
शहतूत की खेतीः लाभ एवं अवसर Publish Date : 28/04/2025
शहतूत की खेतीः लाभ एवं अवसर
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
पिछले कुछ वर्षों से किसान जहां एक तरफ मौसम की मार से पीड़ित हैं, वहीं दूसरी ओर सरकारी रवैए ने भी उन्हें तोड़ दिया है। खाद एवं बीज की किल्लत, खेती की बढ़ती लागत और खेती के घाटे से उबरने के लिए उन्हें खेती के कुछ नए तरीके अपनाने होंगे, जिससे कि वह खेती में होने वाले नुकसान की भरपाई कर अपनी आर्थिक सुरक्षा को भी सुनिश्चित कर सकें। इस प्रकार किसान भाई यदि नकदी फसल के रूप में शहतूत की नर्सरी तैयार कर इसकी खेती करते हैं तो वह अपनी आर्थिक दशा में सुधार कर सकते हैं।
इस क्रम में शहतूत की पत्तियों के माध्यम से कीटपालन करने की इच्छा रखने वाले शहतूत की खेती से बेहतर रोजगार के अवसर भी प्राप्त कर सकते हैं। रेश्म के कीट पालन करने के लिए शहतूत की पत्तियों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार यदि किसान शहतूत की खेती करते हुए रेश्म के कीट का पालन करते हैं तो वह अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
रेश्म कीट पालन के व्यवसाय में लगने वाली कुल लागत का लगभग 50 प्रतिशत भाग केवल पत्तियों पर ही खर्च हो जाता है, क्योंकि रेश्म के कीट का जीवनचक्र इसकी पत्तियों पर ही चलता है। पत्तियों की सहायता से ही रेश्म के कीट रेश्म का कोया बनाते है और यह कोया बाजार में 300 से 400 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है।
शहतूत की नर्सरीः- शहतूत की नर्सरी में शहतूत के पौधों को तैयार करने की अनेक विधियां हैं, जिनमें से बीज द्वारा, ग्राफ्टिंग द्वारा, लेयरिंग द्वारा और कटिग के द्वारा आदि प्रमुख है। वैसे कम लागत में उच्च गुणवत्ता युक्त पौधें कटिंग विधि से ही तैयार किए जाते हैं। उन्नत किस्म के शहतूत की कटिंग को तैयार करने के लिए शहतूत की 6 से 9 महीनें पुरानी टहनियों को काटकर उन्हे सूखने से बचाने के लिए छाया में रख देते हैं, इसके बाद इन टहनियों से 6 से 8 इंच तक के पीस 15 डिग्री के एंगल पर किसी तेज धार वाले चाकू से इस प्रकार से काट लेते हैं टहनियों से छिलका नहीं निकलने पाए। कटिंग प्राप्त करते समय ध्यान रखें कि कटिंग के लिए लगभग 22 सेंटीमीटर मोटी अर्थात एक पेंसिल की मोटाई के जितनी मोटी और 4-5 कली वाली कटिंग ही लेनी चाहिए।
इस तरह से प्राप्त की गई कटिंग को यदि तुरंत नहीं रोपित करना हो, तो इस कटिंग का बंडल बनाकर उसे किसी बोरी या मिट्टी दबाकर रख देना चाहिए और हल्की सिेचाई भी करते रहना चाहिए और जब इन्हें खेत में रोपित करना हो इनकी सीधे ही रोपाई कर देनी चाहिए।
पौधशाला में कटिंग रोपित करने का समय और विधि
कटिंग को पौधशाला में रोपित करने का सबसे उपयुक्त समय जुलाई-अगस्त और दिसम्बर-जनवरी के माह को माना जाता है। इस प्रकार दिसम्बर-जनवरी में लगाई गई कटिंग जुलाई-अगस्त एवं जुलाई-अगस्त में लगाई गई कटिंग दिसम्बर-जनवरी में मुख्य खेत में रोपने के लिए तैयार हो जाती है।
