
विज्ञान की कसौटी पर हमारी गौमाता Publish Date : 01/04/2025
विज्ञान की कसौटी पर हमारी गौमाता
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
गौ एवं गौ-वंश का संरक्षण, पालन, संवर्धन आदि वर्तमान समय की माँग है, प्राचीन काल में हमारा देश पूर्ण रूप से गौ-भक्त था, जिसमें सर्वत्र गौ-सेवा का प्रचलन था। भारत के गाँव-गाँव में दूध एवं घी आदि की नदियाँ बहा करती थी। भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का उत्थान तथा राष्ट्रीय विकास का गाय तथा गौ-वंश के संरक्षण से निकटस्थ सम्बन्ध रहा है।
भारतीय कृषि के अन्तर्गत किये जाने वाले समस्त कार्यों में गोवंश अर्थात बैलों का अपना एक विशेष महत्व है। भूमि की जुताई, बीज की कटाई तथा अन्न को प्राप्त करने तक की सुस्त कृषण क्रियाएं बैलों के माध्यम से सम्पादित की जाती थी, जो कि वर्तमान में यान्त्रिक कृषि की अपेक्षा कहीं अधिक लाभप्रद है। इस गोवंश के गोबर तथा मूत्र से बनी खाद सर्वोत्तम, गुणकारी तथा मृदा की उर्वरा-शक्ति में वृद्वि करने वाली होती है। जिसका उपयोग करने से अन्न, दलहन तथा तिलहन आदि फसलों के साथ ही साथ फलों तथा सब्जियों आदि का उत्पादन भी अधिक प्राप्त होता है। विभिन्न वैज्ञानिक शोधों के माध्यम से भी गोमूत्र एवं गोबर को पवित्र एवं स्वच्छता प्रदान करने वाला प्रमाणित किया गया है। इसलिए वैज्ञानिक रूप से भी गाय माता मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के विकास के मद्देनजर विशेष महत्व रखती है, जो कि नीचे दिये गये तथ्यों से और अधिक स्पष्ट हो जाता है-
1. रेडियो विकिरण से रक्षा करने में गाय का दूध सर्वाधिक सामर्थ्यवान होता है। जिन घरों में गाय के गोबर से लिपाई-पुताई होती है वे घर रेडियो विकिरण के कुप्रभावों से मुक्त रहते हैं।
2. गाय का दूध मनुष्य के हृदय के लिए एक टॉनिक का काम करता है और यह शरीर में स्फूर्ति एवं चुस्ती लाकर मनुष्य की स्मरण को भी बढ़ता है।
3. क्षय रोग से पीड़ित व्यक्ति को गाय के बाड़े अथवा गौशाला में रखने से गोमूत्र की गंध के कारण क्षय रोग के समस्त कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही गाय के गोबर में हैजे के कीटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति होती है।
4. गाय के दूध में उपलब्ध केरोटिन तत्व सर्वरोग नाशक तथा विष नाशक होता है।
5. गाय के दूध, घी, गोबर तथा गोमूत्र को विभिन्न पदार्थों एवं तत्वों के मिश्रण से विभिन्न रोगों को नष्ट करने वाली औषधियों का निर्माण किया जाता है।
6. गाय के घी को अग्नि में डालकर धुंआ करने पर तथा गाय के सूखे गोबर को जलाकर धुंआ करने से वायुमण्ड़ल में हो रहे प्रदूषण नियन्त्रित होता है तथा हानिकारक कीटों एवं कीटाणुओं का नाश होता है।
7. गाय एवं उसकी संतान के रम्भानें की आवाज से मनुष्य की अनेक मानसिक विकृतियाँ एवं दोषों का स्वयंमेव ही शमन हो जाता है।
8. गाय के घी को चावल के साथ जलाने पर अनेक महत्वपूर्ण गैसें जैसे- इथीलीन ऑक्साइड, प्रोपलीन ऑक्साइड आदि का निर्माण होता है। इथीलीन ऑक्साइड गैस में जीवाणुरोधक होने के कारण ऑपरेशन थियेटर तथा जीवन रक्षक औषधियों के निर्माण करने के दौरान उपयोग में आती है। प्रोपलीन ऑक्साइड गैस को वैज्ञानिक तौर पर कृत्रिम वर्षा का आधार माना गया है और अग्निहोत्र हवन का यही एक मुख्य आधार है।
