जलवायु परिवर्तन और वर्षा पैटर्न में बदलाव      Publish Date : 05/09/2025

                   जलवायु परिवर्तन और वर्षा पैटर्न में बदलाव

                                                                                                                                                                                                  प्रोफेसर राकेश सिंह सेंगर

भारत की लगभग 64 प्रतिशत जनसंख्या तो मूलतः कृषि पर ही आश्रित है और 65 फीसदी भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर है। कृषि, भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ होने के कारण मानसून यहां की कृषि व अर्थव्यवस्था दोनों को समानरूप से प्रभावित करता है। वास्तव में, मानसून अक्ष है जिसके आसपास भारत अर्थव्यवस्था घूमती है। इसलिए, हम कह सकते हैं मॉनसून भारतीय अर्थव्यवस्था को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

बे-मौसम बारिश के कारण

                                                                        

आइये बे-मौसम बारिश के विभिन्न कारणों पर नजर डालते हैं-

जलवायु पैटर्न में बदलावः अप्रत्याशित मौसम पैटर्न और असामयिक वर्षा को ग्लोबल वार्मिंग, कमजोर पश्चिमी विक्षोभ और मजबूत उपोष्णकटिबंधीय जेट धाराओं के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न ये कारक अनियमित बारिश की घटनाओं के उद्भव में योगदान करते हैं।

अल नीनो घटनाएं: अल नीनो, एक जलवायु घटना है, जो तब होती है जब पश्चिमी प्रशांत महासागर से गर्म पानी पूर्व की ओर बढ़ता है। इस घटना के कारण कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति पैदा होती है और अन्य क्षेत्रों में बे-मौसम बारिश होती है।

ला नीना घटनाएं: अल नीनो के विपरीत, ला नीना घटनाएं तब सामने आती है जब पूर्वी प्रशांत महासागर से ठंडा पानी पश्चिम की ओर बहता है। इसके परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा होती है और अन्य स्थानों पर बे-मौसम बारिश शुरू हो जाती है।

वायुमंडलीय अस्थिरताः वायुमंडलीय अस्थिरता भी अप्रत्याशित वर्षा को जन्म दे सकती है। वायुमंडलीय दबाव में अचानक परिवर्तन गैर-मानसून अवधि के दौरान भी वर्षा को बढ़ावा दे सकता है।

मानवीय प्रभावः वनों की कटाई, शहरीकरण और प्रदूषण जैसी मानवीय गतिविधियाँ भी बे-मौसम बारिश में योगदान देती हैं। वनों की कटाई प्राकृतिक जल चक्र को बाधित करती है, जबकि शहरीकरण और प्रदूषण सूक्ष्म जलवायु को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बे-मौसम बारिश की घटनाएं बढ़ जाती है।

दक्षिण पश्चिम मानसून के लौटने की उम्मीद कब तक

                                                                    

19 से 25 सितंबर के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसून के लौटने की उम्मीद जताई जा रही है। आईएमडी के अनुसार, 19-25 सितंबर के दौरान उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों से दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के लिए परिस्थितियां अनुकूल होने की संभावना है।

बे-मौसम बारिश से फसलों पर प्रभाव

दरअसल, सामान्य से अधिक बारिश किसानों के लिए संकट लेकर आई है। ये बरसात गर्मी में बोई गई खड़ी फसलों जैसे धान, कपास, सोयाबीन, मक्का और दलहन पर बुरा असर डाल सकती है। क्योंकि सामान्यतया ये फसले सितंबर के मध्य तक कटने लगती हैं। फसल खराब होने से खाद्य महंगाई बढ़ सकती है। हालांकि इससे मिट्टी में नमी अधिक रहेगी और जाड़े के सीजन में बोई जाने वाली फसलों में भी प्रणाम स्वरूप देरी देखने को मिलेगी जिससे आगामी फसलों के उत्पादन में भी कमी देखने को मिलेगी।

फसल क्षतिः फसलों को अप्रत्याशित वर्षा के कारण गंभीर नुकसान हो सकता है। अत्यधिक नमी से जलभराव, जड़ सड़न और फसल की पैदावार में कमी हो सकती है।

गुणवत्ता में गिरावटः अत्यधिक नमी के कारण फलों और सब्जियों जैसी फसलों की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। इस बारिश के परिणाम स्वरुप आने वाले दिनों में सब्जी के भाव में काफी उछाल देखने को मिलेगा, जिसके परिणामस्वरूप किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

कीट एवं रोगः बे-मौसम बारिश के कारण लंबे समय तक नमी बनी रहने से कीटों और रोगों के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा होती हैं, जिससे फसल के स्वास्थ्य पर और अधिक बुरा प्रभाव पड़ता है।

रोपण और कटाई में विलम्बः बे-मौसम बारिश से रोपण और कटाई में देरी हो सकती है, जिससे कृषि उत्पादन में कमी आ सकती है और किसानों को वित्तीय नुकसान हो सकता है।

बे-मौसम बारिश से कैसे करें दो-दो हाथ

कुछ बातों का ध्यान रखकर हमारे किसान भाई अपने फसलों को बे-मौसम बारिश के प्रभाव से बचा सकते हैं और अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं-

पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: उन्नत मौसम पूर्वानुमान प्रणालियों को लागू करने से किसानों को बे-मौसम बारिश का पूर्वानुमान लगाने और निवारक उपाय करने में मदद मिल सकती है।

संचार चैनलः एसएमएस अलर्ट, मोबाइल ऐप और सामुदायिक रेडियो आदि के माध्यम से मौसम की जानकारी प्रसारित करने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि किसानों को दूर-दराज के क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण अपडेट प्राप्त हो।

फसल विविधीकरणः जलवायु-अनुकूल फसलों की खेती को बढ़ावा देने से बे-मौसम बारिश से जुड़े जोखिम कम हो सकते हैं।

उचित फसल चक्रः मौसम के अनुसार उचित फसल चक्र को अपनाने से मृदा स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है, इससे कीटों का दबाव भी कम हो सकता है, तथा किसानों के लिए वैकल्पिक आय स्रोत उपलब्ध हो सकते हैं।

समुचित किस्में: मौसम विभाग द्वारा आने वाले मौसम की सही जानकारी प्राप्त करके उसके अनुसार ही सही किस्म का या अनुकूल किस्म का चयन करना महत्वपूर्ण हो सकता है।

बेहतर जल निकासी का प्रबन्धनः ग्रामीण बुनियादी ढांचे, विशेष रूप से जल निकासी प्रणालियों को बेहतर बनाने से बे-मौसम बारिश के दौरान अतिरिक्त जल प्रबंधन में मदद मिल सकती है।

बीमा योजना: कृषि बीमा शुरू करने और उसे बढ़ावा देने से बे-मौसम बारिश के कारण फसल को होने वाले नुकसान की स्थिति में किसानों को एक सुरक्षा कवच मिल सकता है।

निष्कर्षः

सामान्य से अधिक बारिश किसानों के लिए संकट लेकर आई है। ये बरसात गर्मी में बोई गई खड़ी फसलों जैसे धान, कपास, सोयाबीन, मक्का और दलहन पर बुरा असर डाल सकती है। इसलिए हमारे किसान भाइयों को मौसम विभाग के पूर्व अनुसार खेती में किस्म और फसलों का चयन करना चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।