मानव शरीर रचना और जीवन का उद्देश्य      Publish Date : 10/10/2025

                    मानव शरीर रचना और जीवन का उद्देश्य

प्रश्नः मानव शरीर शरीर में कुल कितनी इंद्रियां होती है उनके नाम बताओ?

उत्तरः मानव शरीर में कुल 11 इंद्रियां होती है, जिनमें से पांच कर्मेंद्रियां जैसे 1. हाथ 2. पैर 3. मुंह 4. गुदा और 5. लिंग।

पांच ज्ञानेंद्रिय जैसे 1. आंख 2. कान 4. नाक 4. जीभ 5. त्वचा और एक मन। इस प्रकार से कुल 11 इंद्रियां होती है।

प्रश्नः चार अंतःकरण के नाम बताओ?

उत्तरः मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार आदि चार अ्रतःकरण कहलाते हैं।

प्रश्नः आत्मा की स्थिति जड़ है अथवा चेतन?

उत्तरः आत्मा की स्थिति चेतन होती है।

प्रश्नः मन की स्थिति जड़ है या चेतन?

उत्तरः मन की स्थित जड़ होती है।

प्रश्नः मन के दोष कौन-कौन से होते हैं?

उत्तरः राग, द्वेष और मोह आदि तीन मन के दोष होते हैं।

प्रश्नः मन की उत्पत्ति किससे होती है?

उत्तरः अहंकार नामक तत्व से मन की उत्पत्ति होती है।

प्रश्नः मन किसके साथ जुड़कर कार्य करता है?

उत्तरः मन आत्मा के साथ जुड़कर कार्य करता है।

प्रश्नः बुद्धि का मुख्य कार्य क्या है।

उत्तरः बुद्धि का मुख्य कार्य निर्णय करना है।

प्रश्नः शरीर कितने प्रकार का होता है?

उत्तरः शरीर निम्नलिखित तीन प्रकार स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और करण शरीर का होता है।

प्रश्नः जीवात्मा किसे कहते हैं?

उत्तरः जीवात्मा अत्यंत सूक्ष्म एक स्थान (जगह) पर रहने वाली है, जिसमें ज्ञान अर्थात अनुभूति का गुण विद्यमान होता है। जीवात्मा का कभी नाश नहीं होता है, जो सदा से है, और सदा ही रहेगी, कर्म करने में स्वतंत्र और कर्मों के अनुसार ही मनुष्य को पशु, पक्षी आदि का शरीर ईश्वर की सहायता से धारण करती है।

प्रश्नः जीवात्मा का लिंग क्या होता है, स्त्री, पुरुष या नपुंसक लिंग?

उत्तरः नहीं, जीवात्मा का कोई लिंग नहीं होता है।

प्रश्नः मनुष्य दुखी क्यों होता है?

उत्तरः मनुष्य राग, द्वेष और मोह अर्थात अज्ञान के कारण दुःखी होता है।

प्रश्नः मनुष्य के मन में अशांति, भय, चिंता का भाव क्यों उत्पन्न होता है?

उत्तरः पाप कर्म करने से मनुष्य के मन में अशांति, भय, चिंता आदि की स्थिति उत्पन्न होती है।

प्रश्नः क्या मनुष्य की आयु निश्चित होती है?

उत्तरः मनुष्य की आयु निश्चित नहीं होती है।

प्रश्नः कर्म  क्या है?

उत्तरः महर्षि दयानंद जी के अनुसार मन आदि इंद्रिया और शरीर के माध्यम से जीव जो चेष्टाएं विशेष करता है वही कर्म कहलाता है।

प्रश्नः कर्म करने के प्रमुख साधन क्या-क्या है?

उत्तरः मन, वाणी और शरीर कर्म करने के प्रमुख साधन है।

प्रश्नः संसार का सबसे उत्तम कर्म क्या है?

उत्तरः यज्ञादि कार्य करना और परोपकार करना संसार का सबसे उत्तम कर्म है।

प्रश्नः वैदिक धर्म के अनुसार मानव जीवन का अन्तिम लक्ष्य/उददेश्य और प्रयोजन क्या हैं?

उत्तरः वैदिक धर्म के अनुसार मानव जीवन का अन्तिम लक्ष्य/उददेश्य और प्रयोजन समस्त दुःखों से छूटना और पूर्ण आनन्द को प्राप्त करना (मोक्ष की प्राप्ति आवागमन के चक्र जन्म-मृत्यु से छुटकारा पाना है)।

प्रश्नः सभी दुःखों से छूटना किस प्राकर से सम्भव है?

उत्तरः अज्ञान के नष्ट होने और ज्ञान की प्राप्ति हो जाने के बाद ही सभी प्रकार के दुःखों से छूटना सम्भव हो सकता है।

प्रश्नः अज्ञान कैसे नष्ट होता है?

उत्तररू अज्ञान ईश्वर द्वारा शुद्ध आध्यात्मिक ज्ञान देने पर नष्ट होता है।

प्रश्नः ईश्वर आध्यात्मिक शुद्ध ज्ञान कब देता है?

उत्तरः ईश्वर आध्यात्मिक शुद्ध ज्ञान मन की समाधि अवस्था में देता है।

प्रश्नः समाधि की अवस्था कैसे प्राप्त होती हैं?

उत्तरः समाधि की अवस्था अष्टांग योग (यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि) की विधि से मन, इन्द्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण करने पर प्राप्त होती है। समाधि के सम्बन्ध में विस्तार से जानने हेतू ऋषि पतांजली का अष्टांग योग पढ़ें।

प्रश्नः मन इन्द्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण कैसे प्राप्त होता है?

उत्तरः मन इन्द्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण आत्मा का साक्षात्कार करने पर प्राप्त होता है। आत्मा का साक्षात्कार आत्मा से सम्बंधित विज्ञान को पढ़कर, विचार कर निर्णय लेकर दृढ़ निश्चय करके योग साधना, तपस्या और पुरुषार्थ पूर्वक कार्यों के करने से प्राप्त होता है।

प्रश्नः आत्मा का साक्षात्कार/जानना कब होता है?

उत्तरः जब मनुष्य जान लें कि वह शरीर नहीं है, शरीर तो नष्ट अवश्य होना है लेकिन आत्मा अमर और अविनाशी है। मनुष्य जो कुछ भी मन वचन कर्म से करता है उस का प्रतिबिंब आत्मा पर छपता रहता है, जिसका नतीजा इस जन्म में दुख और सुख के रूप में दिखाई देता है और पुनर्जन्म किस योनि में होगा इसका भी फ़ैसला कर्मों के आधार पर ही होता है। वह अभी दिखाई नहीं देता लेकिन मन से जान व मान लेना आवश्यक है।