समन्वय से चलते हैं रिश्ते      Publish Date : 12/07/2025

                        समन्वय से चलते हैं रिश्ते

                                                                                                                                                        सरिता सेंगर एवं शीतल शर्मा

परवरिश, शिक्षा और संस्कारों से हमारा व्यक्तित्व आकार लेता है। प्रत्येक व्यक्ति के मूल्य और सोच अलग होता है। दांपत्य जीवन में पारिवारिक दायित्वों और निजी मूल्यों के मध्य समन्वय कैसे स्थापित करें, सुझाव दे रही हैं जानी मानी समाज सेविका सरिता सेंगर-

अक्सर जब दो लोग शादी के बंधन में बंधते हैं तो वे दोनों ही अलग परिवेश, शिक्षा, माहौल, समाज और संस्कारों से जुड़े होते हैं। इसके कारण उनके निजी मूल्यों में भी ज्यादा समानता नहीं दिखती है। वैसे ही हर एक के परिवारिक मूल्यों में काफी अंतर दिखाई देता है। कई बार यह खाई आपसी समझ, समन्वय और सहयोग से पट जाती है, लेकिन हर बार ऐसा संभव नहीं हो पाता, परिणामस्वरूप वैवाहिक जीवन में मनमुटाव दिखने लगता है।

                                                   

पारिवारिक दायित्व बनाम निजी महत्वाकांक्षाए विवाह के बाद दोनों को एक नया परिवार मिलता है, लिहाजा उनकी जिम्मेदारियां भी बढ़ती हैं। शादी के बाद पारिवारिक दायित्वों में पति-पत्नी की एक-दूसरे के प्रति, माता-पिता के प्रति जिम्मेदारी, सामाजिक और आर्थिक दायित्त्व शामिल होते हैं। इन्हें ठीक से निभाने से ही दांपत्य खुशहाल और समृद्ध बनता है, लेकिन समस्या तब आती है जब दोनों में से कोई एक इन दायित्वों को नजरअंदाज करने लगता है, परिवार के दायित्व उन्हें बोझ लगने लगते हैं।

उनकी महत्वाकांक्षाएं परिवार से बड़ी होने लगती हैं, ऐसे में शुरू होती है रिश्तों में खटास और बहस। इससे निपटने के लिए आपसी सहयोग, समझदारी, बातचीत, समर्थन की आवश्यकता होती है।

खुला संवादः शादी के बाद समय की कमी होने से पति-पत्नी कई समस्याओं पर खुलकर बात नहीं कर पाते हैं। नतीजतन उनके बीच गलतफहमियां बढ़ने लगती हैं। नई जिम्मेदारियों के बीच दोनों के सपने दब जाते हैं और उसकी बलि चढ़ता है उनका रिश्ता। इसलिए जरूरी है कि दोनों एक-दूसरे को समझें और पारिवारिक मामलों पर समय-समय पर चर्चा जरूर करें।

निश्चित है बदलावः घर में नए सदस्य के आने से सभी की जिंदगी में बदलाव आता है।

                                                    

शुरुआती दौर में सभी सदस्यों को थोड़ी मुश्किलें आती हैं, लेकिन धैर्य और संयम से काम लें। परिवार के सदस्यों के प्रति प्रेम, समन्वय, सहयोग और परंपराओं का सम्मान करने से न केवल पति-पत्नी, बल्कि पारिवारिक संबंधों में भी मजबूती आती है। उदाहरण के लिए शादी से पहले लड़का देर शाम तक दोस्तों के साथ घूमता है, लेकिन शादी के बाद पत्नी और परिवार के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए वह अपने शौक थोड़े बदलने लगता है, लेकिन लड़कियों के मामले में नया घर, अलग खानपान, नया रहन-सहन होने के कारण उन्हें नए वातावरण में ढलने में थोड़ा सा अधिक समय लगता है।

रिश्ते में ईमानदारी है जरूरीः तमाम मतभेदों के बाद भी अगर रिश्ते में ईमानदारी है तो रिश्ता कभी नहीं बिखरता। जहां प्यार, त्याग और समर्पण होता है वहां छोटी-छोटी बातें कोई मायने नहीं रखतीं। रिश्तों के बीच अहंकार आने से खटास और अधिक बढ़ती है। इसलिए जरूरी है कि आप विवादों को सुलझाने में यकीन रखें, ना कि उन्हें बढ़ावा देने में।

लेखकः सरिता सेंगर क्षेत्र की एक जानी मानी समाज सेविका हैं।