झीलों में ऑक्सीजन की होती कमी      Publish Date : 01/08/2025

                झीलों में ऑक्सीजन की होती कमी

                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

पानी ही तो वह प्राकृतिक संसाधन है जिसके कारण पृथ्वी ग्रह पर जीवन का संचार हुआ और पानी में घुली ऑक्सीजन जलीय जीवों को जीवन प्रदान करता है। पानी हमारे ग्रह के सभी जीवों और मनुष्यों के अस्तित्व का एक प्रमुख आधार है। समय के साथ मानव आबादी बढ़ी और उसी के अनुपात में उसकी आवश्यकताएं भी बढ़ीं। परिणामस्वरूप जलाशयों का अस्तित्व खतरे में आने लगा। शोध में यह बात सामने आई है कि अब मानवजनित गतिविधियों के कारण झीलों में भी ऑक्सीजन की कमी हो रही है। इसके दुष्प्रभाव क्या हो रहे हैं और इन परिस्थितियों से कैसे बचा जा सकता है और अपने पर्यावरण को संवारा जा सकता है, इन्हीं सब बातों की चर्चा इस लेख में लेखक ने की है।

पृथ्वीग्रह को अद्वितीय बनाने वाले प्राकृतिक संसाधनों में जल की विशेष भूमिका है। पृथ्वी पर जल के असंख्य और विविध प्रकार के स्रोत जैसे महासागर, नदियां, तालाब, झील, झरने आदि उपलब्ध हैं। झील जल का एक ऐसा स्रोत है जो न केवल जल का भंडार है, बल्कि जलचरों, पक्षियों और पौधों के लिए ये प्राकृतिक आवास भी प्रदान करते हैं। झीलें जलवायु, पारिस्थितिकी और आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

झीलें पृथ्वी के मीठे जल स्रोतों में से एक प्रमुख हिस्सा हैं। ये न केवल प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक होती हैं, बल्कि कई जीवों का घर भी होती हैं। झील के जल में घुलित ऑक्सीजन का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह झील की पारिस्थितिकी और उसमें रहने वाले जलचरों के जीवन को प्रभावित करती है।

ऑक्सीजन गैस जल में घुलकर ‘घुलित ऑक्सीजन’ के रूप में मौजूद रहती है। मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र को जीवनमय बनाए रखने और स्वस्थ जैविक समुदायों को बनाए रखने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन स्तर की आवश्यकता होती है। झीलों में यह ऑक्सीजन मुख्य रूप से वायुमंडल और पादपों द्वारा प्रकाश संश्लेषण से आती है। हवा के संपर्क में आने से पानी में मौजूद ऑक्सीजन जल में घुल जाती है। इसके अलावा झील में मौजूद जलीय पौधे और शैवाल (एल्गी) सूर्य के प्रकाश की मदद से प्रकाश-संश्लेषण करते हैं और वहां पर ऑक्सीजन मुक्त करते हैं, जो फिर से जल में घुल जाती है।

कितनी हो ऑक्सीजन की घुलित मात्रा

6.5 से 8 मिलीग्राम प्रति लीटर ऑक्सीजन की घुलित मात्रा को जलीय जीवन के लिए उत्तम माना जाता है। लेकिन 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम घुलित ऑक्सीजन स्तर वाला जल सामान्य जलीय जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है तथा 1 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम स्तर वाला जल किसी भी जलीय जीवन के लिए उपयुक्त नहीं है।

चिंता का कारण

                                                      

20वीं सदी के मध्य से विभिन्न जलीय पारिस्थितिक तंत्रों में घुलित ऑक्सीजन की सांद्रता पर अध्ययन होते आए हैं। इन अध्ययनों के आरंभिक समय में महासागरों और नदियों पर विशेष ध्यान दिया गया था। धीरे-धीरे अन्य जलीय स्रोतों में भी घुलित ऑक्सीजन के स्तर संबंधी शोध आरंभ हुए। हाल ही में, प्रसिद्ध शोध पत्रिका साइंस एडवांस में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार दीर्घकालिक वैश्विक तापन यानी ग्लोबल वार्मिंग और अल्पकालिक हीटवेव की बढ़त्ती आवृत्ति और तीव्रता दोनों ही दुनिया भर की झीलों में सतह पर घुलित ऑक्सीजन के स्तर को काफी कम कर रही हैं।

चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के नानजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ जियोग्राफी एंड लिम्नोलॉजी के प्रोफेसर शि कुन और प्रोफेसर झांग युनलिन के नेतृत्व में, नानजिंग यूनीवर्सिटी और यूके की बांगोर यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं के सहयोग से, इस अध्ययन में दुनिया भर की झीलों में सतही घुलित ऑक्सीजन के स्तरों पर निरंतर वैश्विक तापन और तीव्र गर्मी की घटनाओं के प्रभावों का समावेश किया गया है। शोध दल ने पिछले दो दशकों में विश्व भर में फैली 15,535 झीलों में सतही घुलित ऑक्सीजन विविधताओं का विश्लेषण करने के लिए एक व्यापक डेटासेट का उपयोग किया और एक डेटा-संचालित मॉडल लागू किया।

अध्ययन से पता चलता है कि सतह पर घुलित ऑक्सीजन की सांद्रता में व्यापक गिरावट आई है और अध्ययन की गई 83 प्रतिशत झीलों में महत्वपूर्ण मात्रा में ऑक्सीजन की कमी देखी गई है। उल्लेखनीय रूप से, झीलों में ऑक्सीजन की कमी की औसत दर महासागरों और नदियों दोनों से अधिक है, जो इस मुद्दे की गंभीरता को उजागर करती है।

शोधकर्ताओं ने सतही घुलित ऑक्सीजन की सांद्रता को आकार देने में जलवायु वार्मिंग और यूट्रोफिकेशन की भूमिकाओं का पता लगाया। उनके निष्कर्षों से पता चलता है कि ग्लोबल वार्मिंग, ऑक्सीजन की घुलनशीलता को कम करके, वैश्विक सतही ऑक्सीजन की कमी में 55 प्रतिशत का योगदान देता है। इस बीच, यूट्रोफिकेशन में वृद्धि कुल वैश्विक सतही ऑक्सीजन हानि का लगभग 10 प्रतिशत है।

झील के पानी का बढ़ा हुआ तापमान जलीय वनस्पति और फाइटोप्लैंकटन की वृद्धि को उत्तेजित करके घुलित सांद्रता को संभावित रूप से प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की खपत और उत्पादन दर दोनों में वृद्धि होती है। जब श्वसन के माध्यम से ऑक्सीजन की खपत लंबे समय तक प्रकाश-संश्लेषण द्वारा प्राप्त ऑक्सीजन की दर से अधिक हो जाती है, तो घुलित ऑक्सीजन की सांद्रता स्वाभाविक रूप से कम हो जाती है और समाप्त हो सकती है।

यह घटना विभिन्न जलीय प्रणालियों में व्यापक रूप से देखी गई है। इसके विपरीत, ऐसी स्थितियों में जहां प्रकाश संश्लेषण से ऑक्सीजन की आपूर्ति ऑक्सीजन की खपत से अधिक होती है, ऑक्सीजन की सांद्रता बढ़ जाएगी और ऑक्सीजन सुपर सैचुरेशन हो सकता है। ऐसा कई प्रणालियों में देखा गया है, जिसमें यूट्रोफिक झीलें और उच्च जलीय वनस्पति वाली झीलें शामिल हैं।

