हॉस्टल की जिंदगी का पहला कदम      Publish Date : 04/05/2025

                  हॉस्टल की जिंदगी का पहला कदम

                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

किसी अच्छे इंस्टीट्यूट से प्रोफेशनल डिग्री लेने के लिए दूसरे शहर में जाना भले ही आसान हो, लेकिन घर-परिवार की याद के साथ नए और अपरिचित लोगों व माहौल के बीच रहना भी सबके लिए आसान नहीं होता। ऐसे में स्टूडेंट अपना अकेलापन कैसे कम करें और तनाव से बचें इसके बारे में बता रहे हैं सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर-

अरविंद ने बहुत मेहनत कर एमबीए में एडमिशन लिया और दूसरे शहर जाकर रहना आरम्भ किया। बहुत कोशिश के बाद भी वह नए माहौल में अपने आपको एडजस्ट नहीं कर पाया। उसे इतनी होम सिकनेस होती कि वह हर वीकएंड पर घर भाग आता था। पापा नाराज होते कि एक तरफ यह पैसे को बरबादी है तो दूसरी तरफ पढ़ाई का हर्जा अलग होता है, उनकी बात भी सही थी। इतने पर भी बस नहीं हुआ, एक दिन अरविंद सबकुछ बीच में ही छोड़-छाड़ कर अपना सामान उठा वापस घर चला आया। लाखों रुपये की फीस बरबाद तो हुई ही कॅरिअर चौपट हुआ सो अलग।

ऐसा नहीं कि इस बात का उसे दुख नहीं था, लेकिन उसका कहना था कि मेरे लिए असंभव था उस माहौल में रह पाना। सब बिलकुल अलग सोच के लड़के थे। हँसी-मजाक और टाँग खींचने के अलावा उन्हें कुछ और नहीं आता था। क्लास खत्म होने के बाद हॉस्टल का कमरा किसी कैदखाने से कम नहीं लगता था। दीवार की तरफ देखते हुए जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती थी।

                                      

यह समस्या उसके जैसे अनेक युवाओं की है, जो इस तरह की परिस्थितियों से गुजर रहे होते हैं। दूसरी तरफ शुभजीत का उदाहरण देखते है जो मात्र 17 साल की आयु में स्कूल खत्म करने के बाद पायलट की ट्रेनिंग लेने अटलांटा गया। अपरिचित देश, अनजाने माहौल और नए लोगों के बीच उसने आसानी से अपने आपको एडजेस्ट कर लिया। उसका कहना था कि यह न करता तो क्या होता उन सपनों का जो मेरे साथ मेरे माँ पापा ने भी देखे थे। इसकी दिमागी तैयारी तो उसने वहीं घर पर रहते हुए ही कर ली थी।

दरअसल जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे संक्रमण के दौर से गुजरते जाते हैं। छोटी क्लास से बड़ी कालास, कॉलेज, इन सभी स्टेजेज पर यह संक्रमण चलता रहता है और हम स्थितियों से अपने आप समझौता करना सीख जाते हैं। नए लोगों, नए वातावरण में नए अनुभवों से गुजरते हुए इनसे तालमेल बैठाना हम स्वतः जान जाते हैं। इन बदलावों से गुजरते हुए जो अनुभव हमें मिलते हैं, वे ही हमें रास्ता दिखाते और एक दवा का काम भी करते हैं।

बेहतरी का रास्ता

नई जगह पर जाना और नए लोगों से मिलना एक तरह से आपको उन्नति और तरक्की का ही सूचक है। हर नई स्थिति आपको जीवन में आगे बढ़ने का सुअवसर देती है, यह तय है। नए कॉलेज में आने पर यह जरूरी है कि आप अपने सीनियर्स के साथ घुल-मिल जाएँ और अच्छी रैपो बनाने में आसानी होगी, वहीं यह निकटता आपको नई परिस्थितियों से एडजस्ट करने में मदद भी करेगी। आप यह जान पाएँगे कि आपको आगे बढ़ने के लिए कौन सा रास्ता तय करना है व भविष्य बेहतर कैसे बनेगा।

नोट्स और पढ़ाई में भी ये सीनियर्स आपके मददगार होंगे। यहाँ तक कि हस्टिल, कॉलेज, कैम्पस और पीजी एडमीशन आदि में भी वे आपकी मदद करते हैं। यदि उसी शहर रहने वाले किसी स्टूडेंट से से आपकी दोस्ती हो जाए, तो आपको कभी-कभी उसके घर जाने पर आपको अपने घर का सा ही एहसास होगा।

टाइम आउट

                                               

यह बहुत जरूरी है कि आप पढ़ाई के साथ अपने मित्र भी बढ़ाएं। सोशल नेटवर्किंग ऐसा करने में आपकी बहुत मदद करेगी, आप अपनों को छोड़कर आए हैं, उस दुख को कम करने में भी यह कोशिश मदद करेगी। दिन भर की व्यस्तता व तनाव को दूर करने में यह आपकी सहायता करेगी।

डॉ0 सेंगर के अनुसार आपके लिए भी बाहर निकलना और अपने आपको समय देना चहुत जरूरी है। मूवी देखिए, नई जगहों पर जाइए, घूमिए-फिरिए और नए स्वादों का आनंद भी लीजिए और नए मित्रों को जोड़िए।

राइट कनेक्शन

घरवालों के छोड़ कर आने का दुख तब कम हो जाएगा, जब आपकी अकसर उनसे बात होती है। पेरेंट्स को चाहिए कि वे दूर गए बच्चों से नियमित बातें करें. उन्हें सलाह दें और उनके नए अनुभवों की जानकारी लेते रहे। एक चार्ट, लेकिन महत्त्वपूर्ण कॉल्स और चैटिंग आपको तनाव से दूर रहने में मंदद करेंगी। घरवालों को भी लगातार आपके पास रहने का आभास होगा और वे कभी बहुत दूर नहीं लगेंगे। कम से कम होम सिकनेस तो लगेगी ही नहीं। परिवार जैसे भी दोस्त, गाइड और फिलॉसफर का काम करता है। यह काम आपका दूर रहकर भी यथावत चलता रहेगा।

विरोधों का सामना

यह बहुत सामान्य है कि नई जगह आने पर अनेक विरोधाभासों का सामना भी करना पड़ता है। सबके साथ सामंजस्य बैठाने और समझने में थोड़ा वक्त लगता है। आपको भी नम्र बन कर नए दोस्तों को थोड़ा समय और स्पेस देना होगा न कि उनसे चिढ़ कर या मुंह बना कर समस्या को और बढ़ाना। जब भी लगे कंफ्लिक्ट बढ़ रहे है, अपना एक कदम पीछे लें और अपने विचार प्रकट करने से पहले एक बार नहीं कई बार सोचे। सनकीपना छोड़ कर आप अपनी कार्यशैली और व्यवहार को उदार बनते हुए सोचे कि क्या करने से स्थितियाँ सामान्य हो सकती हैं। बाहर जाने पर इस तरह के बेबुनियाद विवादों से तनाव बढ़ता हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।