंस भारत की एक देसी नस्ल है, जो अपने दूध में अधिक फैट (लगभग 12% तक) के कारण “घी देने वाली भैंस“ के रूप में जानी जाती है। यह मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों में पाई जाती है. कम चारे में भी यह अच्छा दूध देती है और ग्रामीण किसानों के लिए काफी लाभदायक रहती है। ऐसे में इस भैंस की देसी नस्ल भदावरी भैंस (Bhadawari Buffalo) की पहचान और अन्य विशेषताओं के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान कर रहे हैं प्रोफेसर डी. के. सिंह-

भारत की देसी भैंस नस्लों में से एक बेहद खास नस्ल भदावरी भैंस (Bhadawari Buffalo) है, जो अपने दूध में पाए जाने वाले उच्च वसा प्रतिशत (बटर फैट) के लिए प्रसिद्ध है. यह नस्ल मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के भिंड और मुरैना जिलों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के आगरा और एटावा जिलों में पाई जाती है। भदावरी भैंस का रंग गहरे तांबे जैसा होता है और इसकी टांगों का रंग प्रायः गेहूं की भूसी जैसा हल्का होता है। इसके गले के नीचे दो सफेद पट्टियां होती हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में “कंठी“ कहा जाता है।

                                                      

यह भैंस अपनी सुंदरता, सहनशक्ति और उच्च फैट वाले दूध के लिए किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है। यह नस्ल कम गुणवत्ता वाले चारे और कठिन परिस्थितियों में भी अच्छी तरह सर्वाइव कर सकती है। इसकी विशेष बात तो यह है कि इस नस्ल का दूध मक्खन और घी बनाने के लिए बेहद उपयोगी होता है, इसलिए इसे ग्रामीण क्षेत्रों में “घी देने वाली भैंस“ के रूप में भी जाना जाता है। ऐसे में आइए भैंस की देसी नस्ल भदावरी भैंस (Bhadawari Buffalo) की पहचान और अन्य विशेषताओं के बारे में विस्तार से जानते हैं आज के इस लेख में-

कहां पाई जाती है भदावरी नस्ल की भैंस?

भदावरी भैंस (Bhadawari Buffalo) का नाम भदावर राज्य के नाम पर पड़ा है, जो कि स्वतंत्रता से पहले एक रियासत हुआ करती थी। इस नस्ल को भदावर के भदौरिया राजवंश द्वारा पालने और संरक्षित करने की परंपरा रही है। इस नस्ल का विस्तार यमुना, चंबल और उटंगन नदियों की घाटियों में हुआ है, जहां की जलवायु और चारे की स्थिति इसके लिए अनुकूल मानी जाती है। यही कारण है कि भदावरी भैंस को कठोर परिस्थितियों में भी सर्वाइव करने और दूध का उत्पादन बनाए रखने की विशेष क्षमता मिलती है।

भदावरी भैंस का मुख्य उपयोग और विशेषता

भदावरी भैंस (Bhadawari Buffalo) का उपयोग मुख्य रूप से दूध, मट्ठा, मक्खन और हल्के कृषि कार्यों के लिए किया जाता है। इसका दूध खास तौर पर मक्खन और घी बनाने के लिए आदर्श माना जाता है, क्योंकि इसमें फैट की मात्रा भैंस की अन्य नस्लों की तुलना में काफी अधिक होती है। एनडीडीबी के अनुसार, औसतन इस नस्ल के दूध में 7.9 प्रतिशत वसा होती है, जबकि कुछ मामलों में यह 12 प्रतिशत से भी ऊपर रिकॉर्ड किया गया है। इस भैंस की यही एक विशेषता ऐसी है जो इस नस्ल को अन्य सभी देसी भैंसों से अलग बनाती है।

भदावरी भैंस की शारीरिक बनावट और पहचान

                                                                 

भदावरी भैंस (Bhadawari Buffalo) देखने में आकर्षक होती है। इसका रंग काले तांबे से लेकर हल्के भूरे रंग तक हो सकता है। इसकी टांगें हल्के रंग की होती हैं और गर्दन के नीचे दो सफेद रंग की रेखाएं होती हैं जो इसे विशेष रूप से पहचान दिलाती हैं। इसके सींग गर्दन के पास से पीछे की ओर झुकते हुए ऊपर की ओर मुड़ जाते हैं। यह विशेष बनावट इसे एक शुद्ध नस्ल के रूप में चिन्हित करती है। इसका शरीर मध्यम आकार का होता है, लेकिन यह काफी मजबूत और सधे हुए ढांचे की होती है।

भदावरी भैंस का पालन-पोषण कैसे किया जाता है?

भदावरी भैंसों को सामान्यतः अर्ध-व्यापक प्रणाली (Semi-Intensive System) के तहत पाला जाता है। इन्हें चारा और दाना दोनों को ही उचित मात्रा में दिया जाता है। आमतौर पर इन्हें किसान अपने घर के पास बने कच्चे या पक्के बाड़ों में रखते हैं। चारा के रूप में इन भैंसों को जौ, मक्का, चोकर, गेहूं आदि को उबालकर या भिगोकर दिया जाता है। इन जानवरों को अधिकतर समय बांधकर ही रखा जाता है, लेकिन कुछ समय के लिए खुला भी छोड़ा जाता है जिससे वे हल्की-फुल्की गतिविधि कर सकें।

भदावरी भैंस की दूध उत्पादन क्षमता

भदावरी भैंस (Bhadawari Buffalo) की दूध देने की क्षमता भले ही मात्रा में कुछ अन्य नस्लों से कम हो, लेकिन उसके दूध की गुणवत्ता सबसे अधिक मानी जाती है एनडीडीबी के अनुसार, औसतन एक भैंस एक ब्यांत में 1200 से 1400 लीटर तक दूध देती है. इस नस्ल की पहली ब्यांत आमतौर पर 44 महीने में होती है और उसके बाद हर 16 से 18 महीनों में यह फिर से दूध देना शुरू कर देती है। इसके दूध में फैट प्रतिशत उच्च होता है जो इसे व्यावसायिक दृष्टिकोण से बेहद लाभकारी बनाता है।

भदावरी भैस की विशेषताएं

                                              

भदावरी भैंस (Bhadawari Buffalo) की सबसे खास बात यह है कि यह कम पोषण वाले चारे पर भी उच्च गुणवत्ता वाला दूध देती है। इसके दूध से बनाया गया मक्खन और घी ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। इस नस्ल को संरक्षित करना बेहद जरूरी है क्योंकि अब यह सीमित क्षेत्रों तक ही सीमित रह गई है और इसके संरक्षण की दिशा में प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि भदावरी भैंस भारत की पारंपरिक नस्लों में से एक अनमोल धरोहर है। इसकी दूध में उच्च फैट होने की वजह से यह व्यावसायिक दुग्ध उत्पादन के लिए आदर्श है। कम संसाधनों में भी इसका पालन संभव है, जिससे यह गरीब और सीमांत किसानों के लिए भी अत्याधिक लाभदायक सिद्व हो सकती है।

लेखकः प्रोफेसर डी. के. सिंह, पशु चिकित्सा महाविद्यालय, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, मेरठ।