
सरसों की फसल में एकीकृत कीट प्रबंधन Publish Date : 30/09/2025
सरसों की फसल में एकीकृत कीट प्रबंधन
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
खाद्य तेलों के लिए ली जाने वाली फसलों में मूंगफली व सोयाबीन के बाद सरसों का एक प्रमुख स्थान है। इसका भारत में प्रतिवर्ष औसत उत्पादन लगभग 50 टन होता है। इसकी प्रति है. उत्पादकता 875 कि.ग्रा. है। जो कि विश्व की उत्पादकता 1543 कि.ग्रा. से लगभग आधी है। जबकि अल्जीरिया इसका उत्पादन 666 कि.ग्रा प्रति हे. की दर से ले रहा है। मध्य प्रदेश में सरसों की खेती लगभग 592.4 हजार हे. में होती है, तथा इसका प्रति वर्ष उत्पादन लगभग 543.9 हजार टन होता है।
प्रदेश व देश में सरसों की कम उत्पादकता का प्रमुख कारण उचित प्रतिबन्ध के अतिरिक्त इसमें लंगने वाली कीटों के कारण होने वाली हानि है। इस फसल को लगभग दो दर्जन कीट फसल की में नुकसान विभिन्न अवस्थाओं में नुकसान पहुँचाते हैं। इन कीटों में से माहूँ (लिपेफिस एरीसीमी) इसका प्रतिवर्ष आने वाला सबसे प्रमुख कीट है। इसके अतिरिक्त कबरा, (मत्कुरण पटेड बग) आरा मक्खी (सॉफ्लाई) तथा पिस्सू भंग (फ्लीआ बीटिल) भी कुछ वर्षों में आर्थिक हानि पहुँचाते है।
प्रमुख कीट- वैसे तो सरसों को हानि पहुँचाने वाले कीटों की संख्या काफी है। परन्तु मुख्य निम्न प्रकार है। सरसों को नुकसान पहुँचाने वाले कीटों को दो भागो में बाटों जा सकता है।
1. रस चूसक कीट
2. काटने चबाने वाले कीट
(1) रस चूसक कीट
माहूँ- यह कीट सरसों का नियमित कीट है। जो साल भर कहीं न कहीं उपस्थित रहता है। परन्तु सरसों की फसल पर इस कीट का आक्रमण नवम्बर मे प्रारम्भ हो जाता है। तभी से फसल को नुकसान पहुँचना शुरू हो जाता है इस कीट द्वारा फसल को हानि दिसम्बर, जनवरी व फरवरी में अधिक होती हैं। इस कीट का शिशु तथा प्रौढ़ दोनों ही हानिकारक अवस्थायें हैं। जिसमें चूसने वाले मूखांग पाये जाते हैं।
यह हजारों लाखों की संख्या में एकत्रित रहकर पौधों की पत्तियों, फूलों, फलीयों, तना आदि से उनका रस चूसते हैं। इस कारण प्रकोपित पौधों की पत्तियाँ मुरझा जाती है। तीन आक्रमण होने से पौधे छोटे रह जाते हैं। उनमें नयी शाखायें नहीं पनप पातीं। इसके अलावा यह कीट पौधों पर मधुरस विसर्जित करते हैं, जिस पर चिटियाँ आकर्षित होती हैं। उनके कारण माहूँ पर परजीवी कीट नहीं आते है।
चिटियों के एक जगह से दूसरी जगह जाने के कारण चिटियों के अतिरिक्त काला कवक नामक रोग भी पौधों को लग जाता है। माहूँ के प्रकोप का प्रभाव सरसों की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों पर पड़ता है।
समन्वित कीट प्रबंधन- माहूँ के नियंत्रण के लिए सबसे पहले उसके शिकारी कीट को पहचानकर उनको कीटनाशकों से बचाना चाहिये। जिससे प्राकृतिक रूप से अपने शिकारी कीट एवं परजीवियों द्वारा नष्ट हो सके ।
- माहू के शिकारी कीट जैसे लेडी बर्ड बीटिल करें। काक्सीनेला सेप्टम पंक्कटाटा काक्सीनेला रेपन्डा मीनोचिलस सेक्समेकुलस हैं।
- क्रायसोपा (हरे रंग का) जिसे एफीड लायन भी कहते हैं। यह कीट माहूँ का भक्षण करते हैं तथा काफी संख्या में माहूँ को नियंत्रण करते हैं।
