हमारे जीवन में औषधीय पौधों का महत्व      Publish Date : 01/09/2025

                    हमारे जीवन में औषधीय पौधों का महत्व

                                                                                                                                                               प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता

मानव, प्राचीन काल से ही रोगों से बचाव हेतु विभिन्न प्रकार के पौधों का उपयोग करता आया है। इन औषधीय पौधों की जड़ें, तने, पत्तियाँ, फूल, फल, बीज और यहाँ तक कि छाल का प्रयोग भी रोगों के उपचार के लिए किया जाता रहा है। पौधों में इस प्रकार के औषधीय गुण उनमें विद्यमान कुछ रासायनिक पदार्थों के कारण होता है, जो मानव-शरीर पर विशिष्ट क्रिया करते हैं।

                                                          

इस प्रकार के औषधीय गुणों से युक्त मुख्य पौधें एरगोट, एकोनाइट, मुलेठी, जलाप, हींग, मदार, सिया, लहसुन, अदरक, हल्दी, चंदन, बेलाडोना, तुलसी, नीम, अफीम तथा क्वीनाइन आदि मुख्य हैं।

आज भी इन औषधीय पौधों का विभिन्न आयुर्वेदिक एवं सिद्व औषधियों के बनाने में उपयोग थ्कया जाता है। यह पौधें घर कै आसपास ही आसानी से उगाए जा सकते हैं और इनकी विशेषता हानि रहित होना होती हें। इस प्रकार के कुछ औषधीय पौधों का विवरण इस प्रकार से है-

नीमः औषधीय दृष्टि से नीम एक बहुत ही महत्वपूर्ण पौधा है। नीम भारत में आमतौर पर प्रत्येक स्थान पर पाया जाता है। नीम के वृक्ष के लगभग समस्त भाग जैसे, पत्तियाँ, तना, पुष्प और फल आदि औषधीय गुणों से युक्त होते हैं। नीम की पत्ती पाचक, वातहर, कफनाशक और कीटाणुनाशक होती हैं। इसकी पत्तियों का रस त्वचा के अनेक रोगों आर पीलिया रोग के उपचार में उपयोग किया जाता है और इसका उपयोग कृमिनाशक के रूप में भी किया जाता है। इसके साथ ही भारत में नीम के तने के टुकड़े का प्रयोग दातून के रूप प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है।

नीम के औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग औषधीय रूप से युगों पलिे से ही किया जाता रहा है। नीम में उत्कृष्ट एंटीसेफ्टिक गुण पाए जाते हैं जिसके चलते नीम का उपयोग बाहरी रूप से भी किया जाता है। नीम के पिसे हुए पत्ते आंतरिक रूप से अद्भुत डी-वार्मिंग एजेंट के रूप में उत्कृष्ट कार्य करते हैं।

बेलः बेल रूटेसी कुल का पौधा है जो कि दुनियाभर में पाया जाता है। बेल का उपयोग डायरिया, पेट सम्बन्धित विकार तथा कब्ज आदि के उपचार हेतु किया जाता है। वहीं बेल के फलों से एक ताजगीदायक पेय भी बनाया जाता है।

आँवलाः आँवले का वानस्पातिक नाम एम्बलिका ऑफिसिनेलिस है। आँवले के फलों में विटामिन ‘‘सी’’ प्रचुर मात्रा में विद्यमान होता है। आँवले के फल शीतलता प्रदान करने वाले, उत्तम विरेचक तथा मूत्रवाही होते हैं। आयुर्वेद का प्रसिद्व त्रिफला चूर्ण आँवला, हरड और बहेड़ा के संयोग से ही तैयार किया जाता है, जो पेट के विकार तथा आँखों की ज्योति को ठीक करता है। इसके अलावा आँवले के फल से औषधीय गुणों से युक्त बालों का तेल और मुरब्बा आदि भी बनाए जाते हैं।

पुदीनाः पुदीना प्राकृतिक रूप से मैगनीज, विटामिन ए और विटामिन सी से भरपूर होता है। पुदीना की पत्तियों का उपयोग मांसपेशियों को आराम देने के लिए किया जा सकता है। पुदीने की पत्तियों का उपयोग करने से पेट फूलना, पेट खराब होना, बुखार, स्पॉटिक कोलोन और आंत्र सिंड्रोम का उपचार किया जा सकता है, इसके साथ ही पुदीना बैक्टीरिया की वृद्वि को भी प्रतिबन्धित करता है।

लेमन ग्रासः लेमन ग्रास एक सुपरिचित औषधीय पौधा है, जिसे घर में आसानी से उगाया जा सकता है। लेमन ग्रास के असंख्य औषधीय और अन्य स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। इसका उपयोग चाय, सलाद, सूप और नींबू के साथ लगभग समस्त व्यंजनों में किया जाता है।

तुलसीः तुलसी को भारत में एक पचित्र पौधा माना जाता है इसके अलावा यह अपने उपचारात्मक गणों के चलते जड़ी-बूटी के रूप में भी अद्वितीय स्थान रखता है। तुलसी की चार किस्में हैं, जिन्हें राम तुलसी, वन तुलसी, कृष्णा तुलसी और कर्पूर तुलसी आदि के नाम से जाना जाता है। कर्पूर तुलसी के तेल का उपयोग कान के संक्रमण के लिए किया जाता है। तुलसी के पौधे में बहुत प्रभावकारी कीटाणुनाशक, फफंूदनाशक, जीवाणुरोधी और एंटीबायोटिक गुण होते हैं, जो बुखार, आम सर्दी और श्वसन सम्बन्धित रोगों को ठीक करने के काम आते हैं।

