अद्वितीय एवं विलक्षण होता है पिता एवं पुत्र का सम्बन्ध      Publish Date : 25/08/2025

   अद्वितीय एवं विलक्षण होता है पिता एवं पुत्र का सम्बन्ध

भारतीय पितृ-दिवस ‘‘सर्वपित्र अमावस्या- 23 अगस्त, 2025’’ पर विशेष

‘‘पिता, अपने पुत्र अपने पुत्र की निषेधात्मक एवं दुष्प्रवृत्तियों को दूर कर उसे एक वन-जीवन प्रदान करता है। वरूण जल का देवता है और जिस प्रकार से जल वस्त्र आदि के मैल का साफ कर देता है, ठीक उसी प्रकार से पिता अपने पुत्र की मानसिक कलुषता दूर कर पुत्र में सद्संस्कारों का बीजारोपण करता है और उसके जीवन को नव्य एवं स्वच्छ रूप प्रदान करता है। चन्द्रमा सभी को शांति और अहलाद प्रदान करता है वैसे ही एक पुत्र को उसके पिता की प्रेरणाएं मानसिक प्रसन्नताएं और परम शांति प्रदान करती हैं। जिस प्रकार से औषधियां दुख, दर्द और पीड़ा आदि को समाप्त करती हैं वैसे ही पिता भगवान शिव शंकर की तरह से अपने पुत्र के समस्त अवसाद और दुखों को समाप्त करते हैं। पय का अर्थ होता है दूध, जिस प्रकार मात्रा का दूध पुष्टि प्रदान करता है, वैसे ही पिता अपने पुत्र के आत्मिक बल को पुष्टि प्रदान करते हैं।’’

                                                     

भारतीय संस्कृति में पिता का स्थान आकाश से भी ऊँचा माना गया है, पिता ही धर्म है, पिता ही संबल है और पिता ही ताकत है।

पिता हर संतान के लिए एक प्रेरणा, एक प्रकाश पुंज और संवेदनाओं का पुज है। इसके महत्व को प्रदर्शित करने और पिता तुल्य अन्य समस्त व्यक्तियों के योगदान के लिए सम्मान व्यक्त करने के लिए प्रति वर्ष जून के महीने के तीसरे रविवरा को अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस अर्थात ‘‘फादर्स-डे’’ मनाया जाता है। इस वर्ष 25 जून 2025 को भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में फादर्स-डे मनाया गया। फादर्स-डे 2025 की अधिकारिक थीम ‘पिताः लचीलेपन का पोषण और भविष्य को आकार देना’ निर्धारित की गई है। यह थीम हमारे जीवन में हमारे पिता की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालती है, जो अपने बच्चों में सकारात्मक भावनाओं और सामाजिक विकास को बढ़ावा देती है। दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग-अलग दिन और विविध परम्पराओं के चलते उत्साह एवं उमंग के साथ यह दिवस मनाया जाता है। यह एक ऐसा दिवस है जो पिता को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है, इसके साथ ही पितृत्व, पैत्रक बंधन और समाज में पिता के प्रभावों को भी प्रेरणा पूर्वक याद किया जाता है।

हिन्दु परम्परा के अनुसार पितृ-दिवस भाद्रपद मास की सर्वपितृ अमावस्या के हदन मनाया जाता है। पिता एक ऐसा शब्द है, जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह एक ऐसा पवित्र सम्बन्ध है, जिसकी तुलना किसी अन्य सांसारिक रिश्ते से नहीं की जा सकती। पिता ईश्वर का सबसे उत्तम उपहार है और जीवन में कोई भी पिता का स्थान नहीं ले सकता। पिता अपनी संतान के लिए सच्चे शुभचिंतक एवं हितैषी होते हैं।