गाय का आर्थिक महत्वः- धार्मिक दृष्टि से ही नही अपितु व्यवहारिक दृष्टि से भी गाय तथा उसके गोवंश को अतिमहत्वपूर्ण माना जाता है। गाय से उत्पन्न दुग्ध तथा इससे बनने वाले पौष्टिक आहार, गौ-मूत्र तथा गोबर से बनने वाली खाद, पंचगव्य औषधियाँ, ऊर्जा-उपलब्धि तथा गोवंश (बैल) का खेती में प्रयोग होने के कारण, गाय एक सार्वभौमिक राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था तथा शिक्षा प्रणाली दोनों का ही केन्द्र बन चुकी है। यह तथ्य निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट हो जाता है कि गौवंश की महत्ता तथा उपयोगिता राष्ट्रीय कृषि एवं आर्थिक नीति का भी एक सुदृढ़ आधार है-
1. भारतीय गौवंश के माध्यम से उत्तम नस्ल के बैल प्राप्त होते हैं, जो खेती कार्य में काम आते हैं। वर्तमान समय में भी भारत में लगभग 70 प्रतिशत खेती के कार्य बैलों के द्वारा ही सम्पन्न किए जाते हैं।
2. बैलो से भार ढोने के तथा यातायात के काम में भी लिया जाता है।
3. भारत में खेती का कार्य गौवंश पर ही आधारित है, तथा गौवंश खेती पर निर्भर है। अतः दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं, परन्तु वर्तमान में वैज्ञानिक एवं यान्त्रिक तरीके से खेती की जाने के कारण गौवंश की महत्वता व उपयोग की अनदेखी भी जा रही है।
4. एक गौवंशीय जीव से बनी नाडेप खाद का मूल्य लगभग 20 से 25 हजार रूपये वार्षिक होती है।
5. गाय के गोबर से बनी खाद का उपयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति निरंतर बढ़ती जाती है, जबकि रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशी रसायनों का प्रयोग करने से भूमि की उर्वरा-शक्ति निरंतर कम होती जा रही है और अन्ततोगत्वा भूमि बंजर ही हो जाती है।
6. मरे हुए पशु को भूमि के अन्दर दबाने के कुछ माह के बाद समाधि खाद प्राप्त होता है, जो कई एकड़ भूमि के लिए एक पर्याप्त सम्पूर्ण पौषण प्रदान करता है। मरे हुए पशु के एक सींग में गोबर भरकर कुछ समय की अवधि के लिए भूमि के अन्दर दबाने से एक अति-मूल्यवान सींग अथवा अणु खाद बन जाती है। जिसको एक एकड़ भूमि में प्रयोग किया जा सकता है।
7. गाय के गोबर में 16 प्रकार के विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थ पाये जाते हैं।
8. वर्तमान में डीजल-पैट्रोल के जलने के कारण कार्बन डाई-आफक्साइड के चलते व्याप्त प्रदूषण पर नियन्त्रण के लिए गोबर-मूत्र एवं वनस्पतियों का अधिकाधिक उपयोग करना होगा।
9. गो-मूत्र के अन्दर बहुत से रसायन उपलब्ध होते है जैसे-नाइट्रोजन एवं कार्बोलिक एसिड इत्यादि, जबकि दुधारू गाय के मूत्र में लेक्टोस, सल्फर, अमोनिया गैस, कॉपर, पोटेशियम, मैगनीज, यूरिया, साल्ट के अतिरिक्त अन्य विभिन्न क्षार तथा आरोग्यकारी अम्ल भी उपलब्ध होते हैं।
10. गाय के मूत्र में ताँबा उपलब्ध होता है जो मानव शरीर में पहुँचने के बाद स्वर्ण में परिवर्तित हो जाता है जिसमे सर्वरोग से लड़ने की क्षमता होती है और रोग प्रतिरोधकता में भी पर्याप्त रूप से वृद्वि करता है।
11. भारतीय देशी गाय के गोबर एवं मूत्र से विभिन्न औषधियों का निर्माण किया जाता है, जो मानव शरीर में होने वाली विभिन्न बीमारियों के उपचार में अत्यन्त प्रभावशाली पायी जाती हैं।
12. गो-मूत्र एवं गोबर से उन्नत किस्म के कीटनाशकों को बनाया जाता है, जिनके माध्यम से फसलों में लगने वाले विभिन्न रोगों एवं कीटों आदि का सफलतापूर्वक निवारण किया जाता है।
13. देशी गाय के दुग्ध, दही, घी, गो-मूत्र एवं गोबर के माध्यम से निर्मित पंचगव्य के द्वारा जटिल से जटिल रोग जैसे, टी0बी0, कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग, ब्लड़-प्रेशर, अस्थमा, गठिया, हेपेटाइटिस ‘ए’ तथा ‘सी’ आदि के रोगी लाभान्वित हो रहे हैं। भारत में विभिन्न स्थानों पर हजारों की संख्या में पंचगव्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य केन्द्रों को स्थापित किया जा रहा है, जहाँ रोगियों को उपचार के अनुसंधान के लिए गौ-विज्ञान अनुसंधान संस्थाना को स्थापित किया जा रहा है।