- (डायटरेस रेपी परजीवी) यह कीट जीवी माहूँ के भीतर घुसकर माहूँ को खा जाता है, जिसके कारण माहूँ के केवल सुनहरे खोल खेत में रह जाते हैं।
अतः किसान भाईयों को इन कीटों की पहचान करके उन्हें कीटनाशी दवाओं के हानिकारक प्रभाव से फसल को बचाना चाहिए।
- सरसों की बुआई आम फसल की बुआई के समय से थोड़ी जल्दी कर दी जाय तो माहू का आक्रमण बहुत कम होता है और कभी कभी तो फसल आक्रमण से बच जाती है। शीघ्र पकने वाली जातियाँ बोनी चाहिये ।
- रासायनिक नियंत्रण से फसल पर ऐसीफेट 75 डब्ल्यू.पी. 400 ग्राम प्रति हेक्टेयर या डायजिनान 20 ई.सी. 1200 लीटर प्रति हेक्टेयर या एसीटामप्रिड 20 एस.पी. 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 700-800 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तर से 2-4 बार आवश्यकतानुसार छिड़कावकरें ।
पेन्टेड बग (कबरामत्कुण)- इस कीट के शिशु एंव वयस्क पौधे के विभिन्न भागों से कोमल एवं परिपक्व अवस्था के पौधों से रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं।
कीट अक्टूबर नवम्बर में पहली बार और मध्य मार्च में दूसरी बार आता है, और कटाई तक सक्रिय रहता है। काटी गयी फसल के साथ खलियान तक पहुँचकर क्षति पहुँचाता रहता है। इस कीट के आक्रमण से 10-40 हानि पहुँचती है। जब पौधे छोटे होते हैं। तब इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर फसल को कभी कभी दोबारा बोना है। कीट ग्रसित पौधे रोगी दिखायी पड़ते है, और उनकी वृद्धि रूक जाती है। फसल कटाई के पश्चात् बीजों का रस चूसते हैं। जिससे तेल की मात्रा कम हो जाती है। वयस्क कीट काला चमकीला होता है, और इसके पंखों पर कई भूरी या नारंगी धारियाँ तथा पीले बिंदु पाये जाते हैं।
समन्वित कीट प्रबन्धन
- सर्वप्रथम इस कीट के अण्डा शिशु एवं प्रौढ़ परजीवी कीटनाशकों के असर से बचाकर रखना चाहिये।
- अण्डा परजीवी लाइफोन्यूरस सेमुली, टाइफोडाईटिस शिशु तथा प्रौढ़ परजीबी-एलोफोरा सिंचाई करते समय 5 कि.ग्रा. क्रूड इमल्सन/हे. की दर से मिलाना चाहिये।
- रासायनिक नियंत्रण में फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. की 150 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या ऐसीफेट 75 डब्ल्यू.पी. 400 ग्राम प्रति हे क्टेयर या एसीटामप्रिड 20 एस.पी. 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 700-800 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तर से 2-4 बार आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
(ब) काटने चबाने वाले कीट-
आरा मक्खी- यह कीट अक्टूबर नवम्बर में सक्रिय रहता है। कीट की फसल इल्ली सरसों जाति की फसल को भयंकर रूप से हानि पहुँचाती है। इल्ली पौधों की कोमल पत्तियों को काटकर खाती है, तथा उनमें सैकड़ों छिद्र कर देती है। फलस्वरूप पत्तियाँ सुखने लगतीं हैं, और बढ़वार रूक जाती है। यदि आक्रमण छोटी अवस्था में प्रारम्भ हो जाता है, तथा कीट संख्या अधिक हो जाती है तो कभी कभी पूरी फसल नष्ट हो जाती है, और उसे दोबारा बोना पड़ता है।
