दिल या दिमाग, किसकी सुनेंगे आप ?      Publish Date : 18/04/2025

                दिल या दिमाग, किसकी सुनेंगे आप ?

                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

जीवन में कैरियर का चुनाव करना कभी भी आसान नहीं रहा है, जो करना आपको पसंद है, उसका चुनाव कठिन होता है। अपने प्रति ईमानदारी के साथ-साथ सफलता प्राप्त करने के जोखिम भी देखने पड़ते हैं। मैं जीवन में असफल हो कर अपने परिवार पर बोझ नहीं बनना चाहती थी। महक पैसा कमाने के लिए यह शब्द कहे थे।

उन्होंने अपनी तमाम परेशानियं एक तरफ रखीं और व्यवहाारिक हो कर सोचना शुरू किया। दिन में डॉक्टर और रात में कलाकार। मैंने एक मेडिकल स्कूल के लिए आवेदन दे दिया। आवेदन के साथ मुझे अपने बारे में भी कुछ लिखना था- और यह दिमाग से लिखना कितना आसान था कि मैं डॉक्टर बन कर लोगों की सेवा करना चाहती हूँ।

                                            

साक्षात्कार के दौरान उन्होंने मुझसे कोई वजह नहीं पूछी। अगर पूछते तो उन्हें मेरी आवाज मेरा चेहरा ही बता देते कि में क्या चाहती हूँ। लोग मेरे कला प्रेम के बारे में बात करते रहे, परन्तु मैंने चित्र बनाना छोड़ दिया। मुझे मन में सोचा गया काम करना अच्छा लगता था, उनके किस्से और संघर्ष आदि। यही कारण था कि मैं इस मेडिकल ट्रेनिग में बनी रह सकी। मैंने मशीन को तरह काम करना सीख लिया था। मैं हर स्थिति में कुछ तलाश कर उससे चिपक जाती।

पर अब सालों से मेरे दिल और दिमाग एक जगह नहीं थे। मेरी सेहत पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ रहा था। पता नहीं कब घर भीतर की रौशनी और रचनात्मकता दम तोड़ चुके थे। मैं चालता-फिरता प्रेत थी। लोग मुझसे ईर्ष्या करते थे. पर में खुद को खो चुकी थी। लोग कहते है कि जिंदगी कभी भी बदली जा सकती है, पर मुझे लगता था कि अब देर हो चुकी है। मैं डॉक्टरी पर इतने साल लगा चुकी थी और डॉक्टर भी मानी जाती थी।

                                        

फिर एक दिन मैं पहली बार स्काई डाइविग के लिए गई और उसी समय पहली बार मैंने पाया कि मैंने अपनी जिंदगी को क्या बना लिया है। नहीं, यह ठीक नहीं था। लोग इतने खतरों के बीच काम कर रहे हैं और खुद से बेतहा प्यार भी करते हैं। मैं ऐसी क्यों नहीं बन सकती आखिर मुझे भी मनपसंद जिंदगी जीने का हक है।

यह हक दुनिया के हर व्यक्ति को है। शायद यही वह क्षण था, जब मैंने खुद को फिर से सपने देखते पाया। अब मैं कैसे और जैसे प्रश्न सॉल्ड़ कर क्यों पर ध्यान दिया। मैं चाहती थी कि जरूरतमंद लोगों के लिए काम करूं। जीवन में प्रेम और शांति के लिए काम करूं पर इस तरह नहीं। दुनिया को जीवंत लोगों की आवश्यकता है। इस वाक्य ने मुझे बहुत कुछ कह दिया। मैं अभी भी कुछ नया रचने के लिए बेचैन थी, अपनी कला से लोगों को खुशियां देना चाहती थी।

जीवन में चुनौतियां भी हैं और संघर्ष भी

                                   

हर व्यक्ति की चुनौतियां और संघर्ष अलग होते हैं। कुछ सामाजिक रूप से स्वीकृत होते हैं, कुछ नहीं। पर हमें हताश नहीं होना है। हताश होना ही असफलता है। मुझे अपनी मेडिकल ट्रेनिंग घर गई है। काल की मेरी राह में यह एक छोटा-सा मोड था. जिसने मुझे कम अनुभव नहीं दिए। मैं लोगों के बारे में कुछ जान सकी हूं। मुझे उम्मीद है, मेरी कहानी से लोगों को अपनी शर्त पर जीने की प्रेरणा मिलेगी। परिस्थितिया चाहे जैसी भी ही. आप आपने मनमुताबिक जीवन जी सकते हैं। भले ही कदम छोटे क्यों न हों. उठाना जरूरी है। हर प्रयास कीमती है। सुरक्षा के डर से अपनी इच्छा और क्षमताओं की अनदेखा न करें, देर कभी नहीं होती।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।