राम तुलसी के पत्ते तीव्र श्वसन सिंड्रोम के विरूद्व एक प्रभावकारी उपाय के रूप में कार्य करते हैं। इसके पत्तों का रस सर्दी, बुखार, ब्रोंकाइटिस और खाँसी की समस्या में राहत प्रदान करता है। मलेरिया के बुखार को ठीक करने में भी तुलसी बहुत कारगर मानी जाती है। तुलसी अपच, सिरदद, हिस्टीरिया, अनिंद्रा और हैजा आदि को ठीक करने में भी सदियों से प्रयोग की जाती रही है।

एलोवेराः एलोवेरा एक अद्भुत पौधा है जो कहीं भी आसानी से उग आता है। ऐलोवेरा का उपयोग बाहरी के साथ ही आंतरिक रूप से भी किया जा सकता है। यह एक उत्तम हाइड्रेटिंग एजेंट होता है। इसके साथ ही ऐलावेरा एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है, जो कि एक प्राकृतिक इम्युनिटी बूस्टर होता है, जो कि शरीर में मौजूद मुक्त कणों से निपटने में भरपूर मदद करता है। यदि आपका इम्यून सिस्टम कमजोर है तो आप प्रतिदिन ऐलोवेरा के रस का सेवन कर सकते हैं। यह शरीर के कटे भागों, घाव और जलने के कारण होने वाले संक्रमणों से आपकी रक्षा कर सकता है।

यह आपके शरीर की सूजन को भी आसानी से ठीक करने में सक्षम हैं। यह त्वचा और बालों के लिए भी अच्छा काम करता है। ऐलोवेरा के जूस का नियमित रूप से सेवन करने से आप पाचन सम्बन्धी परेशानियों, भूख न लगना, पुरानी कब्ज और अल्सरेटिव कोलाइटिस की समस्या से भी छुटकारा पा सकते हैं।

ब्राम्हीः ब्राम्ही, मस्तिष्क के विकास और स्मृति के लिए एक उत्कृष्ट पौधा है। यह छोटा सा औषधीय पौधा अल्सर, त्वचा की चोट और कोशिका की कोमलता को करने में चमत्कार कर सकता है। ब्राम्ही की पत्तियों को पीसकर खुले घावों को इीक करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। ब्राम्ही का सेवन करने से मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को पुनर्जीवन प्राप्त होता है, जिससे ध्यान की अवधि और एकाग्रता में वृद्वि होती है।

हल्दीः औषधीय पौधों में हल्दी का जिक्र न किया जाए तो यह अधूरा ही रहता है, क्योंकि अपने औषधीय गुणों के कारण हल्दी को प्रचीन काल से ही मान्यता प्राप्त है और यह औषधीय गुणों के लिए विख्यात है। भारत में पैदा होने वाली हल्दी में एंटी कैंसर गुण् पए जाते हैं और यह डीएनए म्यूटेशन को रोक सकते हैं। हल्दी में एंटीइंफ्लेमेंटरी गुण उपलब्ध होने के कारण इसे एक सप्लीमेंट के रूप में भी प्रयोग किया जता है।

गठिया के रोग से पीड़ित मरीजों के लि हल्दी का सेवन करना बहुत हितकारी रहता है। इसके अलावा हल्दी में विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों और जोड़ों के दर्द को ठीक करने अद्भुत क्षमता होती है।

अश्वगंधाः अश्वगंधा, आयुर्वेद की एक बहुत ही प्राचीन औषधि है। अश्वगंधा तनाव के स्तर में कमी और तंत्रिका तंत्र की सुरक्षा के लिए एक उत्तम औषधि मानी जाती है। यह प्राचीन जड़ी-बूटी प्रजनन क्षमता और घावों की देखभाल में सहायता प्रदान करता है तथा यह बूटी इम्यूनिटी को भी बढ़ावा देती है। इसके अलावा यह एक उत्तम हार्ट टॉनिक एवं आँखों के स्वास्थ्य को ठीक बनाए रखने में भी मदद करती है। यह एक उत्कृष्ट जड़ी-बूटी है जो कोलेस्ट्रॉल को कम करने के साथ ही ब्लड शुगर के स्तर को भी नियंत्रित करने में सक्षम हैं।

शतावरीः शतावरी को आमतौर पर महिलाओं की औषधि के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह महिलाओं की प्रजनन प्रणाली को स्वस्थ बनाने के लिए एक बहुमूल्य औषधि है। शतावरी का उपयोग प्राचीन काल से ही महिलाओं की इंफर्टिलिटी से सम्बन्धित विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता रहा है। इसके अतिरिक्त यदि कोई महिला अपने नवजात शिशु का पेट स्तनपान के माध्यम से भर पाने में असफल रहती है तो शतावरी की जड़ों का पाउडर बनाकर एक छोटा चम्मच सुबह और शाम को गरम दूध अथवा पानी के साथ सेवन करने से महिला में दुग्ध का उत्पादन बढ़ जाता है। हॉर्मोन परिवर्तन और लिकोरिया नामक रोग में भी शतावरी लाभ प्रदान करती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।