पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सब्जियों में कीटनाशक अवशेषों की जांच      Publish Date : 07/08/2025

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सब्जियों में कीटनाशक अवशेषों की जांच

                                                                                                                               प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

सब्जियों में कीटनाशक अवशेषों की जांच की सुविधा शोध परियोजना के माध्यम से किसानों को दी जा रही है, सुरक्षित कृषि पद्धतियों की जानकारी-

इन दिनों सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (SVPUAT), मेरठ के जैव प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में एक महत्वपूर्ण शोध परियोजना संचालित की जा रही है। इस परियोजना का उद्देश्य पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाई जा रही प्रमुख सब्जियों में कीटनाशक अवशेषों की पहचान करना और उनके संभावित स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय जोखिमों का वैज्ञानिक मूल्यांकन करना है।

यह परियोजना ‘तरल गैस क्रोमैटोग्राफी के माध्यम से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रमुख सब्जी फसलों में कीटनाशक अवशेषों का निर्धारण एवं उनका स्वास्थ्य जोखिम आकलन’ शीर्षक के अन्तर्गत चलाई जा रही है, जिसे उत्तर प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त है।

                                                     

परियोजना की प्रमुख अन्वेषक डॉ. रेखा दीक्षित के नेतृत्व में सह-अन्वेषक डॉ. पंकज कुमार, डॉ. कमल खिलाड़ी, डॉ. नीलेश कपूर एवं शोध सहायक अनिरुद्ध यादव और उदित चौधरी द्वारा शोध कार्य किया जा रहा है।

सब्जी उत्पादन और उपभोगः एक कृषि शक्ति

पश्चिमी उत्तर प्रदेश देश के सबसे उपजाऊ कृषि क्षेत्रों में से एक है, जहाँ हर मौसम में सब्जियों की बहार रहती है। क्षेत्र का कुल सब्जी उत्पादन करीब 60 लाख टन प्रति वर्ष है, जो राज्य के कुल उत्पादन का 35 प्रतिशत से भी अधिक है।

यहाँ प्रमुख रूप से उगाई जाने वाली सब्जियों में फूलगोभी, भिंडी, बैंगन, टमाटर, आलू और पालक आदि शामिल हैं।

इसके अलावा, उपभोग के मामले में भी यह क्षेत्र अग्रणी है- यहाँ एक व्यक्ति रोज़ाना औसतन 300-350 ग्राम सब्जियाँ खाता है, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।

क्यों किया जाता है कीटनाशकों का प्रयोग?

किसान फसलों को कीटों से बचाने और उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। परंतु अक्सर यह प्रयोग जानकारी के अभाव में अंधाधुंध तरीके से होता है, जिससे न केवल स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता, भूजल की गुणवत्ता और पर्यावरण संतुलन भी कुप्रभावित होते हैं।

वैज्ञानिक जांचः क्या कहती है रिपोर्ट?

SVPUAT मेरठ के शोध दल ने मेरठ, मुजफ्फरनगर और हापुड़ से सब्जियों के नमूने एकत्रित कर उनका परीक्षण तरल गैस क्रोमैटोग्राफी तकनीक के माध्यम से किया। इस परीक्षण में पाया गया कि कई सब्जियों में विभिन्न कीटनाशकों के अवशेष मौजूद हैं, जिनकी उपस्थिति और औसतन पाई गई मात्रा निम्नलिखित है-

क्लोरपाइरीफोस (18%)- औसतन 0-45 mg/kg मात्रा पाई गई। यह तंत्रिका तंत्र को क्षति पहुंचा सकता है, जिससे थकान, चिड़चिड़ापन और याददाश्त की कमजोरी आदि की समस्या हो सकती है।

साइपरमेथ्रिन (22%)- औसतन 0.62 mg/kg इसके कारण त्वचा में जलन, आंखों में खुजली और सिरदर्द हो सकता है।

फिप्रोनिल (12%)- औसतन 0.28 mg/kg यह यकृत की कार्यप्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

एसीफेट (14%)- औसतन 0.35 mg/kg यह फेफड़ों पर बुरा असर डाल सकता है और लंबे समय तक साँस संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है।

प्रोपिकोनाज़ोल (9%)- औसतन 0.22 mg/kg यह हॉर्मोन असंतुलन और थायरॉयड से जुड़ी समस्याओं का कारण बन सकता है।

एंडोसल्फान (5%)- औसतन 0.18 mg/kg यह एक प्रतिबंधित रसायन है जो कैंसर, प्रजनन समस्याएं और बच्चों में मानसिक विकास बाधित कर सकता है।

चौंकाने वाला तथ्यः परीक्षण किए गए नमूनों में से 30% से अधिक में कीटनाशक अवशेष तय सीमा से अधिक पाए गए, जो WHO और FAO द्वारा तय की गई सुरक्षित सीमा से ऊपर हैं।

किसानों को जागरूक करने के लिए कार्यशालाएं आयोजित

शोध परियोजना के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में किसानों को सुरक्षित कृषि पद्धतियों के प्रति जागरूक किया जा रहा है। हाल ही में कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) शामली और मुजफ्फरनगर में कार्यशालाओं का आयोजन किया गया, जिनमें विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के विशेषज्ञों ने भाग लिया।

इन कार्यशालाओं में निदेशक प्रसार डॉ. पी. के. सिंह, निदेशक शोध डॉ. कमल खिलाड़ी, निदेशक प्रशिक्षण एवं प्लेसमेंट डॉ. आर. एस. सेंगर, अधिष्ठाता जैव प्रौद्योगिकी डॉ. रविन्द्र कुमार, डॉ. रेखा दीक्षित और डॉ. नीलेश कपूर आदि उपस्थित रहे।

विशेषज्ञों ने किसानों को कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से होने वाले दुष्प्रभावों, जलवायु एवं मृदा पर उनके नकारात्मक प्रभावों की जानकारी दी। साथ ही, वैज्ञानिक एवं विवेकपूर्ण कीटनाशक प्रबंधन की विधियों को अपनाने पर बल दिया।

जानकारी से सशक्त होगा किसान वर्ग

                                                       

परियोजना की प्रमुख अन्वेषक डॉ. रेखा दीक्षित ने कहा कि “यह परियोजना केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य किसानों को प्रशिक्षित कर उन्हें सही जानकारी उपलब्ध कराना है, ताकि वे सुरक्षित कृषि तकनीकों को अपनाकर अपने स्वास्थ्य, उपभोक्ता की सुरक्षा और पर्यावरण का संरक्षण कर सकें।”

यह पहल अनुसंधान और व्यावहारिक कृषि पद्धतियों के बीच की दूरी को पाटने का एक सशक्त प्रयास है, जो किसानों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सशक्त बनाने की दिशा में अग्रसर है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।