गन्ने में टॉप बोरर/अगोला भेदक/चोटी भेदक लक्षण, पहचान और उपचार      Publish Date : 07/05/2025

गन्ने में टॉप बोरर/अगोला भेदक/चोटी भेदक लक्षण, पहचान और उपचार

                                                                                                                     प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

प्रभावित पौधे के लक्षण

  • इस कीट की सूँड़ी गन्ने के ऊपरी भाग मे रहती है, जो बढ़वार वाले बिन्दु को खाते हुए आगे बढ़ती है।
  • गन्ने के बड़े पौधों में मृत गोभ होती है, जिसको सरलता से नहीं खींचा जा सकता।
  • कीट की सूँड़ी पौधे की मध्यशिरा में सुरंग बनाकर प्रवेश करती है, जिससे लाल छिद्र समानांतर पंक्तियों में गन्ने की गोभ में दिखाई देते हैं।
  • गन्ने के अगाले में छिद्र बनाने के साथ ही गन्ने में कनफर्रा (नीचे की आँखे फूटना) जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

कीट की पहचान

                                       

अंडें: ऊपरी पत्तियों की निचली सतह पर मध्य शिरा के समीप, अंड समूह भूरे रंग के बालों से ढके रहते हैं।

लार्वा/सूँड़ीः सफेद या हल्के पीले रंग की, जिसके शरीर के मध्य में एक लाईन होती है बौर इसका सिर पीले रंग का होता है।

प्यूपा/कोयाः रेशम की नलिका बनाकर उसके अंदर सूँड़ी, बाहर आने के लिए एक छेद बनाती हैं।

वयस्क/प्रौढ़ः इस कीट का प्रौढ़ सफेद रंग का होता है और नर कीट का आकार मादा कीट के आकार से छोटा होता है। मादा के उदर के अंतिम हिस्से पर भूरे लाल रंग के रेशमी बालों का गुच्छा होता है।

एकीकृत कीट प्रबन्धन

                                               

  • गन्ने की बुवाई समान्तर पंक्ति विधि से की जानी चाहिए और पत्तियों को बिछाकर कूडों पर हल्की मिट्टी चढ़ाएं।
  • फसल की नियमित निगरानी करें तथा वयस्क/प्रौढ़ कीटों को पकड़ने के लिए प्रकाश पाश (प्रति एकड़) अथवा यौनगंध पाश (फेरोमोन ट्रेप 10 प्रति एकड़ की दर से) अप्रैल माह के दौरान लगाएं।
  • कीट के पतंगे दिखाई देने पर अभियान चलाकर अंड़ समूह को एकत्र कर उसे नष्ट करें।
  • पतंगों के दिखाई देने के 7-10 दिन के अंदर अंड परजीवी ट्राईकोग्रामा जेपोनिकम के 2-3 कार्ड प्रति एकड की दर से खेत में लगाए।

नियंत्रण की रासायनिक विधियाँ

  • क्लोरेन्ट्रानिलिप्रोल (कोरेजन 165 एस.सी.) के प्रति हेक्टेयर 325 मिली0 का 800 लीटर पानी में घोलबनाकर स्पिंडल से नीचे-नीचे ड्रेचिंग करें।
  • कीट की तीसरी पीढ़ी (जून के अंत) में क्लोरेन्ट्रानिलिप्रोल 0.4 जी0 आर0 अथवा फिप्रोनील 0.6 जी0 आर0 08 किलोग्राम, कार्बोफ्यूरॉन 3-जी के 12 किग्रा0 दाने प्रति हे0 की दर से पौधों की जड़ों के पास मिट्टी में डालें। प्रयोग के समय भूमि में पर्याप्त नमी उपलब्ध होना अति आवश्यक है।
  • क्लोरेन्ट्रानिलिप्रोल 10 एस.सी. + लेम्डा सायहैलोथ्रीन 5 एस.सी. 400 मिली0 का 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।