
गाय पालन हेतु वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा व्यवसायिक सोच Publish Date : 28/05/2025
गाय पालन हेतु वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा व्यवसायिक सोच
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं आकांक्षा
हमारे देश की जनसंख्या 100 करोड़ से अधिक है तथा देश के अधिकतर लोग शाकाहारी है। जैसा कि विदित है, मानव शरीर के उचित विकास के लिए पशु-जन्य प्रोटीन का महत्व बहुत अधिक है, इसलिए दूध का महत्व इसकी पूर्ति हेतु और भी बढ़ जाता है। परन्तु हमारे देश में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता बहुत कम है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 283 ग्राम दूध, पशु जन्य प्रोटीन की पूर्ति के लिए उपलब्ध होना आवश्यक है जबकि देश में केवल 195 ग्राम दूध ही उपलब्ध हो पाता है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि दूध उत्पादन में वृद्धि लायी जाए।
देश में गोवंशीय पशुओं की संख्या लगभग 200 करोड़ है, जो विश्व की कुल पशु संख्या का 15.1 प्रतिशत है। परन्तु इन पशुओं का औसत दुग्ध उत्पादन 1.5 से 2.0 कि.ग्रा. प्रतिदिन ही है। इसके मुख्य कारण इस प्रकार:一
1. देशी गायों के प्रथम बार ब्याने की आयु 3 से 4 साल होना।
2. दुग्धकाल छोटा होना।
3. दो ब्यातों के बीच का समय अधिक होना। (लगभग 2 साल)
4. पशु आहार निम्न कोटि का और अल्प मात्रा में उपलब्ध होना।
5. प्रबन्ध के उत्तम तरीकों को न अपनाना।
6. पशु चिकित्सा सुविधाओं का पूरा फायदा न उठाना।
दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि उपरोक्त कारणों के समाधान के साथ-साथ जिन क्षेत्रों में दाना, चारा व अन्य सुविधाएं उत्तम कोटि की उपलब्ध हैं वहां पर पशुओं के आनुवांशिक स्तर में सुधार लाया जाए। इसके लिए संकर पशुओं का उत्पादन एक बढ़िया कदम है।
संकर नस्ल क्या हैः- संकर नस्ल पैदा करने के लिए देशी गायों को विदेशों सांडों के अति-हिमीकृत वीर्य से गर्भित कराया जाता है। इस प्रकार संकरण से जो पशु पैदा होते हैं, वे संकर नस्ल के पशु कहलाते हैं।
संकर प्रजनन हेतु मुख्यतः हील्सटीन फ्रीजियन, जसीं एवं ब्राउन स्विस विदेशी जातियों के सांडों का वीर्य कृत्रिम गर्भाधान हेतु प्रयोग में लाया जाता है। इन विदेशी जातियों के सांडों से प्रजनन का मुख्य कारण यह है कि इन सभी जातियों की गायों का दुग्ध उत्पादन भारतीय गायों की तुलना में अधिक होता है। उदाहरण के तौर पर डेनमार्क में हाल्सटीन फ्रीजियन गायों का औसत दुग्ध उत्पादन 6000 किलोग्राम प्रति ब्यांत है, जबकि हमारे देश में किसी भी जाति की गायों का प्रति ब्यांत औसत दुग्ध उत्पादन 2600 किलोग्राम से अधिक नहीं है।
संकर नस्ल की गायों की विशेषताएं:-
1. संकर नस्ल की बछड़ियों की वृद्धि दर देशी बछड़ियों की तुलना में काफी अधिक होती है। अतः यह 18 से 24 माह की आयु में ही गर्भित हो जाती है।
2. संकर नस्ल की बछड़िया तीन साल की आयु में ही पहली बार बच्चा दे देती हैं।
3. संकर गाय प्रतिवर्ष व्याती रहती है।
4. संकर गायों का दुग्ध उत्पादन देशी गार्यों की तुलना में कई गुना अधिक होता है।
5. संकर नस्ल की गायों का स्वभाव देशी गायों की अपेक्षा विनम्र (डोसाइल) होता है।
6. संकर नस्ल की गायों का शुष्क काल भी देशी गायों को अपेक्षा छोटा होता है।
