किसानों के सशक्तीकरण में सरकार के प्रयास      Publish Date : 26/08/2025

         किसानों के सशक्तीकरण में सरकार के प्रयास

                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता

एफ.पी.ओ., फसल विविधीकरण, प्रौद्योगिकियों को अपनाने और फसलोपरांत मूल्य संवर्धन के माध्यम से कृषि परिवर्तन की रीढ़ बन रहे हैं। धान, गेहूं और दलहन के जैसे प्रमुख खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता बनाए रखने और तिलहन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के प्रयासों के साथ-साथ, किसानों को उनकी आय सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य को इनके केंद्र में रखा गया है। सरकार की नीतियां किसानों को कृषि उद्यमी मानकर उनकी सकल आय बढ़ाने पर केंद्रित रही हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। यद्यपि देश के सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) में इसका योगदान लगभग 18 प्रतिशत है, लेकिन वर्कफोर्स में इसका योगदान 46 प्रतिशत है। वर्ष 2022-23 में सकल निवल क्षेत्र 14.07 लाख हेक्टेयर था और सकल फसल क्षेत्र 2,193 लाख हेक्टेयर था, जिसमें फसल सघनता 155.9 प्रतिशत थी। सिंचित क्षेत्र 793.12 लाख हेक्टेयर अर्थात 56.37 प्रतिशत था। पिछले दशक में कृषि क्षेत्र ने औसतन 5 प्रतिशत की वृद्धि के साथ तेजी से प्रगति की है (स्रोतः आर्थिक सर्वेक्षण 2024)। भारत ने कृषि फसलों के उत्पादन और उत्पादकता दोनों में तेजी से प्रगति की है। तीसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2024-25 में, भारत ने 353.96 मीट्रिक टन खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन हासिल किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 6.5 प्रतिशत अधिक है।

                                                         

देश ने तिलहन में 426.09 लाख टन का उत्पादन भी हासिल किया है जो पिछले वर्ष की तुलना में 7.4 प्रतिशत अधिक था। भारत का बागवानी उत्पादन अब वर्ष 2024-25 में फसल उत्पादन से आगे निकल गया है। द्वितीय अग्रिम अनुमानों के अनुसार, यह 367.72 मिलियन टन था।

हमारे देश ने चावल और गेहूं जैसे प्रमुख खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है। वर्ष 2015-16 में, दलहन की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर काफी ज्यादा था, जिससे भारत आयात पर निर्भर और मुद्रास्फीति के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, विशेष कार्यनीतिक कदम उठाए गए, जिनमें उत्पादकता में सुधार, रकबा बढ़ाना और किसानों से सुनिश्चित खरीद आदि क्रियाएं शामिल थी। देश के किसानों ने उपज और उत्पादन बढ़ाकर इस दिशा में सकारात्मक कदम बढ़ाया, जिसके परिणामस्वरूप भारत दलहन के मामले में लगभग आत्मनिर्भर हो गया, जिसके फलस्वरूप, दलहन का उत्पादन वर्ष 2014-15 के 17.15 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2017-18 में 25.41 मिलियन टन हो गया था।

पिछले एक दशक में, प्रधानमंत्री के नेतृत्व में, देश की कृषि नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन आया है। धान, गेहूं और दलहन जैसे प्रमुख खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता बनाए रखने और तिलहन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के प्रयासों के साथ-साथ, किसानों को आय सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य को केंद्र में रखा गया है। सरकार की नीतियां किसानों को कृषि-उद्यमी मानकर उनकी सकल आय बढ़ाने पर केंद्रित रही हैं। इस लक्ष्य को निम्नलिखित बहुआयामी कार्यनीतियों के माध्यम से पूरा करने का प्रयास किया जा रहा हैः

1. उत्पादन/उत्पादकता में वृद्धि करना।

2. खेती की लागत को कम करना।

3. यह सुनिश्चित करना कि किसानों को उनकी उपज का सर्वाेत्तम मूल्य मिले।

4. फसलोपरांत फसल के उत्पादों का मूल्य संवर्धन करना।

5. बेहतर मूल्य प्राप्ति के लिए उच्च मूल्य वाली फसलों में विविधीकरण तथा एग्जोटिक/उच्च मूल्य वाली किस्मों में उत्पाद क्ज्ञ विशिष्टीकरण करना।

