
भारत का दुग्ध क्षेत्र यानी भविष्य का पोषण Publish Date : 17/08/2025
भारत का दुग्ध क्षेत्र यानी भविष्य का पोषण
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
जैसा कि हम सब जानते हैं कि प्रत्येक वर्ष 1 जून को विश्व दूध दिवस मनाया जाता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के द्वारा वर्ष 2001 से मनाना शुरू किया था। यह दिन दूध और दुग्ध उद्योग की महत्वता को दर्शाता है, जो लोगों को पोषण प्रदान करता है और कुछ लोगों की आजीविका में सहायता करता है, और आर्थिक विकास में योगदान करता है। वर्ष 2025 में, जब दुनिया महामारी के आर्थिक प्रभावों से उबर रही है और सतत विकास तथा खाद्य सुरक्षा की दिशा में कदम बढ़ा रही है। दूध का हमारे जीवन में महत्व और भी बढ़ गया है।
भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक राष्ट्र है, के लिए यह दिन सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि उन लाखों किसानों, स्वयं सहायता समूहों, सहकारिताओं और उद्यमियों के लिए एक उत्सव है जिन्होंने ‘सफेद क्रांति’ को एक मजबूत राष्ट्रीय ताकत में बदल दिया है।
भारत हर साल 230 मिलियन टन से अधिक दूध का उत्पादन करता है, जो विश्व कुल दुग्ध उत्पादन का 20 प्रतिशत से भी अधिक है। यह सफलता बड़े औद्योगिक फार्मों का नतीजा नहीं, बल्कि एक विकेन्द्रीकृत और समावेशी मॉडल की उपज है। लगभग 80 मिलियन ग्रामीण परिवार, जिनके पास आमतौर पर 1-2 दुधारू पशु तो होते ही हैं, और यही इस उद्योग की रीढ़ भी हैं।
दूध अन्य कृषि उत्पादों से अलग है क्योंकि यह पूरे साल आय का प्रदान करता है। यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए कृषि जोखिम को कम करने और गरीबी मिटाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। खास बात यह है कि दूध उत्पादन और संग्रहण में लगभग 70 प्रतिशत श्रम महिलाएं करती है।
पोषण का आधार
दूध केवल एक आर्थिक वस्तु नहीं, बल्कि पोषण का खजाना भी होता है। इसमें कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन बी-12, और पोटैशियम भरपूर मात्रा में होते हैं, जो खासतौर पर बच्चों और महिलाओं में कुपोषण से लड़ने में मदद करते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, सरकार ने दूध को कई प्रमुख योजनाओं में शामिल किया हैः
- कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना के तहत बच्चों को मुफ्त दूध दिया जाता है।
- पोषण अभियान (पोषण अभियान) के तहत दूध के सेवन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज (ICDS) में दूध का उपयोग माताओं और शिशुओं के पोषण के लिए किया जाता है।
- ‘इट राइट इंडिया’ पहल के तहत विटामिन A और D से समृद्ध दूध को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
ग्रामीण भारत में दुग्ध क्रांति
भारत की दुग्ध विकास यात्रा की एक खास बात इसका ग्रामीण विकास पर गहरा प्रभाव है। दुग्ध उद्योग ग्रामीण रोजगार, महिलाओं के सशक्तीकरण और स्थानीय उद्यमिता का प्रमुख आधार बन चुका है।
कुछ महत्वपूर्ण योजनाएं
- राष्ट्रीय गोपाल मिशन।
- राष्ट्रीय दुग्ध योजना (NDP)।
- दुग्ध उद्यमिता विकास योजना (DEDS)।
इनसे दुग्ध अवसंरचना का आधुनिकीकरण, पशु उत्पादकता में सुधार और दूध की गुणवत्ता में वृद्धि हुई है अमूल, नंदिनी, और सुधा जैसी सहकारिताएं हजारों गांवों में दूध उत्पादन को संगठित कर आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मॉडल पेश कर रही हैं। इनका सफल होना किसानों को उचित मूल्य, समय पर भुगतान और पशु चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने में सक्षम होने के चलते ही हो पाया है।
डिजिटल दुग्ध क्रांति
वर्ष 2025 में भारत का दुग्ध उद्योग तकनीक और नवाचार की मदद से एक नई क्रांति से गुजर रहा है। दूध की गुणवत्ता, ट्रेसबिलिटी और उत्पादकता बढ़ाने के लिए डिजिटल उपकरण पूरी मूल्य श्रृंखला में शामिल किए जा रहे हैं। मुख्य प्रगति में शामिल हैं:
- एआई आधारित पशु स्वास्थ्य निगरानी जो जल्दी पशुओं की बीमारी का पता लगाती है।
- ब्लॉकचेन तकनीक आधारित दूध की सप्लाई चेन, जो गुणवत्ता और स्रोत की पारदर्शिता सुनिश्चित करती है।
- कलेक्शन सेंटर पर आईओटी आधारित दूध परीक्षण उपकरण जो मिलावट को कम करते हैं।
- ई-गोपाल जैसे मोबाइल ऐप, जो पशुपालन, स्वास्थ्य रिकॉर्ड और बीमा प्रबंधन में मदद करते हैं।
राष्ट्रीय डिजिटल पशुपालन मिशन, जो वर्ष 2023 में शुरू हुआ, सभी दुधारू पशुओं का डिजिटल डेटाबेस तैयार कर रहा है जिससे किसान क्रेडिट, बीमा, प्रजनन सेवाएं और उत्पादन की रियल-टाइम जानकारी मिल सके।
महिलाओं की भूमिका
भारत के दुग्ध क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका अनमोल है। दूध उत्पादन से परिवार को आय का अवसर मिलता है, जिसे अक्सर महिलाएं ही पूरी तरह संचालित करती है। 80 लाख से अधिक महिलाएं दुग्ध सहकारिताओं से जुड़ी हैं, जिन्हें प्रशिक्षण, क्रेडिट और विपणन सहायता मिलती है। नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) और नाबार्ड जैसी संस्थाएं महिला दुग्ध किसान उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देने में सक्रिय हैं।
निर्यात की संभावनाएं: घरेलू ताकत से वैश्विक पहुँच तक
भारत सबसे बड़ा दूध उत्पादक होने के बावजूद, दूध निर्यात में परंपरागत रूप से पीछे रहा है, क्योंकि घरेलू मांग और गुणवत्ता को लेकर चुनौतियां थीं। लेकिन अब वर्ष 2025 में स्थिति बदल रही है।
भारतीय दुग्ध उद्योग अब निर्यात पर विशेष ध्यान दे रहा है, जैसेः
- पनीर, चीज और स्वाद युक्त दही जैसे मूल्यवर्धित दुग्ध उत्पाद।
- ऑर्गेनिक और दूध के अन्य उत्पाद, स्वास्थ्य-सचेत बाजारों के लिए।
- स्किम्ड मिल्क पाउडर (SMP) और घी पारंपरिक और प्रवासी बाजारों के लिए।
हाल के व्यापार समझौतों ने भारत के लिए एशियाई, मध्य-पूर्व और अफ्रीका में नए बाजार खोले है, जहां सरकार निर्यात सब्सिडी, उत्पाद प्रमाणन और कूल चेन निवेश के जरिए मदद कर रही है। वर्ष 2024-25 में भारत के दुग्ध निर्यात ने 5,000 करोड़ का आंकड़ा पार किया और सरकार का 2030 तक इसे दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है।
सततताः सफेद का हरा पहलू
जलवायु परिवर्तन और पशुधन से मीथेन उत्सर्जन की वैश्विक चिंता के बीच, भारत का दुग्ध क्षेत्र हरित पहल कर रहा है। इसके लिए कुछ प्रमुख प्रयासों में शामिल हैं-
- समुद्री शैवाल आधारित मीथेन उत्सर्जन कम करने वाले चारे।
- सौर ऊर्जा चालित ऊर्जा-कुशल ठंडा रखने वाले यूनिट ।
- देशी नस्लों का संरक्षण, जो टिकाऊ और संसाधन-कुशल हैं।
- गोबर से बायोगैस उत्पादन, जो कचरे को ऊर्जा में बदलता है।
वर्ष 2024 में शुरू हुए ग्रीन डेयरी मिशन के तहत 10,000 से अधिक दुग्ध गांवों ने पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाया है और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य रखे हैं।
आगे की चुनौतियां
हालांकि प्रगति हुई है तथापि दुग्ध क्षेत्र में अभी भी विभिन्न चुनौतियां बनी हुई हैं-
- वैश्विक मानकों की तुलना में कम प्रति पशु उत्पादकता।
- दूर-दराज के क्षेत्रों में अपर्याप्त कूल चेन अवसंरचना।
- चारे और इनपुट की कीमतों में उतार-चढ़ाव ।
- क्षेत्रीय विकास में असमानता।
इन चुनौतियों का समाधान निरंतर निवेश, कौशल विकास और सार्वजनिक-निजी भागीदारी से ही संभव है।
सफेद क्रांति 2.0:
भारत की दुग्ध यात्रा धैर्य, नवाचार और समावेशन की कहानी है। ‘दूध’ पोषण, आर्थिक सुरक्षा, सततता और महिला सशक्तीकरण से लेकर ग्रामीण भारत की जीवनरेखा और राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। आगे का रास्ता डिजिटलीकरण, वैश्वीकरण और हरितकरण की दिशा में अवसरों से भरा है। सही नीतियों और जमीनी स्तर की भागीदारी से भारत सफेद क्रांति 2.0 की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।