नर्सरी में इस कीट का प्रकोप अधिक होता है। प्रकोपित पौधे कमजोर उनमें फलोयाँ नहीं लगती हैं, एवं पैदावार में कमी आ जाती हैं। सूड़ियाँ सुबह के समय अधिक पायी जाती हैं और पत्तियों के मध्य शिश पर रहकर पत्तियों के किनारे से खाती हैं। कीट के द्वारा सरसों की 40 तक पैदावार में कमी हो जाती है।
समन्वित कीट प्रबंधन-
- सर्वप्रथम जैव नियंत्रण के अन्तर्गत इसके सूड़ी परजीवी एक्जाक्रोडस पोप्यूलेन्स, सूंड़ी शिकारी कीट कैंथीकोनिडिया फरसीलेटा, सिरोसिया माक्रसेन्स जीवाणु जो कि लार्वी को मारता है। फसल पर 0.65 प्रतिशत लिण्डेन या पायरोडस्ट 25 कि.ग्रा/है. की दर से या मैलाथियॉन 5 चूर्ण 25 कि.ग्रा./हे. की दर से भुरकाव करें।
- क्विनॉलाफास 25 ई.सी. 1 लीटर/हे. या फैन्थोऐट 50 ई.सी. 500 मि.ली. हे. या ऐसीफेट 75 डब्ल्यू पी. 400 ग्राम/हे. की दर से 700-800 लीटर पानी में घोल, बनाकर 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
- ब्रस्टेनाल 45 प्रतिशत (गौला होने योग्य) का घोल बनाकर छिड़काव करें। इससे फसल को कीट नहीं खाते ।
फ्लीआ बीटल पिस्सू भंग- यह सरसों का प्रमुख कीट हैं। सरसों के अलावा मूली, गोभी, डहेलिया मीठी मटर इत्यादि पर भी प्रकोप करता है। पौढ़ भृंग हारिकारक अवस्था है। जिसके काटने चबाने वाले मुखांग होते हैं, ये पत्तियों पर अनेकों गोलाकार छिद्र बनाकर खाते है, और पत्तियों के अलावा ये फुलों फलों व तनों को भी प्रकोपित करते हैं। पुरानी जाती हैं, खायी हुयी पत्तियाँ सूख और नवीन प्रकोपित पत्तियाँ खाने योग्य नहीं रहतीं ।
समन्वित कीट प्रबन्धन- क्विनॉलफॉस 25 ई.सी. 1 लीटर हे. या फेन्थोएट 50 ई.सी. मि.ली./हे. या एसीफेट 75 डब्ल्यू.पी. 400 ग्राम/हे. की दर से 700-800 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार आवश्यकतानुसार छिड़काव करें। प्राकृतिक शत्रु प्रौढ परजीवी माइक्रोटोन्स इन्डिकस।
लीफ माइनर (पत्ती सुरंगक)- कीट फरवरी मार्च में सक्रिय रहता है। कीट के आक्रमण के फलस्वरूप पत्तियों पर आड़ी तिरछी लकीरें जोकि सफेद व रंगहीन होती हैं। आसानी से देखी जा सकती है। अधिक प्रकोप के समय में पौधे की प्रकाश संलेषण प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न हो जाता है। पत्तियों पर अनियमित तरीके से बनी सुरंग ही इस कीट की पहचान है।
समन्वित कीट प्रबंधन- एण्डोसल्फान 4 प्रतिशत चूर्ण 20-25 कि.ग्रा./हे. या फेन्थोएट50 ई.सी. 500 मि.ली/हे. या ऐसीफेट 75 डब्ल्यू.पी. 400 ग्राम/हे. की दर से 700-800 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।बिहार रोऐंदार इल्ली (स्पाइलारक्शिया ओबलिक्वा) वयस्क 40-50 मिमी. लम्बा होता है जो भूरे रंग का एवं लाल पेट वाला होता है। पत्तियों के निचले भाग में 50-100 के समूह में अण्डे दिये जाते है। 5 सेमी लम्बे काले बालों से इल्ली बिरी रहती है। सूखी मिट्टी में प्यूपा बनता है। पत्तियों के निचले हिस्सों को इल्ली बहुत खाती है और अधिक संक्रमण पर पूरा पौधे की पत्तियां खा लेती हैं संक्रमित पत्तियां सूख जाती है।
समन्वित कीट प्रबन्धन
