
पढ़ाई के दौरान ही स्किल ट्रेनिंग Publish Date : 16/09/2025
पढ़ाई के दौरान ही स्किल ट्रेनिंग
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
"काफी देर से ही सही, पर अब मानव संसाधन विकास मंत्रालय और यूजीसी ने यह माना कि उच्च शिक्षण संस्थानों से निकलने वाले छात्रों के पास कोई स्किल न होने के कारण ही उन्हें रोजगार के लिए भटकना पड़ता है। यही कारण है कि आगामी जुलाई से सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में 'श्रेयस' नामक योजना के तहत विशेष अभियान चलाने के निर्देश दिए गए हैं। देश से बेरोजगारी कम करने के लिए इस तरह का कदम जरूरी है।"
दैनिक जागरण के 'नई राहें' में इस स्तंभ के तहत लंबे समय से यह बात उठाई जाती रही है कि शैक्षणिक संस्थानों द्वारा सिर्फ डिग्रियां बांटने और हर साल लाखों बेरोजगारों की फौज निकालने की बजाय युवाओं को स्किल्ड बनाने की दिशा में कारगर कदम उठाया जाना चाहिए।
इसके लिए इंडस्ट्री के साथ टाइ-अप करते हुए छह महीने से लेकर एक साल की रेगुलर इंटर्नशिप/स्किल ट्रेनिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि युवाओं को संबंधित कंपनी में ही रोजगार मिल सके या फिर वे इतने स्किल्ड हो जाएं कि अपनी पसंद के अनुसार किसी भी कंपनी में आसानी से नौकरी हासिल कर सकें।
'श्रेयस' की पहलः अच्छी बात यह है कि रोजगार के मुद्दे पर सवालों से लगातार घिरते रहने के बाद अब जबकि लोकसभा चुनाव अपने अंतिम चरणों में प्रवेश कर रहा है, तब मानव संसाधन विकास मंत्रालय और यूजीसी ने पहल करते हुए 'श्रेयस' यानी 'स्कीम फॉर हायर एजुकेशन यूथ इन अप्रेंटिस ऐंड स्किल' नामक योजना शुरू करने का निर्णय किया है।
इस योजना के तहत देश के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में अभियान चलाया जाएगा। कहा जा सकता है कि बेरोजगारी के मोर्चे पर लंबे समय से सवालों के बौछार झेल रही सरकार को अब यह उपाय सूझा है, जबकि यह कदम बहुत पहले उठा लिया जाना चाहिए था। दरअसल, अब जाकर यह माना गया है कि तकनीकी डिग्री लेने वाले युवाओं को तो फिर भी जॉब मिल जाती है, लेकिन बीए, बीएससी, बीकॉम जैसी नॉन-टेक्निकल डिग्री लेकर निकलने वाले युवाओं को स्किल्ड न होने के कारण ही नौकरी नहीं मिल पाती है।
रुचि के क्षेत्र में बनेंगे हुनरमंदः उक्त योजना के तहत गैर-तकनीकी कोर्स कर रहे छात्रों को उनकी पढ़ाई के दौरान ही उनकी रुचि के क्षेत्र में हुनरमंद बनाने का उपक्रम किया जाएगा। कौशल से जुड़ा यह प्रशिक्षण न सिर्फ मुफ्त होगा, बल्कि इसके तहत उन्हें कुछ स्टाइपेंड भी दिया जाएगा। इसके लिए इंडस्ट्री की विभिन्न कंपनियों से गठजोड़ किया जाएगा। स्टूडेंट्स को उनके कोर्स के आखिरी साल में छह महीने से लेकर एक साल तक का कौशल प्रशिक्षण इंडस्ट्री के सहयोग से दिया जाएगा।
इस योजना के तहत वर्ष 2022 तक विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से निकलने वाले करीब 50 प्रतिशत छात्रों को हुनरमंद बनाने का लक्ष्य है।
जरूरी है प्रभावी निगरानीः देश के डिग्रीधारी युवाओं को रोजगार-सक्षम बनाने की दिशा में बेशक यह योजना बहुत आकर्षक लगती है, लेकिन यह पूरी तरह से तभी फलीभूत होगी, जब इसे शत-प्रतिशत लागू करने के साथ इसकी प्रभावी निगरानी का तंत्र भी बनाया जाए। इसकेअलावा, विश्वविद्यालयों-कॉलेजों को इंडस्ट्री के साथ पारदर्शी गठबंधन के लिए प्रेरित करना भी उतना ही जरूरी है। जब छात्रों को इंडस्ट्री की जरूरतों के मुताबिक अत्याधुनिक प्रशिक्षण और फिर उसके आधार पर उपयुक्त रोजगार मिलेगा, तो ज्यादा से ज्यादा छात्र इस योजना में रुचि लेंगे।
जीतें इंडस्ट्री का भरोसाः इस स्तंभ के तहत दो सप्ताह पहले के एक लेख में आंकड़ों के आधार पर बताया गया था कि देश के एमएसएमई सेक्टर पर समुचित ध्यान देकर अगले चार-पांच साल में 75 लाख से लेकर 1 करोड़ तक अतिरिक्त रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं। यह भी कि देश की कुल खपत का अभी सिर्फ 15 प्रतिशत ही हमारी घरेलू मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री पूरी कर पाती है। ऐसे में निश्चित रूप से इस क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने और रोजगार उपलब्ध कराने की अपार संभावनाएं हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।