बछिया या गाय को गर्भित कब करायें:- संकर नस्ल की बछिया में गर्भित होने के लक्षण कम आयु में ही दिखने लगते हैं, जबकि देशी बछिया में यह लक्षण अधिक आयु में दिखाई देते हैं। संकर बछिया को 18 से 24 माह की आयु में गर्भित कराते हैं क्योंकि इस आयु में इनके जनन अंग पूर्णतया विकसित हो जाते हैं। देशी गाय को तीन से चार साल की आयु में पहली बार गर्भित कराते हैं। पशुओं को गलत समय पर गर्भित कराने में उनमें बांझपन हो सकता है। अतः सही समय पर गर्भित कराने से बांझपन को रोका जा सकता है।
गाय को ब्याने के 45 से 75 दिनों के बीच अवश्य गर्भित करा देना चाहिये। इससे ज्यादा दिनों में गाय को गर्भित कराने से उसका दो ब्यांतों के बीच का समय बढ़ जाता है। प्रायः यह भी देखा गया है कि 25 दिनों के बाद पशुओं में गर्मी के लक्षण समाप्त होने लगते हैं। अगर पशुओं को प्रसव अन्य सावधानियों व बच्चों का बीमारियों से बचावः प्रायः यह देखा गया है कि बछड़े और बड़ियों की मृत्यु निमोनिया तथा दस्त लगने से ज्यादा होती है। इन बीमारियों से बचाव के लिए पशुशाला एवं बच्चों की अच्छी तरह से सफाई करना अनिवार्य है। सर्दियों में पशुशाला के फर्श को बिछावन आदि डालकर सूखा रखना चाहिए। बच्चों को ऐसी जगह रखें जहां पर हवा सौधी न लगे। पशुशाला की दीवारों पर चूने से पुताई करनी चाहिए। बच्चों में चिचड़ी आदि से होने वाली खतरनाक बीमारियों से बचाव के लिए उन पर 0.2 प्रतिशत मैलाथियान नामक कीटाणु नाशक दवा का छिड़काव करना चाहिए। यह ध्यान रहे कि छिड़काव के समय कीटनाशक, 2 बच्चों की आंख व मुहँ में न जाने पाए। खुरपका व मुर्हपका, गलघोंदू आदि बीमारियों के टीके समय से लगवायें व समस्या होने पर निकट के पशु चिकित्सालय से सम्पर्क करें।
गायों में गर्भपातः गायों के गर्भधारण के बाद जब किसी भी अवस्था में भ्रूण की मृत्यु हो जाती है और भ्रूण गिर जाता है तो इसे गर्भपात कहते हैं। गर्भपात होने की स्थिति में किसान को अर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। यदि गाय दूध दे रही है तो उसके उत्पादन में कमी आ जाती है तथा अगली बार गाभिन होने तक उसके खिलाने पिलाने पर अतिरिक्त खर्चा भी करना पड़ता है।
गर्भपात के कारणः गायों में गर्भपात के कई कारण हैं। पशुओं में मुख्यतः बूसलोसिस नामक बीमारी के कारण 6 से 9 माह के बीच में गर्भपात हो जाता है। योनि में रोग के अलावा भी कई ऐसे कारण होते हैं जिनके कारण गर्भपात हो जाता है। कुछ रासायनिक पदार्थ, विषैले पौधे, आहार में किसी विशेष तत्व की कमी एवं हारमोन की गड़बड़ी के कारण भी गर्भपात हो जाता है। गर्भ की स्थिति में पशु को आपस में लड़ने, ऊँची-नीची जगहों पर घूमने या कोई गहरी चोट लगने पर भी गर्भपात हो जाता है। 4-5 माह बाद गर्भपात होने पर तो उसी प्रकार पता चल जाता है जैसे गाय बच्चा देते समय लक्षण प्रकट करती है लेकिन कम समय यानी तीन माह या इससे कम पर उसका योनिद्वार सूज जाता है और उससे रक्तयुक्त स्राव निकलने लगता है। इस प्रकार बच्चेदानी के खराब होने का खतरा बना रहता है जिससे वे गायें काफी समय तक अथवा हमेशा के लिए बांझ हो जाती है।
बचाव एवं रोकथामः पशुओं का बाड़ा साफ-सुथरा रखें जिससे किसी प्रकार संक्रमण का खतरा न रहे। गाय को सदैव कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र पर ले जाकर ही गाभिन करायें जिससे ब्रूसेलोसिस की बीमारी होने का खतरा नहीं रहता है। गाभिन पशुओं को जब भी चराने के लिये ले जायें तो यह ध्यान रखें कि वह कहीं फिसले नहीं और साथ वाले पशुओं से न लड़े जिससे चोट आदि का खतरा नहीं रहेगा। जब भी किसी पशु का गर्भपात हो जाए तो निकट के पशु-चिकित्सक की सलाह अवश्य लें और उनके निर्देशों का पालन करें। पशु के गर्भपात के बाद उसको तुरन्त गाभिन न करायें। उसको तीन-चार माह के अन्तराल पर ही गर्भित करायें और पशु चिकित्सक को समय-समय पर दिखाते रहें जिससे अगली बार किसी किस्म की परेशानी न हो। इस प्रकार आप पूरी सावधानी रखेंगे तो पशुओं में गर्भपात की समस्या से बचा जा सकता है।