- मानसून के पहले गहरी जुताई करें और मिट्टी में छिपे हुए प्यूपा को अलग करें। परपोषी पौधे हटायें एवं नष्ट करें संक्रमित पौधे एवं उनके, भाग, अण्डे एवं इल्लियों को इकट्ठा करके नष्ट करें।
- निम्नलिखित जैविक कीट नियंत्रण साधनों की संरक्षित कर जैव नियंत्रण को प्रोत्साहित किया जा सकता है। जैसे स्पाइडर, स्टेफेलिनिड, बिटल, ड्रेगन फ्लाई, मिरिड बग, मिनोचिलस, टाइकोग्रामा कोटेसियाः अण्ड प्लेटीगेस्टर, परजीवी नियानस्टेट्स, हेपिलोगोनोटोपस, एपेन्टेलिस, टिलेनोमस, टेस्टिकस इत्यादि।
- जैविक नियंत्रक जैसे बेवेरिया बेसियाना जीवाणु का 1 किग्रा. अथवा 1 लीटर प्रति हेक्टर की दर से 30 से 35 एवं 50 से 55 दिन की फसल अवस्था पर छिड़काव पत्ती भक्षक इल्लियों हेतु उपयोगी है।
- बैसिलस थुरेन्जेंसिस जीवाणु का 1 किग्रा. अथवा 1 लीटर प्रति हेक्टर की दर से 30 से 35 एवं 50 से 55 दिन की फसल अवस्था पर छिड़काव पत्ती भक्षक इल्लियों हेतु उपयोगी है।
- रासायनिक कीटनाशक का उपयोग आर्थिक देहली स्तर को पार करने पर ही करें।
- खेत के चारों और गहरे खाई बनाए और 2 प्रतिशत मिथाईल पैराथीआन को उसमें डालें जिससे रोयेंदार इल्लीका पलायन रोका जा सके।
केबेज शीर्ष छेदक (हेलूलाअनडेलिस)- शलभ ग्रे भूरे और बीच में लाल रंग होता है। अगले पंख ग्रे लहरदार और निचले पंख धुधले होते हैं। इल्ली धुंधली सफेद भूरी होती है और इसके 4 से 5 गुलाबी भूरे धारियां होती हैं। इल्ली पत्तियों को छेदती है और उसे सफेद कागज से बना देती है। तने को भी छेदते हैं और तने का प्रवेश छेद रेशम और मलसे भरा रहता है।
समन्वित प्रबंधन
- संक्रमित पौधे एवं उनके भाग, अंडे एवं इल्लियों को इकट्ठा करके नष्ट करें।
- 5 प्रतिशत मेलाथियान को 37.5 किग्रा./हे. की दर से पूर्ण विकसित इल्ली के नियंत्रण के लिए उपयोग करें।
- कार्टेप हाइड्रोक्लोराइड 50 एस.पी. 700 ग्राम/हे. या इन्डोक्साकार्ब 14.5 ई.सी. 400मिली./हे. या स्पाइनीसेड 45 ईसी 250 ग्राम/हेक्टेयर की दर से 700-800 लीटर पानी में घोल बनाकर 2-3 छिड़काव आवश्यकतानुसार करें।
डायमंडबेक मोथ (प्लूटेला जाइलोस्टेला)- वयस्क छोटा ग्रे मोथ में तीन त्रिभुज के आकार के धब्बे अगले पंख में दिखाई पड़ता है। पंख में त्रिकोणीय धब्बे हीरा के आकार के हो जाते हैं। इल्ली धुधला हरा और दोनों तरफ नुकीली रहती है। फेरोमेन प्रपंच से निरीक्षण किया जाता है। इल्ली पत्तियों को खाती है। पत्तियां मुरझा जाती है और बाद की अवस्था में इल्ली पत्तियां को छेदकर उन्हें पूरा खाती हैं। यह फल्लियों को भी छेदती है और विकसित होते बीजों को खाती हैं।
समन्वित प्रबंधन
- संक्रमित पौधे एवं उनके भाग, अंडे एवं इल्लियों को इकट्ठा करके नष्ट करें।
- फेरोमेन प्रपंच से निरीक्षण किया जाता है।
- कोटेशिया प्लुटेली को संरक्षित करें।
- डाईडेगमा इसूलारे को संरक्षित करें।
- 5 प्रतिशत मेलाथिओन को 37.5 किग्रा./हे. की दर से पूर्ण विकसित इल्ली के नियंत्रण के लिए उपयोग करें। 940 मिली ट्राईक्लोफॉन को 600 से 700 मिली. डाईजीनान 20 ई.सी. 600-700 लीटर की दर से उपयोग करें। यह कीट कई कीटनाशकों के प्रति सहनशील है। ट्राईजोफॉस प्रभावी है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।