
हमारे चैनल की ओर से सभी को शुभ धनतेरस Publish Date : 18/10/2025
हमारे चैनल की ओर से सभी को शुभ धनतेरस
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा
धनतेरस का पर्व मनाए जाने का कारण-
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरी जब अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए तो वह दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। इसी कारण से इस दिन भगवान धन्वंतरी की जंयती और धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान धनवंतरी की पूजा-अर्चना करने से आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे में जानते हैं धनतेरस के पर्व के विषय और इससे सम्बन्धित कथा के बारे में-
हमारे शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरी अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, वह तिथि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। इसी कारण से इस दिन बर्तन खरदने की प्रथा प्रचीन काल से ही चली आ रही है। भगवान धनवंतरी को भगवान विष्णु का अंग माना जाता है और भगवान विष्णु ने ही पूरी दुनिया को चिकित्सा विज्ञान से परिचित कराया और इसका प्रचार प्रसार भी किया। भगवान धवंतरी के दो दिन बाद माता लक्ष्मी समुद्र से प्रकट हुई थी इसलिए यह दिन दीपावली पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मामा लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से आरोग्य सुख और समृद्वि की प्राप्ति होती है।
धनतेरस की पौराणिक कथा
एक बार मृत्यु के देवता यमराज ने यमदूतों से प्रश्न किया क्या कभी किसी मनुष्य के प्राण लेने में तुमको किसी मनुष्य पर दया भी आती है। प्रश्न के उत्तर में यमदूतों ने कहा कि नहीं महाराज, हम तो केवल आपके दिए गए निर्देशों का पालन करते हैं। इसके बाद यमराज ने कहा कि तुम निःसंकोच होकर बताओं कि क्या कभी किसी मनुष्य के प्राण हरण करते समय तुमको दया आई है तो इस पर एक यमदूत ने कहा कि एक बार एक ऐसी घटना हुई कि जिसे देखकर हमारा हृदय भी द्रवित हो उठा था।
एक दिन हंस नामक एक राजा शिकार खेलने के लिए गया हुआ था और वह जंगल में अपने मार्ग से विचलित हो गया और वह भटकता हुआ दूसरे राज्य की सीमाओं में चला गया। उस राज्य का राजा का नाम हेमा था, उसने अपने पडौसी राजा का पूर्ण आदर सत्कार किया और उसी दिन राजा की पत्नि ने एक पुत्र को जन्म भी दिया था।
ज्योतिषाचार्यों की भविष्यवाणी
राज्य के ज्योतिषों ने ग्रह और नक्ष्त्रों की गणना के आधार पर कहा कि इस बालक की विवाह के चार दिन बाद ही मृत्यु हो जाएगी। यह सुनकर राजा ने आदेश दिया कि इस बालक को यमुना नदि के तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा जाए और इस बालक के ऊपर स्त्रियों की छाया तक भी नहीं पड़नी चाहिए।
परन्तु विधि का विधान तो कुछ ओर ही था। संयोगवश राजा हंस की पुत्री यमुना के तट पर चली गई और वहां उसने राजा के पुत्र को देखा और इसके बाद दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया, इस प्रकार से विवाह के चार दिन पश्चात् ही राजा के पुत्र की मृत्यु हो गई। इसके बाद यमदूत ने कहा कि क्या करें, यह तो विधि का विधान था और मार्यादा के आधीन हमें यह काम करना पड़ेगा।
यमराज ने बताया इसका उपाय
यमदूतो ने यमराज से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है, जिसको करने से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है। यमराज ने यमदूतों को बताया कि धनतेरस के दिन विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना और दीपदान करने से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है। इस घटना के कारण तभी से धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दीपदान भी किया जाता है।
आयुर्वेद के प्रणेता भगवान धनवंतरी की जयंती (धनतेरस) पर विशेष
सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे संतु निरामयाः।।
अर्थात सब सुखी हो व सब निरोगी रहें उक्त ऋचा का शाब्दिक अर्थ है इसका भावार्थ यह है कि प्रत्येक जीव का जीवन इस संसार के अन्य जीवों से जुड़ा हुआ है अतः सभी जीवों के सुखी और निरोगी रहने पर ही स्वयं भी सुखी और निरोगी रह सकते हैं। जैविक या सजीव खेती इसी प्रकृति और पड़ोसी के सहजीवन के सिद्वांत पर आधारित कृषि पद्वति है।
कृषि कार्य है सबसे ऊँचा सामाजिक कार्य
भारतीय दर्शन के अनुसार, कृषि कोई व्यवसाय नहीं है, अपितु यह तो प्रकृति के द्वारा प्रद्वत विभिन्न अमूल्य उपहार मृदा, वायु एवं जल के संयोजन से जीवन की निरंतर उत्पत्ति का कारक है। प्रकृति के द्वारा प्रद्वत इन संसाधनों का अतिदोहन करना सम्पूर्ण पृथ्वी के संतुलन को खराब कर सकता है, जैसा कि हरित क्राँति के बाद हुआ भी है।
इसीके सन्दर्भ में ‘‘उत्तम खेती, मध्यम बान (व्यापार), अधम नौकरी भीख समान’’ कहकर कृषि सर्वोच्च समाज कार्य की संज्ञा प्रदान की गई है ताकि कृषि को जीवन का सबसे उपयोगी कार्य मानकर इस प्राकृतिक उपहार की पवित्रता को संजोकर रखा जा सके। इसके साथ ही इस कार्य में यह अपेक्षा भी की गई है कि समाज का प्रत्येक वर्ग इस पवित्र कार्य में कृषक का पूरा सहयोग करे।
इसी प्रकार से उत्पादन के बाद ही व्यापार की अपेक्षा की गई है। हमारे हिन्दु धर्म में विभिन्न पर्यावरण संरक्षक कृषि सहायक कार्यों को धर्म के साथ ही जोड़ा गया है, जिससे कि सभी लोग इन कार्यों को सम्मान पूर्वक करे जैस कि गौ-सेवा, वृक्षारोपण करना और तालाब आदि का अधिक से अधिक संख्या में बनवाना आदि कार्य।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।