फसलों की जैविक देखभाल      Publish Date : 02/03/2025

                   फसलों की जैविक देखभाल

                                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

हरी खाद

                                                 

मिट्टी की उर्वरा शक्ति जीवाणुओं की मात्रा एवं क्रियाशीलता पर निर्भर रहती है क्योंकि बहुत सी रासायनिक क्रियाओं के लिए सूक्ष्म जीवाणुओं की आवश्यकता रहती है। जीवित व सक्रिय मिट्टी वही कहलाती है जिसमें अधिक से अधिक जीवांश हो। जीवाणुओं का भोजन प्रायः कार्बनिक पदार्थ ही होते है और इनकी अधिकता से मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर प्रभाव पड़ता है। अर्थात केवल जीवाणुओं से मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। मिट्ट की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने की क्रियाओं में हरी खाद प्रमुख है। इस क्रिया में वानस्पतिक सामग्री को अधिकांशतः हरे दलहनी पौधों को उसी खेत में उगाकर जुताई कर मिट्टी में मिला देते है। हरी खाद हेतु मुख्य रूप से सन, ढेंचा, लोबिया, उड्द, मूंग इत्यादि फसलों का उपयोग किया जाता है।

भभूत अमृत पानी

अमृत पानी तैयार करने के लिए के लिए 10 किलोग्राम गाय का ताजा गोबर 250 ग्राम नौनी घी, 500 ग्राम शहद और 200 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। सर्वप्रथम 200 लीटर के ड्रम में 10 किलोग्राम गाय का ताजा गोबर डालें उसमें 250 ग्राम नौनी घी, 500 ग्राम शहद को डालकर अच्छी तरह मिलायें। इसके पश्चात ड्रम को पूरा पानी से भर ले तथा एक लकड़ी की सहायता से घोल तैयार करें इस घोल को जब फसल 15 से 20 दिन की हो जावे तब कतार के बीच में 3 से 4 बार प्रयोग करें। इसका प्रयोग के समय मृदा में नमी का होना अति आवश्यक है। अमृत पानी के प्रयोग के पूर्व 15 किलोग्राम बरगद के नीचे की मिट्टी एक एकड़ में समान रूप से बिखेर दें।

अमृत संजीवनी

एक एकड़ हेतु अमृत संजीवनी तैयार करने के लिये सामग्री में 3 किलोग्राम यूरिया, 3 किलोग्राम सुपर फास्फेट एवं 1 किलोग्राम पोटाश तथा 2 किलोग्राम मूंगफली की खली, 80 किलोग्राम गोबर एवं 200 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसकों तैयार करने के लिए उक्त सामग्री को एक ड्रम में डालकर अच्छी तरह मिला दें और ड्रम के ढक्कन को बंद कर 48 घंटे के लिए छोड़ दें तथा प्रयोग के समय ड्रम को पूरा पानी से भर दे। जब खेत में पर्याप्त नमी हो तब बोनी के पूर्व इसे समान रूप से एक एकड़ में छिड़क दे। खड़ी फसल में जब फसल 15-20 दिन की हो जाए तो कतार के बीज में 3-4 बार 15 दिन के अंतर पर छिड़के यथा संभव पत्तों को घोल के संपर्क से बचाएं।

अग्निहोत्र भस्म

                                                    

अग्निहोत्र भस्म उच्चारण पर्यावरण की शुध्दि की वैदिक पद्वति है। खेत में, गांव में, घर में तथा शहर में पर्यावरण में स्वच्छता बनाये रखकर सूर्याेदय व सूर्यास्त के समय मिट्टी तथा तांबे के पात्र में गाय के गोबर के कंडे में अग्नि प्रज्जवलित कर अखंड अक्षत (बिना टूटे चावल) चावल के 8-10 दानों को गाय के घी में मिलाकर हाथ अंगूठे, मध्य अनामिका व छोटी अंगुली से अग्निहोत्री मंत्र उच्चारण के साथ स्वाहाः शब्द के साथ आहुति दी जाती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।