
बायोस्टिमुलेंट्स, के खिलाफ सरकार क्यों हुई सख्त Publish Date : 16/09/2025
बायोस्टिमुलेंट्स, के खिलाफ सरकार क्यों हुई सख्त
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
बायोस्टिमुलेंट क्या होते हैं?
बायोस्टिमुलेंट्स वे पदार्थ या सूक्ष्मजीव होते हैं, जो बीज, पौधे या मिट्टी पर छिड़काव करने पर पौधों की प्राकृतिक प्रक्रियाओं को बढ़ावा देते हैं। इन तत्वों में लाभकारी बैक्टीरिया, फफूंद या पौधों से प्राप्त तत्व शामिल हो सकते हैं। ये तत्व खाद या कीटनाशक नहीं होते, लेकिन उत्पादन बढ़ाने, पौधों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और पोषक तत्वों के अवशोषण में पौधों की मदद करते हैं। फसल के लिए टॉनिक का काम करने वाले तत्वों के रुप में प्रचारित किए जाते हैं।
हाल ही में कृषि मंत्री ने कहा, “अब केवल उन्हीं बायोस्टिमुलेंट उत्पादों को बाजार में बेचने की अनुमति दी जाएगी, जिन्हें वैज्ञानिक स्तर पर जांच के बाद स्वीकृति प्रदान की गई हो। इसकी पूरी जिम्मेदारी संबंधित अधिकारियों की होगी।” उन्होंने कृषि मंत्रालय के अधिकारियों को मानक प्रक्रिया यानी एसओपी कोतैयार करने के निर्देश भी दिए हैं, जिससे एक स्पष्ट नियम और प्रक्रिया का निर्धारण किया जा सके।
फसल के लिए टॉनिक के रूप मेंप्रचारित किए किए जाने वाले बायोस्टिमुलेंट्स से जुड़ी अनियमितताओंकेखिलाफ कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक जंग छेड़ दी है। सरकार का यह कदम न केवल किसानोंकोगुणवत्ता वाले इनपुट उपलब्ध कराने में अहम है, बल्कि बायोस्टिमुलेंट बाजार में अनियमितताओं पर अंकुश लगाने का भी एक प्रयास है। आने वाले दिनों में बायोस्टिमुलेंट उत्पादों को वैज्ञानिक कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही बाजार में उतारा जा सकेगा इसके बाद ही उन्हें बाजार में बेचने की अनुमति प्रदान की जाएगी।
भारत में बायोस्टिमुलेंट उत्पादों की अनियमित बिक्री और गुणवत्ता को लेकर लगातार आ रही शिकायतों पर केंद्र सरकार ने काफी सख्ती दिखाई है। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों स्पष्ट किया है कि अब कोई भी बायोस्टिमुलेंट तब तक बाजार में नहीं बेचा जा सकेगा, जब तक कि उसे वैज्ञानिक रूप से स्वीकृति नहीं की जाती है।
तय किए जाएंगे मानक नियम
कृषि मंत्री ने कहा, “अब केवल उन्हीं बायोस्टिमुलेंट उत्पादों को बाजार में बेचने की अनुमति प्रदान की जाएगी, जिन्हें वैज्ञानिक स्तर पर जांच के बाद मंजूरी दी गई हो। इसकी पूरी जिम्मेदारी संबंधित अधिकारियोंकी होगी।” उन्होंने कृषि मंत्रालय के अधिकारियों को मानक प्रक्रिया यानी एसओपी को तैयार करने के निर्देश भी दिए हैं, जिससे एक स्पष्ट नियम और प्रक्रिया निर्धारित की जा सके।
अभी तक बिना नियमों के हो रही थी बिक्री
कृषि मंत्री ने चिंता जताई कि देश में हजारों कंपनियां वर्षों से बायोस्टिमुलेंट बेच रही हैं, लेकिन इनके लिए कोई ठोस नियम या प्रक्रिया उपलब्ध नहीं है। हर साल इन उत्पादों की बिक्री के लिए अनुमति की समय सीमा बढ़ा दी जाती है, लेकिन कई बार किसानोंसे शिकायतेंआती रही हैंकि इनसे कोई लाभ नहीं हो रहा, इसके बावजूद ये उत्पाद खुलेआम बिकते रहते हैं।
संदिग्ध कंपनियों पर होगी कार्रवाई
कृशि मंत्री चौहान ने कहा कि सरकार अब ऐसे संदिग्ध निर्माताओं पर कार्रवाई करेगी, जो बिना वैज्ञानिक प्रमाण और गुणवत्ता जांच के बायोस्टिमुलेंट बाजार में बेच रहे हैं। उन्होंने दो टूक कहा, “अब सरकार इसे किसी भी हाल में इसे बर्दाश्त नहीं करेगी।”
बायोस्टिमुलेंट को लेकर क्या हैं परेशानियाँ?
भारत में बायोस्टिमुलेंट्स का उपयोग तेजी से बढ़ा है, लेकिन इसके साथ कई गंभीर समस्याएं भी सामने आती रही हैं, जिनके चलते सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ता है। इस सेक्टर में सामने आने वाली प्रमुख दिक्कतों में बिना वैज्ञानिक प्रमाण के इनकी बिक्री होना एक बड़ा एवं प्रमुख मुद्दा है। कई कंपनियां ऐसे उत्पाद बेचती रही हैं, जिन्हें कोई वैज्ञानिक जांच या प्रमाणन नहीं मिला होता है। इससे यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि उत्पाद प्रभावी भी है या नहीं।
किसानों को यह विश्वास दिलाया जाता रहा है कि बायोस्टिमुलेंट्स से पैदावार बढ़ेगी, लेकिन कई बार इसका कोई असर नहीं होता, जिसकी वजह से किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है और उनका इन उत्पादों से विश्वास भी टूटता है।
खाद और कीटनाशक को लेकर भ्रम
कई किसान बायोस्टिमुलेंट्स को खाद या कीटनाशक समझ बैठते हैं, जबकि यह इन दोनों से अलग-अलग होते हैं। इस भ्रम के कारण बायोस्टिमुलेंट्स का गलत तरीके से उपयोग भी होता रहा है।
नियमों की कमी के चलते कई सालों से इन उत्पादों की बिक्री के लिए सिर्फ अस्थायी अनुमति दी जाती रही है। कोई स्थाई नियम या प्रक्रिया मौजूद नहीं थी, जिससे पूरे सेक्टर में अराजकता का माहौल रहा है। ऐसे में अब कृषि मंत्री की इस संबंध में नई घोषणा के साथ बदलाव की उम्मीद की जा रही है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।