पूसा संस्थान की धान में फुदका कीट से फसल बचाने और पैदावार बढ़ाने के लिए उन्नत तकनीकें      Publish Date : 18/09/2025

पूसा संस्थान की धान में फुदका कीट से फसल बचाने और पैदावार बढ़ाने के लिए उन्नत तकनीकें

                                                                                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता

धान में फुदका कीट से फसल बचाने के लिए पूसा संस्थान की यह तकनीकें बढ़ाएंगी पैदावार। धान की फसल उत्तर भारत के किसानों के लिए उनकी आय का प्रमुख स्रोत है, लेकिन ब्राउन प्लांट हॉपर और व्हाइट बैक प्लांट हॉपर जैसे फुदका कीट इसकी पैदावार को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान आईसीएआर, पूसा के विशेषज्ञों ने इन कीटों के प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक और प्रभावी उपाय सुझाए हैं। ऐसे में यदि आप धान की खेती करते हैं, तो यह जानकारी आपकी फसल को सुरक्षित रखने के साथ ही उसकी पैदावार को बढ़ाने में भी मददगार साबित होगी।

फुदका कीटः धान का रस चूसने वाला कीट

                                                               

फुदका कीट, विशेष रूप से ब्राउन प्लांट हॉपर और व्हाइट बैक प्लांट हॉपर, धान की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख रस चूसक कीटों में शामिल हैं। पूसा संस्थान के वैज्ञानिक बताते हैं कि इन कीटों के शिशु (निम्फ) और व्यस्क दोनों ही पौधों से रस चूसकर उन्हें कमजोर कर देते हैं। इससे धान की फसल में पौधे पीले पड़ जाते हैं, और यदि प्रकोप अधिक बढ़ जाए, तो पौधे पूरी तरह से सूख जाते हैं। इस स्थिति को हॉपर बर्न कहा जाता है, जो फसल को 20-30 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकता है।

फुदका कीट से बचाव के लिए वैज्ञानिक उपाय

ICAR के विशेषज्ञों ने फुदका कीट को नियंत्रित करने के लिए कुछ कारगर उपाय सुझाए हैं, जो इस प्रकार से हैं-

1. प्रकाश ट्रैप का उपयोगः व्यस्क फुदकों को पकड़ने के लिए खेत में प्रकाश ट्रैप (लाइट ट्रैप) उपयोग करने से लाभ होता है। इसके लिए एक प्लास्टिक टब में पानी और थोड़ा कीटनाशक मिलाएं, फिर इसके ऊपर एक बल्ब जलाएं। कीट रोशनी की ओर आकर्षित होकर पानी में गिरकर मर जाते हैं। यह पर्यावरण-अनुकूल और प्रभावी तरीका है, जिससे वातावरण भी सुरक्षित बना रहता है।

2. खेत का जल प्रबंधनः अगर खेत में फुदका दिखाई दे, तो खेत को सूखने दें और उसका उपचार करने के बाद ही सिंचाई करें। इससे कीटों की संख्या को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

3. निगरानी और आर्थिक स्तर परः जब प्रति पौधा 5-10 फुदके दिखाई दें, तो यह आर्थिक दहलीज स्तर (Economic Threshold Level – ETL) माना जाता है। इस स्तर पर कीटनाशकों का उपयोग करना आवश्यक हो जाता है।

4. कीटनाशकों का सही उपयोगः जब फुदका कीट का प्रकोप आर्थिक दहलीज स्तर तक पहुंच जाए, तो अग्रलिखित कीटनाशकों का उपयोग करना उचित रहता है-

  • त्रिफ्ल्यमेज़ोप्यिम 10% SC: 94 मिलीलीटर प्रति एकड़।
  • फ्लुप्यरिमिन 10% SC: 300 मिलीलीटर प्रति एकड़।
  • प्रमेट्रोज़िन 50% WG: 120 ग्राम प्रति एकड़।

किसानों के लिए महत्वपूर्ण सलाह

पूसा संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि फुदका कीट से बचाव के लिए खेतों की नियमित निगरानी करना बहुत जरूरी है। पौधों के निचले हिस्सों की जांच करें और शुरुआती लक्षण दिखाई देते ही बचाव के उपाय शुरू करें। कीटनाशकों का उपयोग करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए-

बार-बार एक ही कीटनाशक प्रयोग न करें: इससे कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सकती है।

उचित सुरक्षा के उपाय अपनाएं: कीटनाशकों का उपयोग सही मात्रा में करें और छिड़काव के दौरान मास्क, दस्ताने जैसे सुरक्षा उपकरणों का आवश्यक रूप से उपयोग करें।

पर्यावरण-अनुकूल तरीके अपनाने को प्राथमिकता दें: प्रकाश ट्रैप जैसे उपाय रासायनिक कीटनाशकों की निर्भरता को कम कर प्रभावी काम करते हैं।

धान की फसल न केवल किसानों की आजीविका का आधार है, बल्कि यह देश की खाद्य सुरक्षा में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पूसा संस्थान की इन वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाकर आप अपनी फसल को फुदका कीट से बचा सकते हैं और पैदावार में भी वृद्धि कर सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।