
जैविक विधि से पादप सूत्रकृमि नियंत्रण Publish Date : 29/07/2025
जैविक विधि से पादप सूत्रकृमि नियंत्रण
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
सूत्रकृमि (निमैटोड) एक ऐसा अनोखा सूक्ष्मजीवी है संसा के प्रत्येक भाग में पाया जाता है, परन्तु पादप परजीवी सूत्रकृमि
मुख्यरूप से मृदा पाया जाता है जिसे हम केवल सूक्ष्मदर्शी की सहायता से ही देख सकते हैं। पादप सूत्रकृमियों की विभिन्न प्रजातियाँ हमारी आर्थिक व्यवस्था को भी परोक्ष या अपरोक्ष रूप से प्रभावित करती हैं, जिनके दुष्प्रभाव से आमतौर पर 10-12 प्रतिशत तक फसलें प्रतिवर्ष नष्ट हो जाती हैं। कुछ पादप सूत्रकृमि ऐसे भी होते हैं जो कि पौधों की कलिकाओं, तनों और पत्तियों के ऊपर परजीवी के रूप में रहते हैं और अपना भोजन भी पौधों के इन्हीं भागों से प्राप्त करते हैं, परन्तु अधिकतर पादप परजीवी सूत्रकृमि अपना भोजन पौधों की जड़ों से ही प्राप्त करते हैं। पादप परजीवी सूत्रकृमियों से प्रभावित पौधों पर विभिन्न प्रकार के लक्षण पाए जाते हैं, जैसे पौधों की जड़ों में गाँठें बनना, जडों पर लाल भूरे रंग की धारियों का पड़ना, जडों का सड़ जाना, पौधों का पीला पड़ जाना, पौधे की पत्तियों का छोटा पड़ जाना या पौधों का बौनापन आदि मुख्य होते हैं। इस प्रकार से इन हानिकारक पादप परजीवी सूत्रकृमियों को नियंत्रित करना बहुत आवश्यक हो जाता है।
पादप परजीवी सूत्रकृमियों के नियंत्रण के लिए बहुत सी विधियाँ प्रयोग में लाई जाती है, परन्तु पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए इनका जैविक तरीकों से नियत्रंण करने की खोज हुई। यह एक ऐसी विधि है जिसको अपनाकर पादप परजीवी सूत्रकृमियों के आक्रमण और उनकी संख्या को बिना किसी हानिकारक रसायन का प्रयोग किए ही कम किया जा सकता है और फसल की उपज को संतोषजनक स्तर तक बढ़ाया जा सकता है। वर्तमान में सूत्रकृमियों के नियंत्रण हेतु प्रयोग में लायी जाने वाली कुछ विधियाँ इस प्रकार हैंः
कवकीय जैविक नियंत्रण
विश्व के प्रत्येक भाग की मिट्टी में बहुत से कवक एवं पाए जाते हैं, जिनको विभिन्न विधियों के द्वारा तरह-तरह के पादप सूत्रकृमियों की अवस्थापना से पृथक किया जा चुका है। यह कवक कई प्रकार के होते हैं।
अन्तःपरजीवी कवक
यह एक बहुत महत्वपूर्ण कवक है जो कि लगभग पूरी पृथ्वी पर ही पाया जाता है। इस कवक को आसानी से पहिचाना और अलग किया जा सकता है। इस कवक के माध्यम से जब पादप सूत्रकृमि संक्रमित होता है तब उस सूत्रकृमिक का पूरा शरीर कवक हाइफी या कोनिडियोस्पोर से भर जाता है और यह तरह-तरह की रचानाएं सूत्रकृमियों से निकलती हुई दिखाई देती हैं। यह कवक अपना जीवन चक्र मुख्य रूप से सूत्रकृमि के शरीर में ही पूर्ण करता है। इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं- कैटीनेरिया ऐनगुलूली, ड्रेस्चमीरिया कोनियोस्पोरा, निमैटोटॉक्टस, निमैटोठॉक्टस लियोस्पोरस और हिरसूटेला रोसाईलेन्सिस आदि।
सूत्रकृमि ट्रेपिंग कवक
यह कवक विभिन्न प्रकारकी आकृतियों को बनाकर सूत्रकृमियों को खाता है और इसके बाद कुछ विषैला पदार्थ भी इनके द्वारा स्रावित किया जाता है, जिससे सूत्रकृमियों की मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार से कवक सूत्रकृमियों को मिट्टी में ही पकड़कर उनकी संख्या को कम कर देते हैं।
