
सरकार की अनोखी पहलः किसान पहचान पत्र यानी फार्मर आईडी Publish Date : 27/08/2025
सरकार की अनोखी पहलः किसान पहचान पत्र यानी फार्मर आईडी
प्रोफेसर आर. एस. संगर एवं अन्य
किसान पहचान पत्र (फार्मर आईडी) एक विशिष्ट पहचान पत्र है जो कि देश के प्रत्येक भूमि स्वामी किसान को दिया जा रहा है, जिसमें भूखंड संख्या, भूखंड का क्षेत्रफल, उस भूखंड में किसान का हिस्सा, बोई गई फसल, किसान का मोबाइल नंबर और अन्य जनसांख्यिकीय जानकारी शामिल होती हैं। यह जानकारी किसान की सहमति से एकत्र की जाएगी और किसान इसका उपयोग विभिन्न सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए कर सकेंगे।
यह रजिस्ट्री देश के डेटा संरक्षण अधिनियम और गोपनीयता संबंधी अधिनियमों एवं नियमों का पूरी तरह से पालन करेंगी। विशिष्ट किसान पहचान पत्र (यूजर आईडी) आधार संख्या के समान है। इसमें अंतर केवल इतना है कि इस पहचान पत्र के माध्यम से किसान अपनी भूमि और प्रत्येक फसल मौसम में बोई गई फसल से संबंधित प्रामाणिक जानकारी प्राप्त कर सकेगा।
किसान आईडी से किसानों को सत्यापन के लिए शासकीय कार्यालयों पर निर्भर हुए बिना सेवाओं का लाभ उठाने का अधिकार मिल सकेगा। चूंकि किसान आईडी आधार से जुड़ी है, इसलिए यह डिजी लॉकर में भी उपलब्ध होगी और किसान की सहमति से इसका सार्वभौमिक उपयोग भी किया जा सकेगा। मिशन की शुरुआत से लेकर दिनांक 30 जून, 2025 तक, 6.5 करोड़ से ज्यादा किसान आईडी बनाई जा चुकी हैं।
डिजिटल फसल सर्वेक्षण, बोई गई फसल के लिए भूखंडों का प्रामाणिक और त्रुटिरहित सर्वेक्षण सुनिश्चित करता है। यह फसल सर्वेक्षण एक मोबाइल एप्लिकेशन पर आधारित है, जिसमें सर्वेक्षणकर्ता को भू-संदर्भित भूखंड पर स्वयं उपस्थित होकर बोई गई फसल का रिकॉर्ड रखना होता है और साक्ष्य के रूप में उसकी तस्वीर भी अपलोड करनी होती है। यह फसल सर्वेक्षण फसल की बुवाई के तुरंत बाद किया जाता है और देश की विभिन्न फसलों के क्षेत्रफल के बारे में सटीक आंकड़े प्राप्त करने में मदद करता है। यह आंकड़े किसानों के पास डिजिटल रूप से भी उपलब्ध होंगे और विभिन्न सेवाओं में उपयोग के लिए किसान आईडी से लिंक भी किए जा सकेंगे।
डीपीआई, किसान कल्याण के लिए उपयोग के अनेक अवसर खोलता है। भूमि और बुवाई संबंधी विवरण डिजिटल रूप से उपलब्ध होने के कारण, वित्तीय संस्थान बिना किसी प्रमाण-पत्र के सत्यापन की आवश्यकता के किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से फसल ऋण स्वीकृत कर रहे हैं। इसी प्रकार, जब किसान एम.एस.पी. आधारित खरीद के लिए पंजीकरण करते हैं, तो खरीद एजेंसी को किसी तृतीयक एजेंसी से भूमि और उगाई गई फसल की मात्रा के सत्यापन की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि यह डिजिटल रूप से आसानी से उपलब्ध है और किसान आईडी के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
चूंकि डेटाबेस किसान की सहमति से, आधार से जुड़ा है, इसलिए लाभार्थी का बायोमेट्रिक आधारित सत्यापन, नकद लाभ वितरित करने के लिए सब्सिडी और आधार भुगतान गेटवे प्रदान करते हुए, यह सुनिश्चित करेगा कि योजना का लाभ लक्षित लाभार्थी तक कुशलतापूर्वक और पारदर्शी रूप से पहुंचे।
डीपीआई लक्षित और सटीक प्रसार तथा किसानोन्मुख सेवाओं की संभावना का रास्ता भी खोलता है। डिजिटल रूप से उपलब्ध भूखंड के स्थान, बोई गई फसल की जानकारी, मौसम संबंधी सटीक जानकारी, कीटों, रोगों, नवीनतम बीजों की किस्मों और प्रचलित बाजार मूल्यों से संबंधित फसल-विशिष्ट सलाह समय पर और कुशल तरीके से प्रदान की जा सकती है। इससे किसान बुवाई से लेकर विपणन तक फसलों से संबंधित निर्णय लेने में सक्षम होंगे।
सरकार किसानों को सशक्त बनाने हेतु ऐसा तंत्र विकसित कर रही है जिससे वे यह सुनिश्चित कर सके कि उनके द्वारा खरीदे जा रहे बीज अपेक्षित गुणवत्ता के हैं। हाल ही में लॉन्च किए गए साथी (सीड ट्रेसेबिलिटी, ऑथेंटिकेशन एंड होलिस्टिक इन्वेंटरी) पोर्टल का उद्देश्य ब्रीडर से खुदरा स्तर तक बीजों की ट्रेसेबिलिटी सुनिश्चित करना है। ब्रीडर से प्रमाणित बीजों तक इस पता लगाने की क्षमता स्थापित करने के लिए परियोजना का पहला चरण शुरू किया गया है।
दूसरे चरण का उद्देश्य प्रणाली को खुदरा दुकान स्तर तक विस्तारित करना है, जिसमे किसान बीज के पैकेट पर उपलब्ध क्यूआर कोड को स्कैन कर सकेंगे और ब्रीडर के स्रोत, आधार, प्रमाणित बीज के उत्पादक, बीज को प्रमाणित करने वाली एजेंसी आदि के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। इससे पूर्ण पारदर्शिता आएगी, किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज प्राप्त करने में सशक्त बनाया जा सकेगा और प्रवर्तन को भी मजबूत किया जा सकेगा।
सेवाओं में सुधार लाने, किसानों को सम्पूर्ण फसल चक्र के लिए जागरूक और समय पर निर्णय लेने में सक्षम बनाने, उनकी आय बढ़ाने तथा सतत् कृषि सुनिश्चित करते हुए खाद्य और पोषण सुरक्षा में योगदान देने के लिए डिजिटलीकरण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और सटीक प्रौद्योगिकियों का इस क्षेत्र में तेजी से उपयोग किया जा रहा है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।