
निखारें अपने स्किल के रंग Publish Date : 06/09/2025
निखारें अपने स्किल के रंग
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
सरकार, संस्थानों और खुद युवाओं को आगे बढ़कर इंडस्ट्री की बदलती जरूरतों को समझने और उसके अनुसार खुद को प्राथमिकता के आधार पर कौशलयुक्त यानी स्किल्ड बनाने की जरूरत है। उत्साह के साथ अपडेटेड स्किल के लिए तत्पर रहने वाले युवाओं का इंडस्ट्री भी आगे बढ़कर स्वागत करती है। देश के युवाओं को बड़ी संख्या में रोजगार-सक्षम बनाने के साथ-साथ देश को भी मजबूती के साथ विकास की राह पर आगे बढ़ाने के लिए कितनी जरूरी है। सरकार की इस पहल के बारे में बता रहे हैं हमारे कॅरियर विशषज्ञ, प्रोफेसर आर. एस. सेंगर-
हाल ही में दिग्गज अमेरिकी आइटी कंपनी आइबीएम की प्रेसिडेंट और चीफ एग्जीक्यूटिव गिन्नी रोमेटी ने एक माहत्वपूर्ण बयान दिया कि अधिकतर भारतीय युवाओं को नौकरी इसलिए नहीं मिल पा रही है, क्योंकि उनके पास इसके लिए जरूरी स्किल ही उपलब्ध नहीं है। यह स्थिति तव और चिंताजनक हो जाती है, जप नए जमाने के रोजगार कहीं अधिक सृजित हो रहे हैं। हालांकि रोमेटी का यह वक्तव्य इसलिए हैरान नहीं करता है, क्योंकि बीते कुछ सालों में इंडस्ट्री से जुड़े तमाम लोग स्किल की कमी को लेकर लगातार चिंता जताते रहे हैं।
हां, हैरानी सिर्फ इस बात की है कि इन चिंताओं और देश में बेरोजगारी की भयावह होती स्थित्ति के बावजूद सरकार, जिम्मेदार संस्थाओं और कॉलेजों-विश्वविद्यालयों के द्वारा युवाओं को रोजगार-सक्षम बनाने और रोजगार दिलाने की दिशा में कोई ठोस कारगर कदम नहीं उठाये जा सके हैं। हालांकि वह मुद्दा पिछले कुछ सालों से हर किसी को लगातार मथ रहा है। सरकारों की और से कारगर कदम उठाने की बजाय नारों पर कहीं अधिक ध्यान देने की कवायद की जा रही है।
देश की युवा शक्ति को जाँब की जरूरतः इकोनमिक थिंक टैंक सीएमआइई डाटा के अनुसार (फरवरी 2019 की स्थिति के अनुसार) फिलहाल देश के करीब 3.12 करोड़ मुवा सक्रियता के साथ नौकरी तलाश रहे हैं। उल्लेखनीय है कि देश की तकरीबन 1.35 अरब की आबादी में से 35 साल से कम युवाओं की संख्या 60 प्रतिशत है। सरकार और संस्थाओं द्वारा अक्सर इस युवा-राक्ति पर गर्व किया जा रहा है, लेकिन विडम्बना यह है कि, देश के युवाओं को समुचित रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाए गए हैं।
इन सवालों के बीच कौशल योजनाएं पिछले करीब दस-बारह वर्षों से देश के युवाओं को रोजगार-सक्षम बनाने के लिए तमाम योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इसके लिए कई संस्थाएं भी गठित की गई और उनका अच्छी तरह से रखरखाव भी किया गया है। इसमें सबसे प्रमुख नाम है एनएसीसी यानी नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन। जुलाई 2008 में इस संस्था का गठन ही देश में कौशल विकास को ध्यान में रखकर किया गया था। इसकी देखरेख में पिछले कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री फौशल विकास योजना (PMKVY) और उड़ान सहित कई योजनाएं संचालित की जा रही है। आज जबकि रोजगार को लेकर सबसे ज्यादा सवाल उठाए जा रहे हैं, ते ऐसे में एनएसडीसी के आंकड़े ही उस पर प्रश्न न्हि लगाने के लिए काफी हैं।
जरा गौर से देखिए, इतने सालों में एनएसडीसी के जरिए केवल करीव 10 लाख 84 हजार प्लेसमेंट उपलब्ध कराए जा सके हैं। ये आंकड़े खुद इसकी वेबसाइट पर ही दिए गए है। अब सवाल यह है कि जो संस्थान देश के करीब 602 जिलों में 449 ट्रेनिग पार्टनर्स के माध्यम से 6701 ट्रेनिंग सेंटर संचालित कर रहा है, उसके माध्यम से इतने वर्षों में सिर्फ 11 लाख रोजगार जालब्ध करा पाना इस संस्था के औचित्य पर सवाल उठाने के लिए काफी है। इसके बारे में आप खुद ही सोचे-देखें कि हाल में आप में से कितने लोगों ने एनएसडीसी की योजनाओं के वारे में सूना या जाना है। क्या इसका कोई आकर्षक विज्ञापन आपको कभी दिखा है क्या? आप ऐसे कितने लोगों को जानते हैं, जिन्हें इसके ट्रेनिंग पार्टनर या ट्रेनिंग सेंटर के जरिए नौकरी मिली हो?