सोनेरा डोड जब नन्हीं सी थी, तभी उनकी माँ का देहांत हो गया था। उनके पिता विलियम स्मार्ट ने सोनेरो को जीवन में कभी भी महसूस नहीं होने दी और उनको पिता के साथ ही माँ प्यार उन्हें दिया। ऐसे में एक दिन बैठे-बैठे सोनेरा के मन में एक विचार आया कि वर्ष में एक दिन पिता के नाम क्यों नहीं हो सकता? इस प्रकार से 19 जून, 1910 को पहली बार फादर्स-डे मनाया गया। इसके बाद वर्ष 1924 में अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन कोली ने फादर्स-डे को स्वीकृति प्रदान की और इसके बाद वर्ष 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जानसन ने जून के तीसरे रविवार को फादर्स-डे के रूप में मनाने की अधिकारिक रूप से घोषणा की। वह पिता ही है जो बच्चों की सुरक्षा, विकास और समृद्वि के बारे में सोचते हैं। बावजूद इसके बच्चों के द्वारा पिता की लगातार उपेक्षा, दुर्वयवहार एवं उन्हें प्रताड़ित करने की प्रवृत्तियाँ बढ़ती जा रही हैं, जिन पर नियंत्रण के लिए इस दिवस की उपयोगिता प्रासांगिकता बढ़ जाती है। मानवीय सम्बन्धों की दुनिया में रिश्तों में सबसे बड़ा स्थान माँ को दिया जाता है, ऐसा होना भी चाहिए, किन्तु बच्चों को बड़ा और सभ्य बनाने में पिता के योगदान को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। एक पिता नीम के वृक्ष के जैसा होता है, भले ही उसके पत्ते कड़वे होते हैं परन्तु वह उत्तम गुणकारी एवं शीतल छाया प्रदान करने वाला होता है।

                                               

पिता और बच्चों का रिश्ता इस दुनिया में सबसे अलग होता है। जहाँ पिता अपने बच्चों को एक तरफ डांटते हैं तो दूसरी और उनसे अगाध प्रेम भी करते हैं। एक पिता अपने पुत्र की चोट पर व्यथित तो होता है, परन्तु पुत्र के सामने उन्हें मजबूत बनकर ही रहना होता है, जिससे कि पुत्र उन्हें देखकर जीवन में आने वाली समस्याओं से लड़ने का पाठ सीख सकें तथा सख्त एवं नीड़र बनकर जीवन में आने वाली मुसीबतों का सामना करने में सक्षम हो सके।

हमारी भारतीय संस्कृति में पिता को सूर्य भगवान के समान देवतुल्य माना गया है। हमारे ग्रन्थों में भी माता, पिता और गुरू को देवता की संज्ञा प्रदान की गई है। यदि इनकी सेवा और भक्ति में कोई कमी रह जाए तो ईश्वर की प्राप्ति सम्भव नहीं है और यदि इनकी सेवा पूरे मनोभाव से समर्पित होकर की जाए भगवान भी स्वयं ही कच्चे धागों में बंधकर भक्त के साथ-साथ चलने लगते हैं। इस दिवस को मनाने के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं, परन्तु सभी का मुख्य उद्देश्य यही होता है कि वह अपने पिता के योगदान को भूलें और  अपने पिता को कभी भी अकेलपन महसूस न होने दें। इतिहास में भी ऐसे उदाहरण बहुत हैं जैसे कि अपने पिता की आज्ञा से ही भगवान श्रीराम जैसे अवतारी पुरूषों ने भी राजपाट को त्याग कर वनों में विचरण किया, मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार ने अपने अन्धे माता-पिता को काँवड़ में बिठाकर चारधाम की यात्रा कराई और भगवान परशुराम जी ने अपने पिता की आज्ञा पाकर अपनी माता का शीश काट दिया था। फिर क्यों आधुनिक काल में पिता और उनकी संतानों के बीच की दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं।

वर्तमान समय में एक पिता समाज और परिवार से कटे रहते हैं और सामान्यतया वह सर्वाधि कइस बात से दुखी हैं कि जीवन का विशद अनुभव होने के बाद भी कोई उनसे सलाह नहीं करना चाहता और यदि वह कोई सलाह देते भी हैं तो कोई उनकी सलाह को महत्व प्रदान नहीं करता है। वर्तमान समय के दौरान समाज में पिता की अहमियत को न समझे जाने के कारण आज हमारे पिता दुखी, उपेक्षित एवं एक त्रासद जीवन जीने को विवश हैं और पिता को उनके इस दुख से छुटकारा दिलाना ही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। निःसन्देह माँ ममता का सागर है, परन्तु पिता उसका किनारा है। माँ से ही बनता है घर परन्तु उस घर का सहारा तो पिता ही है। माँ से स्वर्ग है, माँ से बैकुण्ठ है और माँ से चारों धाम है परन्तु यदि देखा जाए तो इन सबका द्वारा तो पिता ही है और इन्हीं पिता के सम्मान में पितृ दिवस मनाया जाता है। ऐसे में आधुनिक समाज में पिता-पुत्र के सम्बन्धों की सँस्कृति को जीवंतता प्रदान करने की आवश्यकता है।

