एक नया परिवार और आपकी भूमिका      Publish Date : 03/08/2025

             एक नया परिवार और आपकी भूमिका

                                                                                                                                                  सरिता सेंगर एवं शीतल शर्मा

‘‘नई-नई शादी हुई, नया परिवार मिला और कई सारे नए रिश्ते बनें। पडौस भी बदल गया और आपके दोस्तों की लिस्ट में भी नया बदलाव हुआ। ऐसे में शादी करने से पहले आप इन बदलावों के प्रति आप कितनी तैयार थी यह मायने रखता है।’’

शादी के बाद नया घर, नया परिवार और नया रिश्ता, किसी भी लड़की के लिए उसके जीवन में इससे बड़ा परिवर्तन और क्या हो सकता है? कई बार जहाँ यह परिवर्तन सुखद अनुभतियों से भरा होता है तो कई बार दुखद और त्रासदपूर्ण भी हो सकता है। ऐसे में जब नए घर और नए रिश्ते के साथ उचित तालमेल बिठाने मुश्किल आने लगती हैं तो यह दुख व्यक्तिगत न रहकर सामाजिक दायरे को भी पार करने लगता है।

इस स्थिति में एक लड़की के मन में एक धारणा पनपने लगती है कि क्या उसके अंदर ही कोई कमी है, ऐसे में माँ-बाप और समाज भी सबसे पहले उस लड़की पर ही उंगली उठाते हैं और उनका प्रयास यही होता है कि किसी भी तरह से लड़की को ही समझाया जाए। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि यह एक प्रकार का समाजिक दबाव है, जो कहता है कि ‘पहले अपने आप को बदलें’। ऐसा ही कुछ गरिमा के साथ भी हुआ, गरिमा अपने घर में सबसे छोटी और अपने पापा की लाडली बेटी थी। जब गरिमा की शादी हुई तो ससुराल में वह सबसे बड़ी बहु बनी सबसे बड़ी बहु बनी।  

                                                            

नए घर में उसकी भूमिका बिलकुल विपरीत हो गई थी। अपने घार में सोकर उठने के लिए उसका कोई समय निर्धारित नहीं था, जबकि नए घर में तो उसे सबसे पहले ही उठना होता था। उसके पति तो मार्डन विचारों वाले है परन्तु उसके माता-पिता पुराने विचार वाले ही हैं, जिससे उन्हें अपने रिश्तेदार एवं समाज की अधिक चिंता रहती थी। गरिमा भी इतनी सारी जिम्मेदारियों के कारण परेशान थी, लेकिन वह करे भी तो क्या करें? अगर वह बात भी करती तो सभी से एक ही सलाह उसे मिलती थी कि ‘एडजस्ट करो’। इतने वर्षों एजस्ट करते-करते अब वह गरिमा नहीं रही जो कि पहले हुआ करती थी।

हमारे समाज में शादी को अक्सर एक भव्य समापन और सपनों की एक खूबसूरत परिणति माना जाता है। परन्तु कई महिलाओं के लिए यह एक व्यक्तिगत शुरूआत और स्वयं की एक बेहतर खोज होती है।

हमारी सामाजिक दुनिया शादी के बाद अक्सर बाहरी परिवर्तनों को ही देख पाती है- एक नया नाम, एक साझा घर और शायद एक नया सामाजिक दायरा भी, लेकिन उतना ही महत्वपूर्ण भीतर भी होता है। यह पति की अपेक्षाओं या सामाजिक दबावों के अनुरूप होने के सम्बन्ध में नहीं है, अपितु यह एक गहन व्यक्तिगत विकास भी है, जो अक्सर स्वयं की नई समझ से प्रेरित होता है। यह किसी भी व्यक्ति के ऐसे पहलुओं का प्रदर्शन करता है, जिन पर पहले कभी ध्यान नही नहीं दिया गया था।