जाहिर सी बात है कि चैनल पार्टनर्स और सेंटर चलाने वाले इंस्टीट्यूट्स के साथ कही न कहीं पारदर्शिता का भारी अभाव रहा है। अगर पैसा नहीं होता और इंस्टीट्यूट ईमानदारी के साथ संचालित किए जा रहे होते, तो अब तक देश के करोड़ों युवाओं को जाँब मिल चुका होता और रोजगार को लेकर इतना हो-हल्ला नहीं मच रहा होता। ताज्जुब की बात यह है कि देश के युवाओं को स्किल्ड बनाने और रोजगार उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार द्वारा कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय भी नामित किया गया है, लेकिन यह मंत्रालय भी रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में कोई कारगर कदम उठाने में सफल नहीं रहा है।
इंडस्ट्री और शिक्षण संस्थानों में गठजोड़ का अभावः कौशल विकास व उद्यमिता मंत्रालय, एनएसडीसी सहित केंद्र और तमाम राज्य सरकारों के द्वारा स्किल डेवलपमेंट और रोजगार उपलब्ध कराने के मोर्चे पर तमाम दावे और कथित प्रयास व्यावहारिक न होने के कारण ही कारगर नहीं रहे हैं। इन प्रयासों और नीतियों पर करोड़ों-अरबों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद भी इसका नतीजा सिफर ही रहा है। होना तो यह चाहिए था कि इस तरह के प्रयासों में कथित इंस्टीट्यूट्स की बजाय इंडस्ट्री और शिक्षण संस्थानों को सक्रिय रूप से एक साथ जोड़ा जाता।
मंत्रालय, एनएसडीसी, एआइसीटीई द्वारा विश्वविद्यालयों-कॉलेजों आदि को अनिवार्य रूप से बाध्य किया जाता कि वह अपने स्टूडेंट्स की समुचित प्रशिक्षण दिलाने के लिए उद्योगों के साथ टाई-अप करें। इसके लिए उद्योग संगठनों (फिक्की, एसोचैम आदि) के जरिए उद्योगों को भी प्रेरित किया जाता कि वे शिक्षण संस्थानों से जुड़ने में रुचि लें और उनके स्टूडेंट्स को अपने यहां प्रशिक्षण का भरपूर मौका दें। अभी भी इसमें देर नहीं हुई है। जब जागे, तभी सवेरा के तहत अभी भी उद्योग और शिक्षण संस्थान इस दिशा में कारगर पहल कर सकते हैं।
खुद भी करें पहलः अंडर-ग्रेजुएट कोर्सों में पढ़ रहे युवा भविष्य में बेहतर रोजगार प्राप्त करने के लिए सिर्फ सरकारी योजनाओं और अपने शिक्षण संस्थान के प्लेसमेंट सेल के भरोसे रहने की बजाय खुद भी पहल करते हुए अपनी पसंद को इंडस्ट्री से जुड़ने का सतत प्रयास कर सकते हैं। इसके लिए आप अपने कॉलेज/ विश्वचिद्यालय को विश्वास में लेकर आगे बढ़ें।
छुट्टियों और पार्टटाइम में आप अपने निकटवर्ती उद्योग में जाकर स्वयं संपर्क करें। एक जगह बात न बने, तो दूसरी जगह प्रयास करें। इंटर्नशिप की कागजों खानापूरी करने के बजाए आप इंडस्ट्री से व्यवहारिक प्रेक्टिकल ट्रेनिंग हासिल करने की पहल करें। एक बार मौका मिल जाने के बाद विनम्रता के साथ ज्यादा से ज्यादा सीखने और अपनी मेहनत लगन से वहां के लोगों को प्रभावित करने का प्रयास करें, ताकि वे आपको सिखाने में उत्साह के साथ रूचि भी लें।
उत्साह का रंग आप सभी आज इंटरनेट और सोशल साइट की दुनिया से अच्छी तरह जुड़े हुए है। इसलिए खुद विचार करें और इन माध्यमों का इस्तेमाल खुद की अपडेट और अपग्रेड करने के लिए करें।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।