
वर्मी कम्पोस्टः कार्बनिक खेती आज की आवश्यकता Publish Date : 06/05/2025
वर्मी कम्पोस्टः कार्बनिक खेती आज की आवश्यकता
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता
रासायनिक खादों का लगातार उपयोग करते रहने से भूमि के पोषक तत्वों के बीच असंतुलन हो गया है तथा अनेक पोषक तत्वों की कमी हो गई है। इस कमी को दूर करने हेतु रसायनिक खादों के साथ-साथ जैविक खाद का प्रयोग करना ही एकमात्र हल है जिससे पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिल सके तथा अधिक पैदावार प्राप्त हो। आज पूरे विश्व में कार्बनिक उत्पाद (आर्गेनिक फूड) की मांग बढ़ रही है, जिसकी पूर्ति जैविक खादों के बिना संभव नहीं है। इसमें जैविक खाद के रूप में वर्मी कम्पोस्ट प्रभावी सिद्ध हुई है।
वर्मी टेक्नोलॉजी के अंतर्गत तीन तकनीक आती हैः-
वर्मीकल्वरः- केंचुओं को वैज्ञानिक तरीकों से प्रजनन व रख-रखाव वर्मीकल्चर कहलाता है।
वर्मीकम्पोस्टः- केंचुओं की कास्टिंग, उनके अवशेष, मल एवं उनके अंडे, कोकून, लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु, पोषक तत्व और अपचित आदि जैविक पदार्थों का मिश्रण वर्मीकम्पोस्ट कहलाता है।
वर्मी-कंजरवेशनः प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत केंचुओं को वर्मीकम्पोस्ट से अलग किया जाता है।
विशेषः वर्मीकम्पोस्ट में नत्रजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश के अलावा सल्फर, जिंक, कैल्शियम, तांबा, मैग्निशियम, बोरोन आदि पोषक तत्व भी गोबर की खाद की अपेक्षा संतुलित मात्रा से मिलते हैं।
केंचुए की प्रजतियां
केंचुए के प्रकारः मुख्य रुप से केंचुओं की दो प्रजातियां होती हैं-
एन्डोगीज या (नाइट कालस): यह जमीन के अंदर रहने वाले केंचुए हैं तथा इनकी लंबाई 8-10 इंच एवं वजन लगभग 5 ग्राम तक होता है। ये नमी की तलाश में जमीन में चले जाते है। ये प्रायः वर्षा ऋतु में दिखाई देते हैं। ये वर्मीकम्पोस्ट बनाने में काम नहीं आते हैं।
एपीगीज या (सरफेस फीडर्स):- यह कम लंबाई के 3-4 इंच और बहुत हल्के 0.5-1.0 ग्राम वजन के होते हैं तथा जमीन की ऊपरी सतह पर विचरण करते रहने वाले हैं। इनकी क्रियाशीलता एवं जीवन अवधि कम लेकिन प्रजनन दर अधिक होती है। ये केंचुए वनस्पतिक अवशेष व गोबर खाते हैं। ये केंचुए मिट्टी को पसंद करते हैं तथा वर्मीकम्पोस्ट बनाने में अधिक प्रभावी होते हैं। इनकी सबसे उपयुक्त प्रजाति आइसिनिया फोइटिडा है। इनकी क्रियाशीलता के लिए 25-350 से. तापमान पर 30-40 प्रतिशत तक की नमी उपयुक्त है।
वर्मी-कम्पोस्ट खाद तैयार करने की विधिः-
- पहले 3 फोट चौड़े व आवश्यकतानुसार लंबी आकार की क्यारी पर कचरा व कार्बनिक पदार्थों को बिछाकर अस्थाई बेड तैयार कर लें।
- तैयार बेड पर 6-8 फीट ऊँचाई पर कम लागत की छाया, उपलब्ध घास-फूस व बल्ली, डण्डियों की सहायता से तैयार की जा सकती है।