आदतों और विचारों का मिलन

शादी के बाद अचानक दो व्यक्तित्व, दो विचार एक साथ होते हैं और इसके साथ ही परिवार के एक नए सदस्य के रूप में भी। लेकिन जीवन साथी का लाइफस्टाइल अब तक एक जैसा नहीं था। ऐसे में स्पष्ट है कि इतनी जल्दी सब कुछ एक समान नहीं हो सकता! शादी से पहले लड़की एकदम साफ बोलने वाली और जो कुछ मन में आया कह देने वाली रही है और वह भी बिना समय जाया किए। वहीं लड़का एकदम शांत और संतुलित बोलने वाला और ऐसा ही व्यवहार करने वाला।

अब अंदाजा लगाइए, जब यह दोनों आपस में किसी मुद्दे पर बात करेंगे तो एक बोलता ही जाएगा और दूसरा सुनता ही रहेगा। उन दोनेां में कोई सहमति बने, परन्तु इसके साथ ही मनमुटाव के हालात भी पैदा होने लगेंगे। कई लोगों के लिए किसी अन्य व्यक्ति के साथ जीवन साझा करने का कार्य ही विकास के क्षेत्रों को भी सामने लेकर आता है। शायद एक महिला को अहसास होता है कि वह जितना सोचती थी, उससे कम धैर्यवान है या उसे अपनी संवाद शैली में सुधार की आवश्यकता है।

विवाह में लेनदेन के लिए अक्सर इमोशनल इंटेलीजेंस, सहानुभूति और समझौते की आवश्यकता होती है। दिन प्रतिदिन किसी के साथ रहने की आदतें, प्रतिक्रियाएं और विचार पैटर्न पता चलता है, जो शायद पहले अपने तक ही सीमित थे, लेकिन अब सीधे ही दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। मार्केटिंग प्रोफेशनल रिया के विवाह को अब पांच वर्ष हो गए हैं।

शादी से पहले रिया काफी एग्रेसिव नेचर की थी और वह निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दी में रहती थी, जबकि उसके पति बहुत शांत और संतुलित प्रकृति के व्यक्ति थे शुरूआती मतभेदों के चलते थोड़ा मनमुटाव भी होता था, लेकिन इसके बाद रिया ने समझना शुरू किया  िकवह इन परिस्थितियों को किस प्रकार से सम्भाले और महसूस किया कि उसकी एग्रेसिव प्रतिक्रियाएं अक्सर बेतुकी ही होती हैं। इसके बाद रिया ने अपनी कोई भी प्रतिक्रिया देने से पहले रूकने और सोचने का अभ्यास करना शुरू कर दिया।

रिया के इस बदलाव ने न केवल उसकी शादी, बल्कि प्रोफेशनल लाइफ में भी उसकी मदद की। उधर रिया के पति ने भी उसकी पसंद और नापसंद का ख्याल रखा, जिससे उन दोनेां की एक-दूसरे से आदतें और विचार मेल खाने लगे। साझेदार अर्थात मिलजुल कर अपनी आदतों और विचारों से आगे बढ़ने की इस यात्रा में सहायक साथी एक अमूल्य सहयोगी हो सकता है।

इस ओर आपका पहला कदम

बदलाव की दिशा में बढ़ते हुए सबसे पहले यह स्वीकार करना ही सफलता है कि बदलने की आवश्यकता है। ‘ये दाग अच्छे हैं’ की तर्ज पर बदलाव भी अच्छे हैं। यह बदलाव सुनने में, देखने में, आपसी बातचीत में अचानक ही नहीं होगा, बल्कि धीरे-धीरे ही आएगा। इसके लिए सबसे पहले धैर्य रखें। धैर्य आपको सुनने, सोचने और समझने की शक्ति प्रदान करता है। इसके लिए आप जर्नलिंग और माइंडफुलनेस प्रेक्टिस कर सकती हैं। विचारों, भावनाओं और प्रतिक्रियाओं को लिखने के लिए प्रतिदिन कुछ मिनट निकालें। इससे पैटर्न, ट्रिगर और उन क्षेत्रों की पहचान करने में सहायता मिलेगी, जहाँ व्यक्तिगत विकास की आवश्यकता है।