6. फसल बीमा और जलवायु स्मार्ट कृषि के माध्यम से जोखिम को कम करना।

7. डिजिटल सार्वजनिक इनफ्रास्ट्रक्चर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस युक्त प्रौद्योगिकी को अपनाना।

आई.सी.ए.आर. सरकार का एक शीर्ष कृषि निकाय है, जो कृषि में अनुसंधान कार्य करता है। यह नवीनतम उच्च उपज देने वाली और संकर बीजों की किस्में विकसित करता है, जो न केवल उत्पादकता बढ़ाती हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल और बायो-फोर्टिफिकेशन के गुण भी रखती हैं। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, आई.सी.ए.आर., राज्य सरकारों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के बीच सक्रिय सहयोग से, इन नवीनतम बीजों को किसानों तक शीघ्र पहुंचाने के ठोस प्रयास किए जा रहे है। इसके परिणामस्वरूप फसलों की उत्पादकता और समग्र उत्पादन में वृद्धि हुई है। इस कार्यनीति को राष्ट्रीय खाद्य एवं पोषण सुरक्षा मिशन और राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन सहित सरकार के महत्वपूर्ण मिशनों में भी शामिल किया गया है।

                                                           

खेती की लागत कम करने के प्रमुख उपायों में से एक है किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से रियायती अल्पकालिक ऋण तत्काल प्रदान करना। संशोधित ब्याज छूट योजना यह सुनिश्चित करती है कि किसानों को वाणिज्यिक और सहकारी बैंकों के माध्यम से 4 प्रतिशत की रियायती दर पर तीन लाख रुपये तक का ऋण मिले, जिसमें 1.5 प्रतिशत व्याज छूट और 3 प्रतिशत शीघ्र पुनर्भुगतान प्रोत्साहन का प्रावधान भी किया गया है। इस योजना के कारण मार्च 2025 तक के.सी.सी. के माध्यम से अल्पकालिक कृषि ऋण बढ़कर 10.20 लाख करोड़ रुपये हो गया है।

देश के कई हिस्सों में बढ़ती श्रम लागत को ध्यान में रखते हुए, कृषि का मशीनीकरण उप-मिशन योजना के तहत सब्सिडी वाले कृषि उपकरण उपलब्ध कराकर कृषि मशीनीकरण को भी बढ़ावा दिया गया। कृषि मशीनरी बैंकों की स्थापना पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है जिससे छोटे और सीमांत किसानों के लिए उचित किराए की दर पर मशीनें उपलब्ध हो सकें।

सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया है कि वैश्विक रुझानों के परिणामस्वरूप उर्वरकों की बढ़ती लागत का किसानों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ न पड़े। इसलिए यूरिया और डी.ए.पी. अत्यधिक रियायती दरों पर किसानों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं, और सरकार बढ़ी हुई सब्सिडी दरों के माध्यम से उर्वरक की मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर रही है। इससे किसानों को बड़ी राहत मिली है।

किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए, सरकार ने निर्णय लिया कि 22 कृषि फसलों (रबी की 6, खरीफ की 14, जूट और कोपरा) का न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन लागत का कम से कम डेढ़ गुना तय किया जाएगा। इस नीतिगत निर्णय के बाद, विभिन्न केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के सहयोग से एक अत्यंत सुदृढ़ खरीद प्रणाली भी स्थापित की गई है। इस पहल के परिणामस्वरूप, पिछले सात-आठ वर्षों में गेहूं, धान, दलहन और तिलहन की एम.एस.पी. आधारित खरीद में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। एम.एस.पी. आधारित खरीद ने यह सुनिश्चित किया है कि खाद्यान्नों की बाजार कीमतें एम.एस.पी. से नीचे न गिरें, जिससे संकटपूर्ण बिक्री को रोका जा सके और किसानों की आय में वृद्धि हो सके।

