बीसी-6 बनाता है खेती को आसान एवं लाभकारी व्यवसाय      Publish Date : 10/09/2025

        बीसी-6 बनाता है खेती को आसान एवं लाभकारी व्यवसाय

                                                                                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

किसानों को अब खेती में फसलीय पौधों की बढ़वार, फसल की गुणवत्ता एवं चमक आदि के लिए अलग-अलग रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आईआईवीआर) के द्वारा जैविक सूक्ष्मजीव मिश्रण तैयार किया गया है। यह मिश्रण मृदा की उर्वरता को बढ़ाने के साथ-साथ पौधों के स्वास्थ्य, तनाव प्रबन्धन और उत्पाद की गुणवत्ता आदि को सुनिश्चित् करता है। मिट्टी के सुपर हीरो कहे जाने वाले छह तत्व हैं जिनका प्रयोग करने से खेती आसान और एक लाभकारी व्यवसाय बनने के साथ ही पर्यावरण के अनुकूल भी होगें।

बीसी-6 मृदा में प्राकृतिक तौर पर पाए जाने वाले छह बैसिलस जीवाणुओं का एक विशेष मिश्रण है। इसकी सबसे विशेष बात तो यह है कि यह रासायनिक उर्वरकों का एक प्रभावी और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है। यह जीवाणु मृदा में फॉस्फोरस, पोटाश और जिंक को घुलनशील बनाते हैं, जिससे पौधे इन्हें आसानी से ग्रहण कर सकते हैं।

यह पौधों के साथ सहजीवी सम्बन्ध स्थापित कर पौधों को वृद्वि प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त यह पौधों के स्वास्थ्य और तनाव के प्रबन्धन में भी मददगार साबित होते हैं। रासायनिक उर्वरकों की नि प्र्रति दिन बढ़ती कीमतें, कम होती मृदा उर्वरता और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रहें किसानों के लिए बीसी-6 किसील वरदान से कम ऩहीं माना जा रहा है।

आईआईवीआर के विज्ञानी डॉ0 डी. पी. सिंह और डॉ0 सुदर्शन मौर्य ने चार वर्षों की मेहनत के बाद बीसी-6 का विकास किया है। डॉ0 सिंह बताते हैं कि संस्थान के परीक्षण फार्म से छह बैसिलस जीवाणुओं का चयन किया गया था। लम्बे शोध और शोध के उत्साहजनक परिणामों के बाद बीसी-6 को रासायनिक उर्वरकों का एक बढ़िया विकल्प बनाता है।

आईआईवीआर के निदेशक डॉ0 राजेश कुमार का कहना है कि हमारा लक्ष्य किसानों को एक ऐसी तकनीक प्रदान करना था, जो कि उनकी आय को बढ़ाए और साथ ही पर्यावरण को भी सुरक्षित बनाए रखने में योगदान करें। इस दिशा में बीसी-6 एक बड़ा कदम है।

टमाटर की फसल में दिखा कमालः

आईआईवीआर के फसल उन्नयन विभाग के अध्यक्ष डॉ0 नरेन्द्र रॉय के अनुसार, बीसी-6 के फील्उ ट्रॉयल में बहुत उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं। टमाटर की फसल में इसका प्रयोग करने से न केवल टमाटर का उत्पादन बढ़ा बल्कि उसकी गुणवत्ता में भी काफी सुधार हुआ है। इससे टमाटर के पौधों की ऊँचाई, जड़ों की लम्बाई, तने की मोटाई और पत्तियों के क्षेत्रफल में भी वृद्वि हुई है। इसके अलावा प्रत्येक गुच्छे में 2-3 अतिरिक्त फूल भी आए हैं।

छह सूक्ष्मजीवों के मेल से बना कंसोर्टियम, प्राकृतिक रूप से करता है पौधों की देखभाल एवं सुरक्षा

त्रिआयामी उपयोग, आसान और प्रभावी

बीसी-6, किसानों की सुविधा के लिए तरल, पाउडर और दानेदार तीनों रूपों में ही तैयार किया गया है। बीज प्राइमिंग यानी कि बुवाई से लगभग 12-24 घंटे पूर्व बीज बीसी-6 के घोल में भिगोया जाता है। ऐसा करने से बीज का अंकुरण तीव्र गति से होता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और पौधें स्वस्थ उगते हैं। इसके द्वारा जड़ शोधन के दौरान पौधों की जड़ों को रोपाई से पूव्र 30 से 45 मिनट तक बीसी-6 के घोल में भिगोया जाता है, जिससे पौधों की जड़ों का विकास उत्तम होता है और उनकी जल-धाण क्षमता में भी वृद्वि होती है। जब पौधे थोड़े बड़े हो जाते हैं तो पौधों का कीट एवं रोगों से बचाव करने के लिए बीसी-6 का पौधों पर छिड़काव भी किया जा सकता है।

बीसी-6, पौधों की मदद इस प्रकार से करता है-

पोषक तत्वों की उपलब्धताः मृदा के अन्दर उपलब्ध फॉस्फोरस एवं जिंक आदि को पौधों के लिए उपयोग करने के योग्य बनता है।

प्राकृतिक एंटीबायोटिकः हानिकारक कवक एवं बैक्टीरिया आदि के विरूद्व प्राकृतिक एंटीबायोटिक्स का उत्पादन करता है।

हॉर्मोन का उत्पादनः पौधों को वृद्वि प्रदान करने वाले विभिन्न प्रकार के हॉर्मोन्स जैसे- इंडोल एसीटिक एसिड (आईएए) और गिबरेलिन आदि का निर्माण करता है।

तनाव प्रबन्धनः सूखा, अत्याधिक नमी या तापमान की मार आदि से पौधों का बचाव करता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।