14. पंचगव्य चिकित्सा एवं गौ-आधारित कृषि-तन्त्र को अपनाने से सभ्सी गाँवों में युवाओं को रोजगार की प्राप्ति होगी तथा इससे ग्रामीण क्षेत्रों का आर्थिक विकास भी होगा और इसके साथ ही हमारा पर्यावरण एवं जनस्वास्थ्य भी सुरक्षित बना रहेगा।
15. बायो-गैस संयन्त्र के माध्यम से ईधन एवं चालक शक्ति का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में सफलतापूर्वक भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में किया जा रहा है।
16. ग्रामीण क्षेत्र में गाय के गोबर से निर्मित उत्पाद यथा साबुन, अंगराग पाउडर, कम्पोस्ट खाद, दीवार के रंग तथा धूपबत्ती आदि के निर्माण के लिए उद्योग इकाईयों की स्थापना की जा रही है, जिनके माध्यम से ग्रामीण तथा राष्ट्रीय आर्थिक विकास में वृद्वि होगी।
17. एक अनुमान के अनुसार, 40 मेगावॉट अश्व-शक्ति विद्युत की प्राप्ति हमारे पशुधन के माध्यम से प्राप्त होती है।
18. यदि भारत के समस्त पशुधन का पालन सुचारू रूप से, संरक्षण एवं संवर्धन किया जाए तो तो राष्ट्र की कुल विद्युत शक्ति का 70 सं 75 प्रतिशत भाग केवल पशु शकित के माध्यम से प्राप्त कर पाना सम्भव हो सकता है।
19. एक ताजा अनुमान के अनुसार, भारत में पशुधन के माध्यम से 5 करोड़ टन दूध वार्षिक प्राप्त होता है। अतः वर्तमान समय में भारत की बढ़ती हुई लनसंख्या को देखते हुए दुग्ध उत्पादन क्षमता में वृद्वि की ओर अधिक ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
20. लाखो गैलन गो-मूत्र (कीट-नियंन्त्रक) की प्राप्ति गौ-वंश के माध्यम से होती है।
21. भारत की राष्ट्रीय आय का बड़ा भाग लगभग 6 से 7 प्रतिशत, पशुधन के माध्यम से ही प्राप्त होता है।
वर्तमान समय में स्थान-स्थान पर संचालित किए जा रहे कत्लखानों में गौ-माँस तथा उनके चर्म के व्यवसाय के लिए लाखों की संख्या में गाय एवं गौ-वंश का कत्ल करके असंख्य गौ-वंश को नष्ट किया जा रहा है। राष्ट्रीय आर्थिक विकास तथा भारतीय संस्कृति की रक्षा के उद्देश्य से भारत सरकार के द्वारा विभिन्न कानून एवं आदेशों के माध्यम से तुरन्त ही गौ-वंश के वध को शत-प्रतिशत निषेध कर देना चाहिए। इस प्रकार के समस्त कत्लखानों एवं यान्त्रिक वध-शालाओं को बन्द किया जाना चाहिए और इसके साथ ही माँस एवं चर्म के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए।
गाँव एवं शहरों में गौ-रक्षा एवं गौ-वंश पालन, नस्ल-सुधार एवं अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना करने के लिए एक सुचारू व्यवस्था सरकार एवं ग्राम पंचायतों के सहयोग से संचालित की जानी चाहिए। इसके साथ ही जल-सहयोग के माध्यम से गौशालाओं का सुव्यवस्थित संचालन किया जाना एक अनिवार्य कदम है। गौ-वंश आदि के चरने के लिए पर्याप्त गोचर भूमि की आवश्यकता आवश्यक रूप से सरकार के द्वारा करायी जानी चाहिए और चारागाह की भूमि के अन्य प्रयोगों को कानूनन प्रतिबन्धित किया जाना चाहिए।
विभिन्न सड़कों एवं अन्य स्थानों पर पड़ी लावारिस, बीमार तथा बिना दूध देने वाली बूढ़ी गाय तथा अपहिज गाय एवं गौ-वंश की रक्षा एवं उनके जीवन निर्वाह की समुचित व्यवस्था भी सरकार के द्वारा ही कराई जानी चाहिए और सरकार के स्तर पर ही गौशालाओं तथा गौआश्रमों का निर्माण आधुनिक तकनीक के माध्यम से कराकर पशुधन को रखने का सुप्रबन्ध किया जाना चाहिए। विभिन्न संक्रामक रोगों तथा अन्य रोगों की रोकथाम व संरक्षण का सरकारी एवं निजी संस्थाओं के माध्यम से समुचित प्रबन्ध किया जाना भी आवश्यक होगा। बीमार पशुओं को स्वस्थ्य पशुओं से अलग स्वच्छ एवं सुरक्षित स्थानों पर रखकर उनके लिए आवश्यक उपचार की व्यवस्था भी कराई जानी चाहिए।