उदाहरण के लिए, यदि आप असहमति के दौरान लगातार अपने आपको रक्षात्मक महसूस करती हैं तो जर्नलिंग मूल के कारण को समझने में भी मदद करेगा। माइंडफुलनेस मेडिटेशन में शामिल होना आपको बिना किसी निर्णय के अपने विचारों और भावनाओं का निरीक्षण करने में मदद कर सकता है।

बातचीत कभी भी बेकार नहीं जाती

प्रभावी आपसी संवाद किसी भी सफल रिश्ते की आाारशिला है और एक पूर्ण व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण पहलू भी। केवल शब्दों को सुनने से परे, सक्रिय सुनने में अपने जीवन-साथी के दृष्टिकोण, उसकी भावनाओं और जरूरतों को सही मायने में समझना शामिल है। आपने जो कुछ भी सुना है, उसे समझने और उनकी भावनाओं को मान्य करने के लिए उसका सार-संक्षेप में उपयोग करें। गैर-मौखिक संचार भी प्रभावी रोल अदा करता है। अपनी शारीरिक भाषा, आवाज के लहजे और चेहरे के भावों पर विशेष ध्यान दें, क्योकि यह अक्सर शब्दों से अधिक संदेश प्रदान करते हैं। आंख से आंख मिलाना, खुली मुद्रा रखना और शांत और आश्वत करने वाला लहजा उपयोग करना सीखें। इस प्रकार का संचार कभी भी बेकार नहीं जाता है।

साथी के दृष्टिकोण और उनकी भावनाओं को समझें

विवाह एक ऐसा बन्धन है, जो कि न केवल दो लोगों को एक साथ जोड़ता है बल्कि यह दो परिवारों को भी एक साथ लाता है। इस रिश्ते को सफल बनाने के लिए पति-पत्नि दोनों को अपनी-अपनी परम्पराओं, मूल्यों और अपेक्षाओं के बीच संतु बनाना होता है। परम्परागत रूप से स्त्रियों से अपेक्षा की जाती है  िकवह नए परिवार में समायोजित हों और समझौता करें। वहीं वर्तमान पीढ़ी की लड़कियापं अधिक आत्म-निर्भर और त्वरित प्रतिक्रिया देने वाली होती हैं। इन दोनों ही चरम स्थितियों के बीच एक संतुलन बनाना बहुत आवश्यक है, ताकि विवाह में स्थिरता और सुख-शांति बनी रहे।

पति-पत्नि को दोनों परिवारों की जिम्मेदायिों को समान रूप से निभाना होता है। किसी एक परिवार की ओर अधिक झुकाव समस्या पैदा कर सकता है और रिश्तों में खटास ला सकता है। विवाह की सफलता के लिए अपनी पसंद और परिवार की पसंद के बीच एक संतुलन बनाना बहुत ही आवश्यक होता है। आपस में शांति से बातचीत करना, एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना और ससुराल को अपना परिवार मानकर चलना एक सुन्दर एवं मजबूत रिश्ते की नींव रखता है।

दूसरों के दृष्टिकोण को समझना इसलिए जरूरी होता है क्योंकि एक सिक्के के दो पहलू होते हैं और विवाह में भी विभिन्न दृष्टिकोण होते हैं। इसमें सफलता प्राप्त करने के लिए पति-पत्नि दोनेां को एक-दूसरे के दृष्किोण को समझना और उसके अनुसार ही कार्य करना उचित रहता है। इसे रिश्तों में समझदारी एवं सहनशीलता बढ़ती है और विवाह में सुख-शांति बनी रहती है।