- तैयार बेड पर सड़े-गले कार्बनिक पदार्थ व गोबर को अच्छी तरह मिलाकर डोली का आकार दें। इसके बाद 5-6 दिन तक प्रतिदिन एक बार पानी का छिड़काव करते हुए 2-3 दिन के अंतराल पर पंजे की सहायता से उलट-पलट करते हैं, जिससे गोबर से निकलने वाली गैस निकल जाती है और वायु संचार तथा गोबर का तापमान भी ठीक हो जाता है।
- जब ढेर का तापमान 25-30° से. हो तब 3-4 किलो केंचुए प्रति ढेर की दर से इसमें छोड़ देते हैं।
- प्रति 10×3×1 क्यूबिक फीट लंबी क्यारी में 200 ग्राम ट्राइकोडर्मा, 200 ग्राम एजोटोबेक्टर, 200 ग्राम पी.एस.बी. व 500 ग्राम नीम की खली को समान रुप से बिखेरकर वर्मीकम्पोस्ट के ढेर में मिला देते हैं।
- अब इस ढेर को बोरे या केले के पत्ते अथवा अन्य कार्बनिक पदार्थ से ढक दीजिए एवं 30 प्रतिशत नमी बनाये रखने के लिए पानी का छिड़काव करते रहें।
- दो माह में गोबर व कार्बनिक पदार्थ को केंचुए व सूक्ष्म जीव वर्मीकम्पोस्ट में बदल देते हैं।
- ढेर का रंग काला होना तथा केंचुए का ऊपरी सतह पर आना वर्मीकम्पोस्ट तैयार होने का सूचक है। 40×3×1 फीट के ढेर से 2 माह में एक टन वर्मीकम्पोस्ट प्राप्त होती है।
वर्मीकम्पोस्ट से केंचुए अलग करने के लिए 3-4 फीट ऊँचा वर्मीकम्पोस्ट का ढेर बनाये तथा पानी छिड़कना बंद कर दें। ज्यों-ज्यों ढेर शुष्क होता जायेगा। केंचुए नमी की तरफ नीचे अंधेरे में चले जायेंगे और ऊपर वर्मीकम्पोस्ट रह जायेगा, इसे ऊपर से इकट्ठा कर लें। नीचे सतह पर वर्मीकम्पोस्ट के साथ केंचुए रह जाएंगें जिन्हें दुबारा वर्मीकम्पोस्ट बनाने के काम में लें। वर्मीकम्पोस्ट के साथ केंचुए नहीं जाने दें।
वर्मीकम्पोस्ट से लाभः-
- वर्मीकम्पोस्ट मृदा संरचना, जल निकास, वायु संचार तथा जल धारण क्षमता में सुधार करने के साथ-साथ सूक्ष्म जीवाणुओं को भी सक्रिय करता है जो मिट्टी को उपजाऊ बनाने में सहायक होते है।
- इसके प्रयोग से भूमि में अनुपलब्ध पोषक तत्व उपलब्ध अवस्था में आ जाते हैं।
- भूमि जनित रोगों का प्रकोप कम होता है।
- वातावरण को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान करता है।
- फसलों में कीट-व्याधियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
- वर्मीकम्पोस्ट प्रयोग करने से खेतों में खरपतवार कम उगते हैं।
- वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से अनाजों, फलों व सब्जियों के स्वाद, आकार, रंग तथा उत्पादन में वृद्धि होती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के रुप में आय अर्जित होती है।
- भूमि की लवणता व क्षारीयता में कमी होती है।
- वर्मीकम्पोस्ट के प्रयोग से सिंचित फसलों में सिंचाई हेतु 10 प्रतिशत तक पानी की कम जरुरत होती है।
वर्मीकम्पोस्ट की प्रयोग दरः-
अनाज वाली फसलों में 4-5 टन प्रति हैक्टेयर, फलदार वृक्ष, 5-10 किलोग्राम प्रति वृक्ष, सब्जी वाली फसलों में, 3-4 टन प्रति हे. तथा फूलों में, 500-700 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग किया जाना चाहिए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।