गौ-मूत्र एवं गाय के गोबर से औषधियों के निर्माण के लिए स्थान-स्थान पर, गाँव-गाँव में पंचगव्य औषधि निर्माण केन्द्र एवं औषधालय की स्थापना की जानी चाहिए, जिसके माध्यम से हमारे युवाओं को रोजगार की प्राप्ति होगी और बेरोजगारी की समस्या का कुछ समाधान भी होगा। ग्रामीण जनता को अपने गाँव में ही निकटतम स्थान पर कम खर्च अथवा निःशुल्क ही चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो सकेगी।
गौ-मूत्र एवं उसके गोबर के पूर्ण उपयोग के लिए खाद निर्माण केन्द्र तथा गैस संयन्त्र अधिक से अधिक और प्रत्येक गाँव में स्थापित किए जाने चाहिए, जिससे उत्पन्न गैस का ईंधन, चालक शक्ति तथा विद्युत आदि का उपयोग अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में ही किया जा सके।
इससे लघु उद्योगों के संचालन में विद्युत की माँग होती है उसकी किसी हद तक पूर्ती की जानी सम्भव हो सकेगी। गौ-मूत्र के द्वारा जहाँ उच्च कोटि के कीटनाशक बनते हैं और मानव तथा पशुधन के लिए बनाई जाने वाली विभिन्न औषध्यिों में प्रयोग किया जाता है, वहीं यह वनस्पति एवं फसलों के विभिन्न रोग-कीटों के नियन्त्रण में भी इसका उपयोग प्रमुखता के साथ किया जाता है। इसका प्रयोग करने से मानव शरीर, भूमि, वायु तथा जल आदि में पेस्टीसाइड्स तथा इन्सेक्टिसाइड्स रसायनों एवं रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग किए जाने से होने वाल असंख्य हानियो से भी तत्काल बचा जा सकता हैं गोबर की खाद का प्रयोग करने से उत्तम गुणवत्ता वाली फसलें, फल एवं सब्जियाँ आदि प्राप्त होती हैं जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभकारी होती हैं।
गौ-वंश का संरक्षण, पालन एवं संवर्धन की राष्ट्रीय आवश्यकता एवं महत्वता को दृष्टिगत रखते हुए इसे भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्वॉन्तों में सम्मिलत किया जाना चाहिए। इसके साथ ही भारत सरकार के द्वारा ‘‘राष्ट्रीय गौ-वंश एवं पशुधन प्रजनन नीति एवं विकास योजना” पृथक से तैयार की जानी चाहिए। भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के शिक्षा विभाग के द्वारा गौ-वंश की महत्ता, पालन, संरक्षण एवं संवर्धन विषय को प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक एवं महाविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल कर एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाने के लिए नीतिगत निर्णय लेकर क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
गौ-संरक्षण, पालन, संवर्णन तथा गौ-वंश पर आधारित ग्रामोद्योग तथा कुटीर उद्योग विकास प्रशिक्षण कार्यक्रमः गाय माता तथा गौ-वंश का भारत की कृषि एवं आर्थिक विकास में एक अतुलनीय स्थान है। अतः गौ-वंश संरक्षण, पालन, संवर्धन तथा गाय से प्राप्त होने वाले दूध, गोबर तथा गौ-मूत्र से तैयार किए जा रहे विभिन्न उत्पदों के उत्पादन, प्रोसेसिन्ग तथा क्रय-विक्रय आदि से सम्बन्धित तकनीकी एवं व्यवहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का निर्धरण किया जाना अनिवार्य है तथा इसकी क्रियान्विति विभिन्न सरकारी एवं निजी मंचों के सहयोग से भारत सरकार/राज्य सरकार गौ-सेवा आयोग एवं गौशाला संघों/फैडरेशन के माध्यम से ग्राम स्तर, ब्लॉक स्तर, जिला सत्र एवं तहसील स्तर पर सुनिशिचत् की जानी चाहिए।
मानव समाज को सदैव स्मरण रखना चाहिए कि वैदिक मंत्र ‘‘मातरः सर्व भूतानाम्’के अनुसार गाय समिष्टि पंचमहाभूत एवं समस्त प्रकृतिजन्य प्राणियों की माँ है। अतः गौ माता की रक्षा करना प्रत्येक व्यकित का सर्वोच्च कर्त्तव्य तथा धर्म है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।