गन्ने में टॉप बोरर और पायरिला का नियंत्रण कैसे करें      Publish Date : 02/05/2025

    गन्ने में टॉप बोरर और पायरिला का नियंत्रण कैसे करें

                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य

  • किसान भाईयों जैसा कि आप जानते ही हैं कि वर्तमान समय टॉप बोरर की द्वितीय ब्रीड का है, जिसका नियंत्रण करने में यांत्रिक विधियां ही अधिक कारगर रहती हैं।
  • गन्ने के किसान तितली का नियंत्रण करने के लिए खेत में फेरोमोन ट्रेप अथवा लाइट ट्रैप का प्रयोग कर सकते हैं।
  • कीटों के एगमॉस युक्त पत्तियों एवं लार्वा से संक्रमित कल्लों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • गन्ने में टॉप बोरर की द्वितीय एवं तृतीय ब्रीड के नियंत्रण के लिए 15 मई के बाद एवं 15 जून से पूर्व क्लोरेन्ट्रानिलिप्रोल 150 मि.ली. मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में घोलकर पौधों की जड़ों के पास डेªन्चिंग करने के बाद सिंचाई करें।
  • इसके जैविक नियंत्रण के लिए परजीवी ट्राइकोडर्मा जापोनिका का 50,000 वयस्क/हे0 की दर से जून माह के अंतिम सप्ताह से 15 दिन के अन्तराल पर प्रयोग करें।
  • पायरिला के परजीवी इपिरिकेनिया मिर्लनोल्यूका क भी खेतों में पर्याप्त संख्या देखने में आ रही है और पायरिला का प्रकोप भी मन्द पड़ गया है। अतः किसानों को सलाह दी जाती है कि वह इसका रासायनिक नियंत्रण करने से बचें।
  • तापमान एवं नमी के बढ़ने के साथ ही इसका नियंत्रण स्वतः ही हो जाता है। परन्तु अधिक प्रकोप होने की दशा में क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी 800 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से 625 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना उचित रहेगा। ब्लैकबग का नियंत्रण करने के लिए भी यह उपाय किया जा सकता है।

                                                           

 सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रोफसेरआर. एस. सेंगर ने बताया कि प्रदेश के विभिन्न परिक्षेत्रों में गन्ने की फसल में कीट एवं रोग सम्बन्धी सर्वे हेतु उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद एवं भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों के द्वारा संयुक्त रूप से स्थलीय निरीक्षण के उपरांत पाया गया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में पायरिला एवं चोटी बेधक का प्रकोप न्यूनतम से अधिक एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पायरिला और चोटी बेधक का प्रकोप अधिक पाया गया है।

विशेष रूप से सहारनपुर परिक्षत्र में पायरिला व चोटी बेधक का संक्रमण अधिक देखा गया है। इसके साथ ही प्रदेश में कहीं-कहीं कालाचिकटा अर्थात ब्लैक बग का प्रकोप भी पेड़ी फसल पर देखा गया है।

डॉ0 सेंगर ने बतायसा कि सामान्यतया इस समय टॉप बोरर के द्वितीय ब्रूड विकसित होते हैं। वर्तमान में प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में पायरिला का प्रकापे भी देखने में आ रहा है और इसके साथ ही इसका परजीवी कीट भी दिखाई दे रहा है। इस परजीवी कीट की सहायता से पायरिला का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।

                                      

वर्तमान समय में इनके उपचार के लिए विभिन्न भौतिक विधियां जैसे- लाइट ट्रैप और फैरोमोन ट्रैप, रोगी पौधों को उखाड़कर नष्ट करना, प्रभावित पत्तियों को तोड़कर नष्ट करना एवं ट्राइको कार्ड आदि के उपायों को अपनाकर गन्ने की फसल को इनके प्रकोप से काफी हद तक बचाया जा सकता है।

चोटी बेधक से प्रभावित पौधों के यांत्रिक नियंत्रण हेतु जमीन की सतह से एक पतली खुरपी की सहायता से काटकर नष्ट कर देना चाहिए। वहीं इन कीटों का अधिक प्रकोप होने की दशा तथा परजीवी की उपलब्धता पर्याप्त रूप से नहीं होने पर इनका नियंत्रण करने हेतु रासायनिक विधियों को ही अपनाया जाना बेहतर रहता है।

टॉप बोरर की द्वितीय एवं तृतीय ब्रूड के नियंत्रा के लिए 15 मई के बाद एवं 15 जून से पूर्व क्लोरेन्ट्रानिलिप्रोल 150 मि.ली. की दर से 400 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों की जड़ों के पास ड्रेन्चिग करने के उपरान्त सिंचाई कर देनी चाहिए।

डॉ0 सेंगर ने कहा कि वर्तमान में पायरिला से बचाव के लिए किसानों को किसी भी रसायन का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस समय प्रदेश का उच्च तापमान 39 डिग्री से अधिक होने के कारण पायरिला के वयस्क एवं निम्फ स्वतः ही कम अथवा अक्रियाशील हो जाते हैं।

इसके साथ ही किसान पायरिला के परजीवी के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए गन्ने के खेत की सिंचाई कर उसकी नमीं को बनाए रखें। अपरिहार्य की स्थिति में पायरिला से प्रभावित गन्ने की फसल में इपीरिकेनिया मेलैनोल्यूका परजीवी के ककून न दिखाई दें तो क्लोरोपायरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 800 मि.ली. अथवा क्वीनॉलफॉस 25 प्रतिशत ई.सी. 800 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से 625 लीटर पानी में घोल बनाकर खेतों में इसका छिड़काव करें। ब्लैकबग के रासायनिक नियंत्रण के लिए भी इसी विधि को अपनाया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि प्रदेश की पौधा एवं पेड़ी गन्ना फसल को टॉप बोरर, पायरिला, लाल सड़न, बिल्ट, पोक्काबोइंग एवं अन्य कीटों और रोगों से आदि से बचाव एवं प्रभावी नियंत्रण के लिए परिक्षेत्र, जनपद स्तरीय अधिकारियों और फील्ड कर्मियों को निर्देश दिए गए हैं कि किसानों को सय-समय पर जागरूक करते रहें एवं उचित सलाह के साथ गन्ना समितियों एवं चीनी मिल के गोदामों पर आवश्यक कीटनाशक दवाओं की उपलब्धता को भी सुनिश्चित कराएं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।