
अपनी संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण Publish Date : 16/04/2025
अपनी संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
हम अपनी सांस्कृतिक विरासत के बारे में अक्सर गर्व से बात करते हैं, लेकिन क्या हम अपना जीवन उसी के अनुसार व्यतीत कर पाते हैं? हमारा दैनिक व्यवहार कैसा है? हमारे जीवन में कौन से गहरे गुण दर्शाए गए हैं? क्या हम कभी शांत चित्त इस बात का मूल्यांकन करते हैं?
हमारा दृष्टिकोण तो आधुनिक रहना चाहिए लेकिन, सभी बातों को समझने के लिए तार्किक भी होना चाहिए, हालांकि, कुछ बातें यथावत स्वीकार भी करनी होती हैं। हमारे परिवार में राम के चरित्र की चर्चा समय समय पर होती रहती है क्या? यह सोचने की आवश्यकता है। कोई यह कहे कि हमें इसकी क्या आवश्यकता है तो यह तर्क उचित नहीं है। नर सेवा नारायण सेवा का मंत्र ही अपनी संस्कृति का प्राण है। अतः सेवा की स्वाभाविक वृत्ति हमारे और हमारे लोगों के भीतर पनप रही है या नहीं इसके बारे में निरंतर चर्चा आज बहुत प्रासंगिक है।
जीव मात्र के प्रति संवेदना आज के समाज से सभी प्रकार की समस्याओं का अंत कर सकती है और इससे हमारा सर्वे भवन्तु सुखिनः का मंत्र फलित होता है। मानवता के शत्रुओं के प्रति हम कोई समझौता तो नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उनके प्रति व्यवहार के लिए हमे शठे शाठ्यं समाचरेत् का मार्गदर्शन भी इसी परंपरा से मिला है। भगवान राम के चरित्र में सभी पक्ष देखने को मिलते हैं और इसीलिए वह पुरुषों में उत्तम हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि रामायण और महाभारत में वर्णित आदर्शों ने शिवाजी महाराज को प्रेरित किया था।
शिवाजी महाराज हिंदू जीवन पद्धति में पूर्ण आस्था का एक जीवंत उदाहरण हैं, जिसके कारण उनमें एक उत्कृष्ट संगठन क्षमता विकसित हुई। उन्हें इतिहास की दिशा बदलने वाली शक्ति के रूप में याद किया जाता है। हमारा समाज वैदिक काल के ऋषियों से लेकर आधुनिक काल के महान लोगों जैसे रामतीर्थ, रामकृष्ण और विवेकानंद तक कई प्रेरक उदाहरणों से प्रभावित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका जीवन ऐसे तमाम आदर्शों से भरा हुआ था जो हमारे समाज का अभिन्न अंग रहा हैं। वे सभी बाधाओं के खिलाफ अडिग रह सकते थे और अपने पथ-प्रदर्शक विचारों को व्यक्त कर सकते थे। यद्यपि हम उनके उत्तराधिकारी होने का दावा करते हैं, लेकिन हम कितनी दयनीय स्थिति में पहुंच गए हैं! जिन आदर्शों ने उन्हें महान कार्यों के लिए प्रेरित किया, हममें उनके प्रति अज्ञान हैं। आज हमारी प्राथमिकता अपनी संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण करना है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।