
कृषि विविधीकरण संवर्धन के लिए उचित रणनीति की भूमिका Publish Date : 23/04/2025
कृषि विविधीकरण संवर्धन के लिए उचित रणनीति की भूमिका
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
आधुनिक युग में कृषि विविधता कृषि के विकास के लिए एक महत्त्वपूर्ण रणनीति हो सकती है। कृषि विविधता की प्रक्रिया हरित क्रांति की आपूर्ति आधारित प्रक्रिया की तुलना अधिकांशतः माँग पर आधारित है। भारत जैसे देश में विगत की धनी किसान चालित हरित क्रांति की तुलना में भविष्य में कृषि विविधता के अन्तर्गत छोटी जोतों की अधिक बड़ी भूमिका अदा करेगी। इसकी निजी क्षेत्र की विशेषकर विपणन और प्रसंस्करण के क्षेत्र में भी अधिक सहभागिता होगी। उच्च मूल्य की प्राप्य वस्तुओं की माँग को पूरी करने के लिए कृषि विविधीकरण को प्रोत्साहन संस्थाओं और निवेश की अत्यंत आवश्यकता है। नीतिगत सहायता के लिए दिशा और कृषि विविधता पर बल देने के विषय में, भारत में कृषि विविधता की रणनीति के लिए उसे एक सुझाव के रूप में पेश करते हैं-
(1) एकीकृत नीति जैसे कि अनुसंधान, उत्पादन, कटाई के बाद, प्रबंधन, प्रसंस्करण और विपणन आदि एक ही छत के नीचे होना चाहिए।
(2) कृषि सेक्टर में सार्वजनिक सेक्टर के निवेश का, जिसने पिछली दो दशाब्दियों में मुख्य ह्रास देखा है, पुनः उसका नवीकरण किया जाए।
(3) एकीकृत कृषि प्रणाली पर बल दिया जाए, जिसमें सस्योत्पादन, मत्स्य पालन, बागवानी, पशुपालन, कुक्कट पालन, सुअर-पालन और बकरी पालन, आदि शामिल हैं।
(4) स्थान विशिष्ट विविध कृषिक प्रणाली अपनाई जानी चाहिए।
(5) प्रौद्योगिकीय और विस्तार सेवाओं के द्वारा जल संसाधनों के संरक्षण और दक्षतापूर्वक प्रबंधन के उपाय सहज बनाए जाने चाहिएं।
(6) फलों और सब्जियों, पुष्प उत्पादन, मत्स्यपालन, बागवानी और पशु पालन, झाड़ के क्षेत्र में खपत की बड़ी संभावनाओं का उपलब्ध संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए काम में लाया जाना चाहिए।
(7) कटाई के पश्चात प्रबंधन, भंडारण और विपणन सुविधाओं पर भी पर्याप्त बल दिया जाना चाहिए। यह सब महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जिनकीं कमज़ोरियाँ समाप्त की जानी चाहिएं। भारतीय कृषि की विविध प्रवृत्तियाँ 36 योजनाओं के माध्यम से कृषि विकास सुनिशिचत किया जाना चाहिए।
(8) संस्थागत उधार की उपलब्धता का विस्तार किया जाना चाहिए।
(9) कृषि में युवाओं को आकर्षित कर और जुटाए रखकर कृषि विविधता को उसकी संभावित ऊँचाइयों तक ले जा सकता है। इसके लिए नीति बनाई जानी चाहिए तथा उन्हें पूरी गंभीरता के साथ क्रियान्वित भी किया जाना चाहिए।
(10) हमारा निर्यात समुच्चय विविधतापूर्ण और बेहतर अवसरों से परिपूर्ण है। कृषि उत्पादों के ऐसे निर्यात पर बल दिया जाना चाहिए जो कि बढ़ने वाली कृषि विविधता को यथाविधि प्रोत्साहित कर रही है।
सारांशः
फसल विविधता का अभिप्राय केवल एक ही फसल उगाने के बदले कई फसलें उगाना होता है। फसल विविधता के लिए इस प्रकार की युक्ति निम्नलिखित कारकों में सहायक होती हैः (क) उपलब्ध भूमि, श्रम, जल और अन्य कृषि संसाधनों का बेहतर और इष्टतम प्रयोग।
(ख) फसल विफलता, उपज हानि और बाजारू असफलता से उत्पन्न होने वाले जोखिमों का न्यूनीकरण।
(ग) किसानों को शीघ्र और नियमित लाभ प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती है। परंतु विविधता के ये लाभ लागत के बिना नहीं प्राप्त हो सकते हैं जैसेः-
(i) फसल विविधीकरण के लिए प्रत्येक किसान से प्रबंधकीय निवेश के उच्चतर स्तर की आवश्यकता होती है, और
(ii) विभिन्न प्राप्य कृषि वस्तुओं का न्यून अधिशेष कुशल संचालन और उत्पादन के विपणन में कठिनाइयाँ उत्पन्न करता है।
भारतीय कृषि में इन अंतर्निहित दुर्बलताओं को कम करने के लिए एक प्रभावशाली नीति और सार्वजनिक निवेश अति आवश्यक है। वास्तव में फसल विविधता को खाद्य/पोषण सुरक्षा, किसानों की आय वृद्धि, गरीबी उन्मूलन, रोजगार के अवसरों का सृजन करने, भूमि और जल का विवेकपूर्ण प्रयोग, धारणीय कृषि विकास और पर्यावरण सुधार के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रभावशाली रणनीति के रूप में स्वीकार किया गया है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।