
भारत में एमएसएमई में प्रौद्योगिकी का समावेश अपरिहार्य Publish Date : 15/10/2025
भारत में एमएसएमई में प्रौद्योगिकी का समावेश अपरिहार्य
डॉ आर एस सेंगर एवं अन्य
भारत में एमएसएमई देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं। यह क्षेत्र रोजगार सृजन, नवाचार और उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, तेजी से बदलते बाजार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के कारण, एमएसएमई के लिए प्रौद्योगिकी का समावेश अब अपरिहार्य हो गया है। आज के डिजिटल युग में, जहां तकनीकी नवाचार हर उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है, एमएसएमई को भी अपने कार्यप्रणाली में प्रौद्योगिकी को अपनाने की आवश्यकता महसूस हो रही है। इससे न केवल उनकी उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि होगी, बल्कि वे वैश्विक बाजार में भी अपनी जगह बना सकेंगे।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) आर्थिक विकास के प्रेरक है। इन्हें विकसित और विकासशील देशों में आर्थिक वृद्धि के इंजन के रूप में माना जाता है, और देश के समग्र विकास में योगदान देने की इनमें अपार क्षमता है। दुनिया भर की सरकारों ने एमएसएमई की क्षमता और संभावनाओं को पहचाना है और उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम और योजनाएं शुरू की हैं। भारत में 6.23 करोड़ से अधिक एमएसएमई हैं, जो 25 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। यह क्षेत्र राष्ट्रीय जीडीपी में लगभग 30% और देश के निर्यात में 50% तक योगदान देता है
25% से अधिक एमएसएमई विनिर्माण क्षेत्र में कार्य करते हैं, जैसे वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण, रसायन, और विद्युत या उपकरण निर्माण। भारतीय अर्थव्यवस्था में यह क्षेत्र सतत विकास, समावेशन और समानता के राष्ट्रीय उद्देश्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
वर्तमान स्थिति
भारत में एमएसएमई तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र अभी भी कमजोर और पिछड़ा हुआ है, जिसमें प्रयासों की बिखराव वाली प्रवृत्ति और उद्योग तथा अनुसंधान/प्रौद्योगिकी/शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग की कमी प्रमुख रूप से देखी जाती है। यह तब है जब तकनीकी जागरूकता और पहुँच आज के प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण में किसी भी उद्यम की स्थिरता और वृद्धि के लिए अनिवार्य होती जा रही है।
जहां बड़ी कंपनियों के पास तकनीकी नवाचार और उन्नयन के लिए वित्तीय और मानव संसाधन होते है, वहीं एमएसएमई अपनी सीमित क्षमताओं के कारण न तो अपनी तकनीकी जरूरतों की पहचान कर पाते हैं और न ही उन्हें पूरा कर पाते हैं। वाणिज्यिक स्तर पर तकनीक का विकास और उसे अपनाना भी एमएसएमई की संरचनात्मक कमजोरियों के कारण एक चुनौती बन जाता है। हालांकि सरकार समर्थित कई अनुसंधान एवं विकास (R&D) संस्थाएं अनुसंधान, तकनीकी स्थानांतरण और सामाजिक नवाचार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कार्य कर रहे हैं, फिर भी एमएसएमई को इनसे पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा है।
इन संस्थानों द्वारा विकसित की जा रही कई तकनीकों में व्यावसायीकरण की संभावनाएं होती है, लेकिन इनमें से केवल एक छोटा हिस्सा ही एमएसएमई के लिए व्यावसायिक और व्यापक उपयोग में आ पाता है। अधिकांश नवाचार 'प्रोटोटाइप' या 'प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट' के स्तर तक ही सीमित रह जाते हैं। परिणामस्वरूप, उद्यम अपने दैनिक संचालन में नवाचार को उत्पन्न, आत्मसात और एकीकृत नहीं कर पाते और अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास (RTD) संस्थानों द्वारा दी जाने वाली तकनीकी और नवाचार सेवाओं का लाभ नहीं उठा पाते।
एमएसएमई क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए तकनीक की गुणवत्ता में सुधार और उसका उन्नयन आवश्यक है। जहां बड़ी कंपनियों के पास पर्याप्त धन होता है, जिससे वे वैश्विक बाजार की जानकारी प्राप्त कर उन्नयन और गुणवत्ता सुधार की रणनीतियां बना पाती है, वहीं एमएसएमई के पास संसाधनों की कमी और सूचना तक सीमित पहुँच होती है। इसके अतिरिक्त, क्रेडिट की कमी के कारण एमएसएमई पूंजीगत व्यय को न्यूनतम रखकर लागत कम करने का प्रयास करते हैं। इस प्रवृत्ति के चलते, भारतीय एमएसएमई क्षेत्र नवीनतम तकनीक को अपनाने में सुस्त बना रहता है और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाता है।
