
राई-सरसों में जलवायु वाहक कीट प्रबन्धन Publish Date : 07/10/2025
राई-सरसों में जलवायु वाहक कीट प्रबन्धन
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य
राई-सरसों के प्रमुख कीट आरा मक्खी
इस कीट प्रभावित पत्तियां हिलाने पर लटें नीचे गिर जाती है. यह कीट अक्टूबर में दिखाई देता है व नबंवर से दिसंबर तक काफी नुकसान करता है. पूर्ण विकसित लटें 2 सेन्टीमीटर लम्बी गहरे भूरे रंग होती है जिनके शरीर पर झुर्रियां होती है। यह कीट जमीन के अन्दर प्यूपा में बदल जाती है और प्यूपा से 1-3 दिन में प्रौढ़ मक्खियां निकलकर अण्डे देती है और यह कीट मार्च तक सक्रिय रहता है।
मार्च-अप्रैल में लटें भूमि में घुसकर ककून अवस्था में व्यतीत करती है जो पुनः जुलाई के मध्य प्रकट होकर सक्रिय हो जाती है। सरसों की फसल उगते ही इनका प्रकोप शुरू हो जाता है। अतः फसल की छोटी अवस्था में इससे भारी क्षति होती है।
कीट का प्रबंधन:- कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें, जिससे कीट का प्यूपा जमीन की ऊपरी सतह पर आ जाते हैं, जो धूप व चिड़ियों द्वारा नष्ट कर दिए जाते हैं। मूली, शलजम, तोरिया की अगेती फसलों पर कीट की रोकथाम के उपाय करने चाहिए। इससे सरसों पर कीट के प्रकोप की संभावना कम हो जाती है। खेत व खेत के चारों ओर के कूड़े करकट को जलाकर नष्ट कर दें, खेत में पानी देने से सुंडियां पानी में डूब कर मर जाती है।
अधिक प्रकोप की अवस्था में मेलाथियान 50 ई.सी. या इण्डोसल्फान 35 ई.सी. की 500 मिली. मात्रा की 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकता के अनुसार यह छिड़काव दोबारा करना चाहिए। नीम तथा महुआ के बीजों की गिरी के पेस्ट के 5 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करने से भी अच्छे परिणाम मिलते है, विशेष रूप से 25 अक्टूबर से पूर्व बुवाई की गई फसल पर।
पेन्टेड बग या चितकबरा कीट
यह कीट 5-7 मिलीमीटर चौड़ी काले रंग की होती है। यह एक सुन्दर सा दिखने वाला काला भूरे रंग का कीट होता है। कीट के ऊपरी भाग पर लाल पीले बिन्दु होते हैं। यह करीब 4 मिमी लम्बा होता है। कीट फसल की प्रारंभिक अवस्था सितम्बर-नवम्बर में तथा फली बनने की अवस्था फरवरी-मार्च में हानि पहुंचाते हैं।
कीट का प्रबंधन:- कीट का प्रकोप सरसों के माहू चेपा कीट से संक्रमित पौधा की प्रारंभिक अवस्था में कीड़ों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए। अण्डे नष्ट करने के बाद खेत की गहरी जुताई करना लाभकार रहता है। पत्तियों एवं फलियों पर पाए गए अण्डों को नष्ट करे और इन कीड़ों को खाने वाले पक्षियों को आश्रय देना चाहिए। पहला पानी 30 दिन में दे दें। फसल की कटाई समय पर करें।
इस कीट की रोकथाम हेतु 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टर के हिसाब से 4 प्रतिशत इण्डोसल्फान या 1.5 प्रतिशत क्यूनालफॉस चूर्ण का भुरकाव करना उचित है। उग्र प्रकोप के समय मेलाथियान 50 ई.सी. की 500 मिली. मात्रा या इण्डोसल्फान 35 ई.सी. की 625 मिली. की मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर छिड़काव करना प्रभावी उपाय है।
बिहार हेयरी केटरपिलर
