जहां बच्चों की तरह पालते हैं वन      Publish Date : 03/08/2025

                जहां बच्चों की तरह पालते हैं वन

                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

भारत ने 2070 तक कार्बन न्यूट्रल बनने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए हमें सीखना होगा उस समाज से जो भारत से हजारों किलोमीटर दूर होकर भी हमारे पुराणों के ज्ञान व संस्कृति का अक्षरशः पालन कर रहा है।

फि निश भाषा में 'मां' का अर्थ होता है धरती। भारत में भी हम धरती को मां मानते हैं, लेकिन जिस देश में प्रकृति को देवता जैसे पूजने की संस्कृति है, वहां वन लगातार सिमट रहे हैं। भारत ने 2070 तक कार्बन न्यूट्रल बनने की घोषणा की है, पर यह लक्ष्य कानूनों से नहीं, समाज को प्रकृति से जोड़कर ही पूरा हो सकता है। इसी सीख की तलाश में हम पहुंचे आर्कटिक सर्कल के पास स्थित फिनलैंड के योंसू शहर, जिसे 'यूरोप की फारेस्ट कैपिटल' कहा जाता है। यहां वन सिर्फ जंगल नहीं, जीवन व अर्थव्यवस्था का आधार हैं। फिनलैंड के 80 प्रतिशत हिस्से में वन हैं, जिसका 70 प्रतिशत जंगल निजी स्वामित्व में है।

लोग पेड़ों को परिवार की तरह पालते हैं। भारत में वानप्रस्थ जीवन का अंतिम चरण माना गया है, लेकिन यहां लोग हर गर्मी स्वेच्छा से 'वानप्रस्थ' जीते हैं। वे बिजली व इंटरनेट छोड़ जंगलों में रहते हैं, झीलों से पानी लेते हैं, फल खाते हैं। यह प्रकृति से जुड़ाव का जीवंत उदाहरण है।

                                                       

तकनीक का सही उपयोग

एयरशिप केल्लु कंपनी ने फिनिश परंपरा को समझा और इसमें व्यापार तलाश लिया। उन्होंने तकनीक का उपयोग करते हुए दर्जनों हाइड्रोजन गुब्बारे (एयरशिप) बनाए हैं, जो नार्थ करेलिया के जंगलोंके ऊपर मंडराते हैं। कंपनी के सेल्स हेड जानी जारमक्खा बताते हैं, 'उद्देश्य यही है कि वनों की आग, बीमारी का समय से पता लगाया जा सके। उपरोक्त एयरशिप में उच्च क्षमता वाले उपकरण लगे हैं जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से विश्लेषण कर जंगल की सेहत का पता लगाते हैं। जिस पेड़ की ग्रोथ घट रही होती है, उसे विशेष जीपीएस कोआर्डिनेट दे दिया जाता है। इसके माध्यम से टीमवहां पहुंचकर जरूरी उपचार करती है।'

लोग इसके लिए कंपनी को ठीक वैसे ही फीस चुकाते हैं, जैसे हम डाक्टर को बच्चों की वैक्सीनेशन या दवा की फीस देते हैं। उपरोक्त एयरशिप भारत में होने वाली भूस्खलन की पूर्व चेतावनी दे सकती है क्योंकि लगातार डेटा हासिल कर उनके विश्लेषण से यह पता लगाना संभव है कि कौन सी चट्टान, मिट्टी या पेड़ों का समूह आने वाले समय में किसर प्रकार से रिएक्ट करेगी।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।