आत्मनिर्भर भारत पैकेज के एक भाग के रूप में, सरकार ने एग्री इनफ्रास्ट्रक्चर फंड की शुरुआत की है, जिसके तहत फसलोपरांत इनफ्रास्ट्रक्चर से संबंधित परियोजनाओं के लिए ऋणों पर 3 प्रतिशत की ब्याज छूट प्रदान की गई है। 1.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश का लक्ष्य रखा गया है और ब्याज दर 9 प्रतिशत तक सीमित कर दी गई है। इस फंड ने 31 मई, 2025 तक 1,09,436 परियोजनाओं में 1.03 लाख करोड़ रुपये के निवेश को सक्षम बनाया है और कोल्ड स्टोरेज, ग्रेडिंग और सॉटिंग इकाइयों, पैक हाउस और राइपनिंग चैंबर आदि जैसे महत्वपूर्ण फसलोपरांत इनफ्रास्ट्रक्चर के विकास में मदद की है। ऐसी इकाइयों की स्थापना के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं, जैसे बेहतर मूल्य प्राप्ति के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि, पोस्ट हार्वेस्ट नुकसान में कमी, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर और कृषि क्षेत्र में युवा उद्यमियों का आकर्षण।

छोटी भू-जोत का होना भारतीय कृषि के सामने एक बडी चुनौती है जो कृषि क्षेत्र को बड़ा आकार देकर लाभप्रद बनाने (इकोनोमीज ऑफ़ स्केल) और इस क्षेत्र में निवेश में बाधा डालती है। इस चुनौती का समाधान करने के लिए, सरकार क्लस्टर-आधारित कृषि पद्धति को प्रोत्साहित कर रही है। इसे और सुगम बनाने के लिए, सरकार ने 10,000 किसान उत्पादक संगठनों (एफ़.पी.ओ.) की स्थापना की योजना संचालित कर रही है। एफ़.पी.ओ. फसल विविधीकरण, प्रौद्योगिकियों को अपनाने और फसलोपरांत मूल्य संवर्धन के माध्यम से कृषि परिवर्तन की रीढ़ बन रहे हैं। क्लस्टर आधारित फसल-विशिष्ट खेती इकोनोमीज ऑफ़ स्केल को सक्षम बनाती है और किसानों को सौदेबाजी करने में सशक्त बनाती है। किसानों को बाजारों की तलाश करने के बजाय, खेत पर ही उनकी उपज प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उपज बेची जाती है, जिससे परिवहन लागत और फसलोपरांत होने वाले नुकसान भी कम हो जाते हैं।

एफ़.पी.ओ. भी अपनी गतिविधियों में विविधता लाते हुए जैविक खेती, एम.एस.पी. आधारित खरीद प्रणाली और प्रमाणित बीजों के उत्पादन का कार्य कर रहे हैं। राज्य सरकारों ने भी इन किसान समूहों को बीज, उर्वरक और कीटनाशक इनपुट खुदरा लाइसेंस प्राथमिकता के आधार पर देकर प्रोत्साहित किया है। इसी प्रकार, मूल्य संवर्धन में लगे एफ़.पी.ओ. को अपने व्यवसाय का विस्तार करने के लिए एफएसएसएआई और जीएसटी लाइसेंस प्राप्त करने में सुविधा प्रदान की जा रही है। ऐसी कई सफलता की कहानियां हैं जिनमें क्लस्टर-आधारित खेती और किसानों को एफ़.पी.ओ. में संगठित करने से किसानों की आय में कई गुना वृद्धि हुई है।

सरकार किसानों को विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करती है, जिनमें फसल ऋण, एम.एस.पी. आधारित खरीद, सब्सिडी वाले/मुफ़्त बीज, फसल बीमा आदि शामिल हैं। ऐसी प्रत्येक सेवा का लाभ उठाने के लिए, किसानों की जमीन और उनकी बोई गई फसल के बारे में प्रामाणिक जानकारी होना आवश्यक है। यह जानकारी विभिन्न अलग-अलग स्रोतों (अक्सर डिजिटल नहीं) से उपलब्ध होती है और इसलिए किसानों को हर बार सेवाओं का लाभ उठाने के लिए संबंधित राजस्व अधिकारियों के पास जाकर अपनी पहचान सत्यापित करवानी पड़ती है।

किसानों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से, भारत सरकार ने डिजिटल कृषि मिशन शुरू किया है। इस मिशन की आत्मा, डिजिटल सार्वजनिक इनफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) या एग्री स्टैक है, जिसमें तीन लेयर या रजिस्ट्रियां हैं:

1. जियो-रिफरेंस्ड रजिस्ट्री भू-स्वामियों से जुड़ी हुई हो।

2. सभी भूमि मालिक किसानों की किसान आईडी सहित किसान रजिस्ट्री।

3. सभी कृषि भू संदर्भ भूखंडों का डिजिटल फसल सर्वेक्षण करना आदि।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।