
एआई से प्रशस्त शिक्षा की राह Publish Date : 10/10/2025
एआई से प्रशस्त शिक्षा की राह
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
भारत हमेशा ही बाकी दुनिया को ज्ञान का रास्ता दिखाता रहा, उसने कई हमलों के बाद अपना गौरव खो दिया था। एक समय ऐसा भी आया कि जब विश्वगुरु एक गुलाम देश होकर गया। लगभग एक हजार साल की परतंत्रता, बहुत संघर्ष और बलिदान के बाद भारत फिर से एक स्वतंत्र देश के रूप में खड़ा हुआ। गरीबी और लूट से थके हुए देश में एक नई उमंग जागी। लगातार मेहनत से आज भारत फिर से पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है। भारत की बड़ी आबादी होने के बावजूद, उसकी आर्थिक तरक्की पूरी दुनिया को हैरान कर रही है। सेना के मामले में भी भारत ने अपनी ताकत साबित की है और अंतरिक्ष विज्ञान में तो वह अगुवाई कर रहा है।
दूसरे कई क्षेत्रों में भी भारत की तरक्की की कहानी गर्व महसूस कराने वाली है। अब शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में भारत फिर से विश्वगुरु बनने का सपना देख रहा है। ऐसे में, दुनिया में टेक्नोलाजी में हो रहे बदलावों से भारत दूर नहीं रह सकता। आज विज्ञान बहुत तेजी से चीजों को बदल रहा है। कोविड महामारी के बाद से ती इंटरनेट और नई टेक्नोलॉजी पर हमारी निर्भरता काफी बढ़ चुकी है। गांवों में भी टेक्नोलॉजी का असर साफ देखा जा सकता है। स्कूल से लेकर कालेज और रिसर्च तक, पढ़ाई-लिखाई में टेक्नोलाजी का उपयोग भी लगातार बढ़ रहा है। आज ब्लंडेड लर्निंग आनलाइन कोर्सेज और ‘‘स्वयं’’ पोर्टल के जैसे तरीके शिक्षा का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं।
शिक्षक तो केन्द्र में ही रहेंगे
इसी माहौल में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) का अस्तित्व में आना अपने आप में एक बहुत ही बढ़ी घटना है। एआई के आने से समाज और विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे बदलाव हो रहे हैं, जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी। शिक्षा के क्षेत्र में भी एआई एक बड़ा बदलाव ला रहा है। जहां व्यापार, विज्ञान और दूसरे क्षेत्रों में लोग एआई को अपनाने के लिए तैयार दिखा रहे हैं, वहीं शिक्षा में इसके आने पर कुछ लोग उत्सुक भी हैं तो कुछ लोग हरे हुए भी हैं। कुछ शिक्षा संस्थानों ने तो बिना सोचे-समझे इसे तुरंत अपना लिया है, जबकि कुछ जगहों पर लोग एआई के अधिक उपयोग से होने वाले बुरे नतीजों को लेकर चिंतित हैं।
हमारे देश भारत की शिक्षा प्रणाली में, चाहे यह गुरुकुल की पुरानी परंपरा हो या नई शिक्षा नीति 2020, हमेशा शिक्षक ही केंद्र में रहा है। हमारे शास्त्रों और परंपराओं में गुरु को बहुत अधिक सम्मान दिया गया है। एआई के आने से सबसे बड़ी चिंता इसी बात की ही है कि कहीं एआई शिक्षकों की जरूरत को ही खत्म न कर दे।
प्रभावित हुई है पूरी सभ्यता
असल में, एआइ की ताकत और क्षमता हमारे सोच से कहीं अधिक है। इसके उपयोग के नए-नए रास्ते रोज खुल रहे हैं। यह विद्यार्थियों के लिए अनगिनत संभावनाओं के दरवाजे खोल रहा है। एआई इनोवेशन, क्रिएटिविटी और नए प्रयोगों को बहुत बढ़ावा दे रहा है। इसने विचारों को सच करने के ऐसे मौके दिए हैं कि पूरी मानव सभ्यता पर इसका असर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। कविता, साहित्य, संगीत और कला भी एआई से प्रभावित हो रही हैं। यह भी हो सकता है कि आने वाले दिनों में एआई अपनी अच्छाइयों के साथ-साथ समाज के बुरे लोगों को भी उपयोगी लगने लगे। अगर एआई का उपयोग क्लासरूम, लैब और पढ़ाई लिखाई से होते हुए परीक्षाओं और नतीजों तक भी पहुंच गया तो फिर क्या होगा, यह सोचना भी डरावना लगता है।
एआइ के बढ़ते उपयोग से शिक्षकों के लिए यह चुनौती भी है कि उन्हें भी अब रोज नई जानकारी के साथ अपने आपको अपडेट रखना होगा। शिक्षकों को एआई से बचने के बजाय अपने अनुभव और ज्ञान को एआई के साथ जोड़ना होगा।
आएंगे बेहतर बदलाव
यह सच है कि शिक्षा संस्थान सिर्फ ज्ञान देने या डिग्री बांटने की जगह नहीं हो सकते। असल में, यह संस्थान विद्यार्थियों में जानने की इच्छा, सवाल पूछने की आदत और उनकी जिज्ञासा को सही दिशा प्रदान करते हैं। वे उन्हें नया सोचने, पुरानी चीजों को समझने और उनकी समीक्षा करने की नजर देते हैं। इसमें सबसे बड़ी भूमिका शिक्षक और विद्यार्थी के बीच लगातार बातचीत की होती है। शिक्षक दरअसल विद्यार्थी के लिए एक आदर्श, मार्गदर्शक और उसे गढ़ने वाले होते हैं। इसीलिए हमारी परंपरा में शिक्षक से बहुत अच्छे आचरण और मूल्यों की उम्मीद की जाती है।
एआई के आने से शिक्षक का काम सिर्फ जानकारी देना भर ही नहीं रह गया है। आज सवाल पूछने के लिए चैटीपीटी जैसे कई ऐप मौजूद हैं। ई-लर्निंग और चैटबाट भी शिक्षा को फैलाने में मदद कर रहे हैं। हम रोज नए ऐप के बारे में जान रहे हैं जो शिक्षा के क्षेत्र में कांति ला रहे हैं। एआई के समर्थक बहुत उम्मीद से देख रहे हैं कि इससे शिक्षा में बहुत अच्छे बदलाव आएंगे। डिजिटल असमानता की समस्या को भी एआई से दूर करने की कोशिश की जा रही है। विद्यार्थी वर्ग को भी इसकी उपयेोगिता पर कोई संदेह नहीं है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।