अण्ड़ा एवं मादा परजीवी कवक
यह बहुत ही महत्वपूर्ण कवक है यह कवक पादप सूत्रकृमियों को समाप्त कर देते हैं। यह कवक मुख्य रूप से जड़गाँठ एवं सिस्ट प्रकार के पादप सूत्रकृमियों को अपना शिकार बनाते हैं। जैसे वर्टीसीलियम क्लामाइडोस्पोरियम, निमैटोरथोरा गाइनोफिला और एसीलोमाइसीज लिलासिनस आदि।
कुछ कवक ऐसे भी होते हैं जो पौधों की उपज को बढ़ाते हैं और पादप सूत्रकृमियों की संख्या को एक निश्ख्ति स्तर तक नीचे गिरा देते है जैसे ट्राइकोडर्मा हरजियानम।
पदप सूत्रकृमियों का जीवाणु नियंत्रण
जीवाणु प्रत्येक स्थान पर पाए जाने वाले वह सूक्ष्म जीव होते हैं, जिनका अध्ययन करना केवल सूक्ष्मदशी के द्वारा ही सम्भव हो पाता है। कुछ जीवाणु पादप सूत्रकृमियों पर परजीवी के रूप में रहते हैं और अपना पूरा जीवन चक्र इन्हीं सूत्रकृमियों पर पूर्ण करते हैं। इस प्रकार यह जीवाणु पादप सूत्रकृमियों की संख्या को नियंत्रित करते हैं, जिससे पौधों की उपज बढ़ जाती हैं, जैसे पॉस्चुरिया पेनीट्राँस।
पादप वृद्वि मूल के जीवाणु
यह एक महत्वपूर्ण जीवाणुओं का समूह होता है, जिनका वर्तमान कृषि में महत्वपूर्ण योगदान है। इस प्रकार के जीवाणु एक ओर तो पौधों की उपज को बढ़ाने में सक्रिय योगदान प्रदान करते है तो दूसरी ओर पादप सूत्रकृमियों को भी एक निश्चित् संख्या से नीचे ही रखते हैं। इस प्रकार के जीवाणुओं के विभिन्न प्रकार के उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं जिनका प्रयोग कई तरीकों से किया जाता है। विभिन्न प्रकार के यह जीवाणु मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा को संचित करते हैं तथा मिट्टी में अघुलनशील फॉस्फेट को घलनशील फॉस्फेट में परिवर्तित करते हैं और पौधों की बढ़वार में सहायता करते हैं, जैसे स्यूडोमोनास फ्लोरीसेन्स और बैसीलस सबटिलिस आदि।
समन्वित पादप परजीवी सूत्रकृमि प्रबन्धन
यह एक ऐसा तंत्र है जो बहुत सी विधियों को एकसाथ समन्वित कर पादप सूत्रकृमियों का नियंत्रण करते हैं। इस विधि में पर्यावरण दूषित न हो इसका भी पूरा ध्यान रखा जाता है। पादप सूत्रकृमि नियंत्रण की इस विधि का मुख्य उद्देश्य पादप परजीवी सूत्रकृमियों की संख्या को हानिकारक स्तर से रख्ना और फसल की उपज को बढ़ाना होता है। इस प्रकार की विधि में मुख्य रूप से जैविक नियंत्रण और प्रतिरोधी पौधों का भरपूर समावेश किया जाता है। इस विधि को प्रयोग में लाने के के लिए किसान को प्रत्येक विधि की पूरी जानकारी होना अति आवश्यक है।
भारत का प्रमुख व्यवसाय कृषि है और जैविक नियंत्रण पर्यावरण की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण होते हैं एवं कम खर्च में ही इनको प्रयोग किया जा सकता है। रासायनिक सूत्रकृमि नाशकों के विपरीत प्रभावों के प्रति अब पूरी दुनिया में जागरूकता आई है, जिससे भविष्य में पर्यावरणीय हितकारी विधियों का प्रयोग कर पादप सूत्रकृमियों से होने वाली हानियों से बचा जा सकता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।