आपकी इमोशनल इंटेलीजेंस  

इमोशनल इंटेलीजेंस किसी भी व्यक्ति की अपनी भावनाओं को समझने एवं प्रतिबन्धित करने और दूसरों की भावनाओं को पहचानने तथा प्रभावित करने की क्षमता होती है। यह क्षमता जितनी अधिक बढ़ेगी उतनी ही अधिक सफलता के साथ आप चीजों को सम्भाल सकती हैं। सचेत रूप से ऐसी विशिष्ट भावनाओं को पहचानने का प्रयास करें, जिनको आप महसूस कर रही हैं। ‘मुझे बुरा लग रहा है’ के स्थान पर यह तय करने का प्रयास करें कि यह उदासी, गुस्सा है अथवा निराशा। असहमतियों से निपटने हेतु स्वस्थ तरीकें खोजें जैसे ध्यान को केन्द्रित करना आपके लिए कारगर हो सकता है।

किसी को दोष देने के स्थान पर इसके समाधान पर ध्यान केन्द्रित करें, जब कभी आपकी भावनाएं अधिक बढ़ जाएं एक छोटा सा बेक्र लें और समझौता करने के लिए सदैव ही तैयार रहें। कठिन भावनाओं के लिए स्वस्थ मुकाबला तंत्र विकसित करें। इसमें गहरी सांस लेने के व्यायाम, टहलना, संगीत सुनना अथवा किसी विश्वसनीय मित्र से बात करना भी शामिल हो सकता है।

सहानुभतिपूर्ण व्यवहार

अपने आपको अपने साथी के स्थान पर रख कर देखें और उनके दृष्टिकोण को समझने का प्रयास करें, भले ही आप उनसे सहमत न हो। यह करूणा को बढ़ावा देता है और बन्धन को मजबूती प्रदान करता है। एग्रेसिव तरीके से कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त करने से पूर्व थोड़ा रूकें और उसके बारे में सहानुभूति पूर्वक विचा करें। यह छोटा सा क्षण आपको अधिक विचारशील और रचनात्मक प्रतिक्रिया के चयन का अवसर प्रदान करेगा।

व्यक्तित्व के नए आयाम

अपने शौक और रूचियों को कभी भी न मरने दें, अपने पुरान जुनून से एक बार फर से जुड़ें अन्यथा नए शौकों की तलाश करें। व्यक्तिगत रूचियों के होने से आप अपने आप में ही व्यस्त रहती हैं और व्यवहारिक दायरे से बाहर व्यक्तिगत संतुष्टि की भावना को प्राप्त करती हैं। मनोविज्ञान, आत्मसुधार, रिश्तों या किसी भी ऐसी चीज पर किताबें, लेख और पोडकॉस्ट देखें, जो आपकी बौद्विक जिज्ञासा को जागृत करती हों। कोई नया कौशल सीखें, चाहे वह कोई भाषा हो, कोई संगीत वाद्य-यंत्र हो, कोई नया खेल हो या कोई रचनात्मक गतिविधि। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ता है और साथ ही आपके व्यक्तित्व में नए आयाम भी जुड़ते हैं।

सफर और मंजिल एक हैं

यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि व्यक्तित्व में सुधार, एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, कोई मंजिल नहीं। इस यात्रा के दौरान आपके सामने रूकावटें भी आएंगी, निराशा के पल भी आएंगे और एक समय ऐसा भी आएगा कि जब आपकी पुरानी आदतें एक बार फिर से उभरकर सामने आएंगी। इसकी कुंजी निरंतर प्रयास, सीखने की इच्छा और अपने आपको बेहतर बनाने की प्रतिबद्वता में ही निहीत होती है। अपने जीवन और रिश्ते के सकारात्मक पहलुओं को नियमित रूप से स्वीकार करें और उनकी सराहना भी करें।

यह आपके ध्यान को कमियों से हटाकर भरूपर चीजों के ऊपर केन्द्रित करने का कार्य करता है। आप इस सफर में अकेली ही नहीं हैं इसलिए जो आपका जीवन साथी है उसकी कमियों को अनदेखा करने के साथ ही अपनी कमियों को दूर दूर करने की सोच के साथ इस जीवन के इस सफर में मंजिल की ओर बढ़ती जाएं, क्योंकि यह तो एक सफर है और इस सफर में धूप-छांव तो चलती ही रहेंगी, आपके साथ।  

लेखकः सरिता सेंगर, एक जानी मानी सोशल वर्कर हैं।