                                                        

हर पिता अपने पुत्र को निषेधात्मक एवं उसकी दुष्प्रवृत्तियों को समाप्त कर एक नया जीवन प्रदान करता है। वरूण को जल का देवता माना गया है और जिस प्रकार से जल वस्त्र आदि सभी के मैल को दूर करता है, ठीक उसी प्रकार से पिता पुत्र की मानसिक कलुषता को दूर कर उसमें सद्संस्कारों का बीजारोपण करता है और पुत्र के व्यक्तित्व को नव्य और स्वच्छ स्वरूप प्रदान करता है। जिस प्रकार चन्द्रमा सबाके शांति और अहलाद् प्रदान करता है, उसी प्रकार पिता की प्रेरणाएं पुत्र को मानसिक प्रबलता और परम शांति प्रदान करती हैं। जैसे औषधि दुख, दर्द और पीड़ा का हरण करती है, उसी प्रकार पिता भी भगवान शंकर की भाँति पुत्र के अवसाद और दुखों का कर लेते हैं। पय का अर्थ है दूध और जैसे माता का दमध बच्चों के शरीर को पुष्टि प्रदान करता है, ठीक उसी प्रकार पिता भी अपने पुत्र के आत्मिक बल को पुष्टि प्रदान करते हैं। मेरे लिए मेरे पिता देवतुल्य एवं गहन आध्यात्मिक घार्मिक जीवट वाले व्यक्ति थे। उनके जैसी सादगी, उनके जैसी सरलता, उनके जैसा समपर्ण, उनके जैसी धार्मिकता, उनके जैसी पारिवारिक नेतृत्वशीलता और उनके जैसी संवेदनशीलता के साथा जीवन जीना दुलर्भ है।

मेरे पिता ने परिवार एवं समाज को समृद्वशाली और शक्तिशाली बनाने के लिए उल्लेखनीय कार्य किए। मेरे लिए तो मेरे पिता आज भी एक दिव्य ऊर्जा का केन्द्र है। मेरे पिता ही मेरे आदर्श है, मेरे पिता मेरे लिए संघर्ष की आद्दधियों में हौंसलों की उड़ान रहे तो वह मेरे आत्मविश्वास की दीवार भी रहें।

पिता आंशुओं और मुस्कान का एक समुच्चय है जो बेटे के दुख में रोता है तो सुख हँसता भी है। पिता अपने पुत्र को आसमान छूते हुए देखकर स्वयं को भी कद्दावर मानता है तो उसे भटकता हुआ देखकर अपनी किस्मत की बुरी लकीरों को कोसता है। पिता गंगोत्री की वह बूँद है, जो गंगासागर तक एक-एक तटए एक-एक घाट को पवित्र करने के लिए धोता रहता है। पिता वह आग है जो पुत्र रूपी घड़े को पकाती तो है, परन्तु जलाती बिलकुल भी नहीं हैं। पिता एक ऐसी चिंगारी है जो आवश्यकता के होने पर अपने पुत्र को एक शोले में परिवर्तित कर देती है। पिता एक ऐसा सूरज है जो प्रातः पक्षियों के कलरव के साथ धरती पर हलचल शुरू कर देता है, दोपहर को तपाता है और शाम की धीरे से चन्द्रमा के लिए रास्ता छोड़ देता है। एक पिता पूनम का वह चाँद है जो पुत्र के बचपने में रहता है तो धीरे-धीरे घटता हुआ क्रमशः अमावस्या का चाँद हो जाता है। पिता किसी समुद्र के जैसा भी होता है, जिसकी निचली सतह पर असंख्य लहरे खेलती हैं तो जिसकी अथह गहराईयों में खामोशी और खामोशी ही विद्यमान होती है। ऐसे में वह चखने में अवश्य ही खारा लगता है, लेकिन ज बवह बारिश बन कर खेतों में आता है तो मीटे से मीठा हो जाता है।

सादर मेरे पिता को समर्पित--------------