भारत में एमएसएमई द्वारा प्रौद्योगिकी को अपनाने में प्रमुख चुनौतियां
सीमित जागरूकता और डिजिटल साक्षरताः एमएसएमई को नवीनतम तकनीकी समाधानों और उन्हें अपनाने से होने वाले लाभों की पर्याप्त जानकारी नहीं होती। साथ ही, आधुनिक मशीनरी को अपनाने और मूल्यांकन करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता की कमी तथा उनके कार्यबल में सीमित डिजिटल साक्षरता इस क्षेत्र की तकनीक को प्रभावी ढंग से पहचानने, अपनाने और व्यावसायिक प्रक्रियाओं में एकीकृत करने की क्षमता को बाधित करती है। इस कारण एमएसएमई परिचित लेकिन पुरानी मशीनों और उपकरणों पर ही निर्भर रहते हैं।
बाजार सूचना तक सीमित पहुँचः एमएसएमई के पास अक्सर बाजार की बुद्धिमत्ता, उपभोक्ता अंतर्दृष्टि और उद्योग की प्रवृत्तियों (ट्रेंड्स) की जानकारी नहीं होती, जो कि बाजार के अवसरों की पहचान, ग्राहक आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाने और नवीन उत्पादों या सेवाओं के विकास के लिए आवश्यक होती है। सीमित मार्केट रिसर्च क्षमताएं एमएसएमई की नवाचार और प्रतिस्पर्धा बनाए रखने की क्षमता को बाधित करती है।
वित्तीय बाधाएं: तकनीकी ढांचा, सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन और डिजिटल टूल्स में निवेश के लिए लागत संबंधी बाधाएं एमएसएमई के लिए एक बड़ी चुनौती होती है। सीमित वित्तीय पहुँच और उच्च प्रारंभिक लागतें उन्हें तकनीकी समाधानों को अंगीकार करने से रोकती हैं।
जटिलता और अनुकूलन की कठिनाईः एमएसएमई तकनीकी समाधानों की जटिलता को समझने में कठिनाई महसूस करते हैं और उनके पास अपने विशिष्ट व्यावसायिक आवश्यकताओं के अनुसार इन समाधानों को अनुकूलित करने के लिए संसाधन या विशेषज्ञता नहीं होती। तैयार किए गए (ऑफ-द-शेल्फ) समाधान हमेशा एमएसएमई की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं होते।
अवसंरचना और कनेक्टिविटी संबंधी समस्याएं ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में अपर्याप्त डिजिटल अवसंरचना, अस्थिर विद्युत आपूर्ति, और कमजोर इंटरनेट कनेक्टिविटी, एमएसएमई के लिए क्लाउड-आधारित तकनीकों, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और डिजिटल मार्केटप्लेस का लाभ उठाने में बाधा उत्पन्न करती है।
कुशल कर्मियों की कमीः एमएसएमई क्षेत्र में डेटा एनालिटिक्स और डिजिटल मार्केटिंग जैसी उभरती तकनीकों में विशेषज्ञता रखने वाले कुशल पेशेवरों की कमी है। सीमित प्रतिभा और विशेषीकृत कौशल की अनुपस्थिति एमएसएमई को नवाचारपूर्ण समाधान विकसित करने और लागू करने से रोकती है।
पुरानी और प्रयुक्त मशीनरी का उपयोगः नई मशीनो और उपकरणों की अत्यधिक अग्रिम लागत के कारण कई एमएसएमई उन्हें वहन नहीं कर पाते। इसलिए वे पूंजीगत व्यय को कम करने के लिए अक्सर प्रयुक्त या पुनर्निर्मित मशीनरी का उपयोग करते हैं।
इन-हाउस अनुसंधान एवं विकास (R&D) और तकनीकी क्षमताओं की कमी कई एमएसएमई के पास तकनीक और नवाचार में निवेश के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन, कुशल कार्यबल और अवसंरचना की कमी होती है। सीमित बजट, उच्च प्रारंभिक लागत और निवेश पर प्रतिफल की अनिश्चितता उन्हें R&D, प्रशिक्षण और तकनीकी अपनाने से दूर रखती है।
बाजार बल और प्रतिस्पर्धात्मकता से मुकाबलाः प्रतिस्पर्धा, संरक्षणवादी प्रवृत्ति, एकाधिकार, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) और मांग की अनिश्चितता जैसे बाजार लक्षण किसी फर्म की नवाचार क्षमता को प्रभावित करते हैं- विशेष रूप से उत्पाद और बाजार संबंधित नवाचारों को। साथ ही, एमएसएमई क्षेत्र की खंडित संरचना और विशेष बाजारों में तीव्र प्रतिस्पर्धा तकनीक और नवाचार में निवेश को हतोत्साहित करती है।
उभरती तकनीकों से संभावित चुनौतियां: एमएसएमई को तकनीक, बाजार, निर्यात और डिजिटल परिवर्तन जैसे कई मोचौं पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (10T) द्वारा सक्षम बढ़ी हुई कनेक्टिविटी और अधिक परिष्कृत डेटा संग्रह व विश्लेषण क्षमताओं ने स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग की ओर बदलाव को जन्म दिया है। IoT के साथ, डेटा एक महत्वपूर्ण संपत्ति बन जाता है जो व्यवसायो को सप्लाई चेन, निर्माण प्रक्रियाओं और पूरे इकोसिस्टम को अनुकूलित करने में मदद करता है। इन बदलावों के बीच, एमएसएमई को यह तय करना होता है कि कहां और कैसे निवेश करें और किन तकनीकों को अपनाएं जो उनके लिए सबसे अधिक लाभकारी हों।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।