ग्वार की फसल में बक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रकोप की आशंका      Publish Date : 12/09/2025

    ग्वार की फसल में बक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रकोप की आशंका

                                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

रोग की पहचानः पौधों की पत्तियों पर भूरे और काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं।

खरीफ के सीजन में बोई जाने वाली ग्वार एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है। ग्वार की फलियों को हरी बीन के रूप में खाया जाता है। इसके साथ ग्वार पशुओं के हरे चारे और हरित खाद के रूप में भी प्रयोग की जाती है।

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 बी. आर. काम्बोज ने जानकारी प्रदान की कि समय के अनुसार ग्वार की फसल में खरपतवार प्रबन्धन, सिंचाई, कीट एवं रोग नियंत्रण की जाए तो काफी हद तक फसल के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। यदि फलियों के बनते समय बारिश न हो तो फसल की एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। वहीं यदि अधिक मात्रा में वर्षा हो जाने से ग्वार की फसल की बढ़वार भी अधिक हो जाती है।

                                                                           

ग्वार की फसल में कभी-कभी तेला कीट का आक्रमण अधिक हो जाता है, इस कीट की रोकथा के लिए 200 मिली. मात्रा मेलाथियॉन 50 ई.सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए। यदि ग्वार की फसल पशुओं के हरे चारे के रूप में उगाई गई है तो यह छिड़काव करने के सात दिनों तक पशुओं को नहीं खिलाया जाना चाहिए।

फसल के रोग ग्रस्त होने पर 15 से 20 दिन के अंतराल पर करें छिड़काव

अनुसंधान निदेशक डॉ0 राजबीर गर्ग ने बताया कि ग्वार की बुवाई करने के 50-60 दिन के बाद ग्वार की फसल में बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग का प्रकोप बढ़ जाता है। इस बीमारी को पौधों की पत्तियों पर भूरे एवं काले रंग के जलसिक्त धब्बों की सहायता से रोग की पहचान जा सकती है। बारिश के मौसम में यह धब्बे आपस में मिलकर आकार में बड़े हो जाते हैं। बाद में यह धब्बे पौधों के तनों एवं फलियों पर भी दिखाई देने लगते हैं और रोग से ग्रसित पौधों सूख जाते हैं।

रोग का नियंत्रण करने के लिए रोग की शुरूआती अवस्था में स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 30 ग्राम प्रति एकड़ एवं कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम मात्र प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल कर 15-20 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव अवश्य ही करने चाहिए।  

चारा अनुभाग के सहायक सस्य वैज्ञानिक डॉ0 सत्यपाल ने बताया कि बरसात के दिनों में जलभरव नहीं होने देना चाहिए। इसी प्रकार ग्वार की फसल में खरपतवार की समस्या से बचने के लिए गुड़ाई और बुवाई करने के एक माह के बाद यदि आवश्यकता हो तो ‘व्हील हैंड हो’ की सहायता से दूसरी गुड़ाई कर देनी चाहिए।

                                                                     

ग्वार की समय पर पककर तैयार होने वाली किस्मों में एचजी-365, एचजी-563, एचजी-2-20, एचजी-870 और एचजी-884 आदि प्रमुख हैं।    

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।