खेत में पहले छोटी-छोटी क्यारियां तैयार कर 6-6 इंच की दूरी पर लम्बी लाइन बनाकर कली के दो-तिाई भाग को लगभग 3 इंच की दूरी पर लाइनों में तिरछा गाड़ दिया जाता है। 8 से 10 लाइन लगाने के बाद लगभग एक फुट की जगह को खाली छोड़ दिया जाता है जिससे घास आदि को निकालने में आसानी रहती है। इस प्रकार से कटिंग लगाने के बाद कटिंग को चारों ओर से मिट्टी से दबाकर उसके आसपास गोगर की खाद डालकी हल्की सिंचाई कर दी जाती है।
एक एकड़ की पौधशाला में 6 से 8 पत्तियां आने के बाद 15 से 20 दिन के बाद इसमें उर्वरक का प्रयोग करने के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए। इसके साथ ही कटिंग का दीमक से बचाव करने के लिए एल्ड्रिन का प्रयोग करना चाहिए।
रोपाई करने की विधि
नर्सरी में कटिंग लगाने के 6 महीने बाद पौधें खेत में रोपने के लिए तैयार हो जाती हैं और एक एकड़ के खेत में लगभग 5,000 पौधे लगाए जा सकते हैं। पौधों की रोपाई 3 ग 3 अथवा 6 ग 3 ग 2 मीटर की दूरी पर करना उचित रहता है। शहतूत के पौधों के विकास में एक वर्ष का समय लगता है और उचित देखभाल करने पर तीसरे वर्ष से एक एकड़ जमीन में 10,000 किलोग्राम पत्तियों का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इतनी पत्तियों पर 300 किलोग्राम कोया का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है।
शहतूत की प्रजातियां
के-2, एम-146, डीआर-10 और एम-54 आदि शहतूत की उन्नत प्रजातियां है, जिनका उपयोग कर किसान भाई अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
उर्वरक, कीटनाशक एवं सिंचाई
शहतूत का वृक्षारोपण करने के 2-3 माह के बाद 50 किलोग्राम नाइट्रोजन का प्रति एकड़ की दर से उपायोग करना ठीक रहता है। मई-जून के महीनों में में सिंचाई का विशेष ध्यान रखें और जुलाई-अगस्त के महीने में बारिश के नहीं होने पर प्रत्येक 15-20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें।
खेत में दीमक लगने पर खेत को तैयार करते समय 100 कि.ग्रा. बीएचसी 20 फीसदी पाउडर, 5 फीसदी एल्ड्रिन को एकसाथ मिलाकर छिड़काव करें।
कटाई-छंटाई (प्रूनिंग) करना
शहतूत के बाग की उचित देखभाल कर लगभग 15 वर्षों तक उच्च गुणवत्ता युक्त पत्तियां प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए जून-जुलाई के महीने में कटाई-छंटाई जमीन से 6 इंच ऊपर तथा दिसम्बर के महीने में 3 फुट की ऊँचाई से करना उचित माना जाता है। कटाई-छंटाई करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इस कार्य के दौरान पौधों की छाल न निकलें।
एक वर्ष में दो बार कटाई-छंटाई कर अधिक पत्तियां प्राप्त की जा सकती है। जबकि वृक्षनुमा पेड़ की छंटाई वर्ष में एक बार अर्थात दिसम्बर के महीने में ही की जा सकती है। शहतूत में निरंतर कटाई-छंटाई से अधिक पत्तियां प्राप्त होती है। पत्तियां अधिक आने से अधिक लाभ प्राप्त होता है, क्योंकि कोया के उत्पादन में 50 प्रतिशत से अधिक व्यय तो केवल पत्तियों पर ही होता है।
प्राप्त होने वाला लाभ
शहतूत की खेती के लिए एक एकड़ में लगभग 5,000 पौधों की आवश्यकता होती है और एक पौधे से 2 से 2.5 किलोग्राम तक पत्ते मिल जाते हैं। एक किलोग्राम कोया की कीमत 250-300 रूपये प्रति किलोग्राम तक रहती है और इन कोया को रेश्म-पालन विभाग को आसानी से बेचा जा सकता है। हालांकि, कोया की कीमतों में उतार-चढ़ाव चलता रहता है,।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।