आहार की व्यवस्थाः गाय का आहार अच्छा व भरपूर न होने पर उससे उत्पादन क्षमता का पूरा लाभ नहीं लिया जा सकता है अतः यह आवश्यक है कि दुधारू गाय को उचित मात्रा में संतुलित आहार दिया जाये। दुधारू गायों के आहार में निम्नलिखित गुण होना आवश्यक है:-
1. आहार पौष्टिक हो ताकि गाय अपने आमाशय को क्षमता से 5 से 10 प्रतिशत कम खाने पर भी आवश्यक मात्रा में पोषक पदार्थ जैसे प्रोटीन, ऊर्जा या शक्ति देने वाले पदार्थ, खनिज और विटामिन प्राप्त कर सकें।
. आहार संतुलित होने पर गाय की उत्पादकता बनी रहती है व इसका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। आहार को संतुलित बनाने के लिए उचित मात्रा में खनिज मिलना भी आवश्यक है क्योंकि इन तत्वों की कमी से पशुओं के उत्पादन व प्रजनन दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। पशुओं के स्वास्थ्य में गिरावट आ जाती है तथा गार्यों के देर से गाभिन होने के कारण दूध न देने का समय (शुष्क काल) भी बढ़ जाता है। गायों के बच्चों पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता है तथा उनकी जीवन काल की उत्पादकता में कमी आ जाती है।
दूध देने वाली गाय का आहारः प्रतिदिन 10 कि. ग्रा. दूध देने वाली गाय का आहार ऐसा होना चाहिए जिससे उसे प्रतिदिन लगभग 750-800 ग्राम पाचक प्रोटीन 6.5 से 7.0 कि.ग्रा. सकल पाचक पोषक तत्व, 40-50 ग्राम कैल्शियम और 35-40 ग्राम फास्फोरस प्राप्त हो सके। पशुओं के आहार के मुख्य तीन घटक होते हैं:-
1. चाराः इसके अन्तर्गत हरा और सूखा दोनों प्रकार के चारे शामिल हैं। इनमें रेशे की मात्रा 18 प्रतिशत से अधिक होती है परन्तु इनमें कुछ पौषक तत्वों की कमी होती है। जिन हरे चारों में नमी 75 प्रतिशत से अधिक होती है वे रसीले चारों की श्रेणी में आते हैं।
जैसे बरसीम, लोबिया, ग्वार, चरी, जई, नेपियर घास, हरी मक्का, गिनी घास, दूब घास आदि। यह सभी चारे रेशेदार होने के कारण आहार तन्त्र की सफाई करने में भी मदद करते हैं तथा आहार नाल की दीवारों में संकोचन व विमोचन की क्रियाओं में सभी भागों को क्रियाशील बनाए रखते हैं। आहार नाल के पाचक रसों की क्रिया के लिए यह चारे अधिक मोटी सतह प्रदान करते हैं जिससे उनका प्रभाव भोजन पर भलि-भांति हो पाता है।
2. मिश्रित दाना जीवन निर्वाह के लिये तथा 10 कि.ग्रा. तक दुग्ध उत्पादन करने वाली गाय को प्रति 3 कि.ग्रा. दुग्ध उत्पादन के लिए 1 कि.ग्राम दाने की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार 10 से 15 कि.ग्रा. दुग्ध उत्पादन करने वाली गाय को प्रति 2 से 5 कि.ग्रा. दुग्ध उत्पादन पर 2 किलोग्राम के हिसाब से दाने का मिश्रण उत्पादन हेतु व 1 कि.ग्रा. जीवन निर्वाह हेतु खिलाना चाहिए। सभी प्रकार की दुधारू गायों को कम से कम 4-5 कि.ग्रा. हरा चारा विटामिन्स की पूर्ति के लिए अवश्य खिलाना चाहिए।
ख. यदि पशु को पेट भर हरा चारा खिलाया जाये तो जीवन निर्वाह हेतु 10 किलोग्राम मिश्रित दाने को खिलाने की आवश्यकता नहीं होती है। परन्तु दुग्ध उत्पादन हेतु दाने की मात्रा अवश्य खिलायें।