इस कीट की सुंडियां ही फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। छोटी सुंडी समूह में रहकर फसल को नुकसान पहुंचाती है, जबकि बड़ी सुंडी जो करीब 40-50 मि.मी. तक लम्बी हो जाती है तथा उसके ऊपर घने, लम्बे नारंगी से कत्थाई रंग के बाल आ जाते है। इस कीट की सुंडी झुण्ड में इकट्ठा होकर पत्तियों के पर्णहरित को खाती हैं। पत्तियां कागज जैसी पर्णहरित रहित व पारदर्शी हो जाती है। सुंडियां एक खेत से दूसरे खेत में गमन करती है। यह पत्तियों को किनारे की तरफ से खाते हैं, यह एक दिन में अपने शरीर के वजन से अधिक पत्तियां खा सकती है और पूरे पौधों को पत्तियों से रहित बना देती हैं, जिससे पूरी फसल नष्ट हो जाती है और फसल दोबारा बोनी पड़ सकती है।
कीट का प्रबंधन:- कीट के लार्वा को प्रथम और द्वितीय अवस्था में ही इनके झुण्ड को पत्तियों सहित पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए। इन सुंडियों को इकट्ठा करके कैरोसिन व जल के बाल में कर कीटनाशी के घोल में डुबोकर नष्ट कर देना चाहिए। इण्डोसल्फान 4 प्रतिशत धूल का खेत के चारों तरफ घेरा सा बना देना चाहिए ताकि दूसरे खेतों में सुंडियां न जाएं।
अधिक प्रकोप की अवस्था में फसल पर इण्डोसल्फॉन 4 प्रतिशत धूल 20-25 किग्रा. की दर से भुरकाव करें या मेलाथियान ई.सी. 50 या एण्डोसल्फॉन 35 ई.सी. की 1.0 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में डालकर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
माहू अथवा चेपा कीट
यह राई-सरसों का एक प्रमुख कीट है जो कि सरसों उगाए जाने वाले देश सभी भागों में पाया जाता है। इस कीट के प्रकोप से फसल उत्पादन सबसे अधिक प्रभावित होता है। इस कीट के दो रूप होते हैं, एक बिना पंख वाला तथा दूसरा पंख वाला। बिना पंख वाले झुंड के कीट पौधों की कोमल पत्तियों, डण्ठलों, फूलों एवं फलियों पर चिपके रहते हैं तथा पंख वाले उड़कर कीटों का प्रसार करते हैं। फसल पर पंखदार कीट के द्वारा ही प्रकोप का आरंभ होता है और शीघ्र ही इनकी संख्या बढ़ जाती है। 2-3 दिन जाड़े में बादलों वाला मौसम (अधिकतम तापमान 16-30 डिग्री सेल्सियस, न्यूनतम 4-12 डिग्री सेल्सियस व आर्द्रता 60-80 प्रतिशत) कीट प्रसार के लिए उपुयक्त होता है, इसलिए जनवरी के अंत तथा फरवरी में इस कीट का प्रकोप सबसे अधिक रहता है। मार्च-अप्रैल में तापमान बढ़ने पर पंखदार कीट ठंडे स्थान पर जाकर छुप जाते हैं।
कीट का प्रबंधन:- अक्टूबर तक बुवाई व संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करने से कीट का प्रभाव कम हो जाता है। चेपा कीट खेत के बाहरी पौधों पर पहले आता है। अतः उन पौधों की प्रभावित पत्तियों एवं संक्रमित टहनियों को तोड़कर नष्ट कर देने से लाभ प्राप्त होता है। महू के परभक्षी कीट कोक्सीने ला, इन्द्रगोप, क्राइसोपा, सिरफिड मक्खी आदि को संरक्षण प्रदान करें। आवश्यकता हो तो बाहर से इन्हें लाकर छोडा जा सकता है।
जब कम से कम 10 प्रतिशत पौधों पर 25-26 चेंपा प्रति पौधा दिखाई दे तो तभी मेटासिस्टाक्स 25 ई.सी. या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. या डाइमिथिएट 30 ई.सी. दवा को 1 ली. प्रति है. की दर से 600-800 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करने से लाभ होता है।. यदि दोबारा कीड़ों की संख्या बढ़ती है तो दोबारा से छिड़काव करें।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।