ग. यदि दलहनी फसलों का हरा चारा पेटभर उपलब्ध है तो 5-6 किलोग्राम तक दुग्ध उत्पादन करने वाली गाय को 2 किलोग्राम सूखी घास या पुआल और १ कि.ग्रा. मिश्रित दाना खिलाने की आवश्यकता होती है। 10 किलोग्राम से अधिक दुग्ध उत्पादन करने वाली गायों को 500 ग्राम मिश्रित दाना प्रति किलोग्राम दुग्ध उत्पादन के लिये आवश्यक है।
पशुशाला के लिये भवनों का महत्वः-
A. भवन पशुओं को गर्मी, सर्दी व वर्षा से रक्षा करते हैं।
B. भवनों में पशु आराम से रहते हैं तथा पशुओं का रख-रखाव सुविधाजनक एवं कुशलता से होता है।
C. भवनों में रखने से पशुओं से प्राप्त पदार्थ शुद्ध, स्वास्थ्यकारी, उच्च पोषण एवं अधिक मूल्य के प्राप्त होते हैं।
भवनों की स्थितिः-
A. भवनों का निर्माण जहाँ तक संभव हो सके फार्म के मध्य में होना चाहिए।
B, भवन निर्माण के स्थान पर नियमित पानी देने वाला स्रोत अवश्य हो।
C. भवन का निर्माण फार्म पर किसी ऊंचे स्थान पर करना चाहिए।
D. पानी के निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
E. भवन निर्माण के लिए स्थान चुनते समय वहाँ की साधारण वायु प्रवाह की दिशाओं का भी ध्यान रखना चाहिए।
च. भवन निर्माण में अत्यधिक उर्वर भूमि का चयन नहीं करना चाहिए तथा निर्माण की जाने वाली भूमि सुदृढ़ होनी चाहिए।
भवनों का समूहनः-
1. भवन इस प्रकार व्यवस्थित होने चाहिए जिससे कम से कम समय, शक्ति तथा व्यय, में अधिक से अधिक कार्य की उपलब्धि हो सके।
2. जो भवन एक दूसरे से संबन्धित हों उनका समूहन एक साथ होना चाहिए।
3. भवनों का निर्माण बाहर से देखने में सुन्दर हो।
4. भवनों का समूहन इस प्रकार होना चाहिए कि उनकी देख-रेख व मरम्मत के कार्यों में आसानी हो।
5. यदि भविष्य में विस्तार की आवश्यकता पड़े तो विस्तार किया एवं आसानी से साफ-सुथरा रखा जा सके।
गाय रखने की विधिः-
1. गायों को बांधकर रखनाः इस विधि में सामान्यतः सभी गायों को पशुशाला में बांधकर रखा जाता है। इस विधि में पशुओं को एक ही स्थान पर बंधे रहने से उनको घूमने-फिरने को नहीं मिलता है।
2. गायों को बाड़े में खुला रखनाः इस विधि में सभी गायों को उनके समूह के हिसाब से बाड़ों में खुला रखकर मुख्य दरवाजा बन्द कर दिया जाता है। इससे लाभ यह है कि सभी गाय मुक्त रूप से इधर-उधर घूमती रहती है। इससे इनका व्यायाम भी हो जाता है, पानी भी समय-समय पर पीती रहती हैं और उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है। बड़े-बड़े प्रक्षेत्रों पर इसी विधि को अपनाया जाता है।
एक पंक्ति की चौड़ाई का योग 4.75 मीटर, इसलिए दोनों पंक्तियों की चौड़ाई 4.75 x 2 = 9.50 मीटर, दो दीवारों की चौड़ाई= 0.50 मीटर, अतः दुग्धशाला की चौड़ाई 10.0 मीटर होगी।
दुग्धशाला की लम्बाई वस्तुतः गायों की संख्या पर निर्भर होगी। मूलतः एक गाय को लगभग 1 वर्गमीटर स्थान की आवश्यकता होती है। अतः लम्बाई, गायों की संख्या के आधे के बराबर होगी क्योंकि दो लाइन में गाय बांधी जायेंगी। फर्श बनाते समय उत्तम जल विकास का प्रबन्ध होना चाहिये। फर्श (Standing floor) पर 2.5 से.मी. का ढाल नांद से पीछे मोरी की तरफ रखना चाहिए। मोरी की गहराई 17.5 से.मी. तथा दोहन विधि की ओर 10 से.मी. होनी चाहिए। खड़ा होने वाला फर्श खुरदरा बनाना चाहिए ताकि उस पर गाय फिसल न सके। दुग्धशाला में हवा के आवागमन के लिए खिड़कियाँ व रोशनदान अधिक से अधिक लगाने चाहिए।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।