इस शोध में अत्यधिक गर्मी यानी हीटवेव के ऐतिहासिक रुझानों का भी विश्लेषण किया गया तथा सतही घुलित ऑक्सीजन स्तरों पर उनके प्रभावों का मात्रात्मक मूल्यांकन किया गया। अध्ययन से पता चलता है कि अत्याधिक गर्मी सतही घुलित ऑक्सीजन में गिरावट पर तेज़ और स्पष्ट प्रभाव डालती है, जिसके परिणामस्वरूप औसत जलवायु तापमान की तुलना में सतही घुलित ऑक्सीजन में 7.7 प्रतिशत की कमी होती है।

इस शोध में घुलनशीलता में भिन्नताओं के लिए दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन (तापमान, हवा की गति और वायुमंडलीय दबाव) के योगदान को निर्धारित किया गया तथा साथ ही दुनिया भर में घुलित ऑक्सीजन परिवर्तनशीलता झीलों पर घुलनशीलता और यूट्रोफिकेशन के दीर्घकालिक प्रभावों को भी निर्धारित कियागया। परिणाम संकेत देते हैं कि तापमान आम तौर पर लगभग सभी झीलों में घुलनशीलता में उल्लेखनीय नकारात्मक योगदान दर्शाता है, जबकि अन्य कारक सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दर्शाते हैं।

                                                      

शोध में बताया गया है कि वायुमंडलीय दयाव का घुलनशीलता पर बहुत कम या कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय दोनों झीलों के लिए औसत योगदान न के बराबर है। हवा की गति एक छोटा सा सकारात्मक योगदान दिखाती है, जिसका औसत योगदान समशीतोष्ण झीलों के लिए 3 प्रतिशत और उष्णकटिबंधीय झीलों के लिए 7 प्रतिशत है।

यह परिणाम बताता है कि उष्णकटिबंधीय झीलों का तापमान बढ़ने पर घुलित ऑक्सीजन की तापमान के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है। तापमान बढ़ने से अधिक यूट्रोफिकेशन हो सकता है। यूट्रोफिकेशन में वृद्धि के कारण ऑक्सीजन की खपत ऑक्सीजन की आपूर्ति से अधिक हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप घुलित ऑक्सीजन सांद्रता में शुद्ध कमी आती है।

बढ़ती गर्मी से कम होता घुलित ऑक्सीजन स्तर

शोध में हीटवेव में ऐतिहासिक रुझानों की जाँच की जाती है और घुलित ऑक्सीजन सांद्रता पर उनके प्रभाव का मात्रात्मक मूल्यांकन किया जाता है। वैश्विक स्तर पर, अध्ययन की गई 85 प्रतिशत झीलों में प्रति वर्ष हीटवेव दिनों की संख्या में क्रमिक वृद्धि देखी गई है। विशेष रूप से, पिछले दो दशकों में सभी छह महाद्वीपों में हीटवेव के दिनों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसमें अफ्रीका में 1.2 दिन/वर्ष, एशिया में 0.7 दिन/वर्ष, यूरोप में 0.6 दिन वर्ष, उत्तरी अमेरिका में 0.5 दिन/वर्ष, दक्षिण प्रशांत में 1.4 दिन/वर्ष और दक्षिण अमेरिका में 0.6 दिन/वर्ष की वृद्धि दर है।

शोध से पता चला है कि हीटवेव के कारण घुलित ऑक्सीजन की घुलनशीलता में कमी आ सकती है और कम अवधि में घुलित ऑक्सीजन की सांद्रता में तेज़ और पर्याप्त उतार-चढ़ाव हो सकता है। हीटवेव दुनिया भर में झीलों में घुलित ऑक्सीजन सांद्रता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। हीटवेव घटनाओं के दौरान घुलित ऑक्सीजन सांद्रता में 19.0 प्रतिशत की अधिकतम कमी के साथ 7.7 प्रतिशत की औसत कमी का पता चला है।

घुलित ऑक्सीजन सांद्रता पर हीटवेव का प्रभाव स्थानिक पैमानों पर अलग-अलग होता है। विशेष रूप से, पिछले दो दशकों में सभी छह महाद्वीपों में औसत प्रभाव तीव्रता में क्रमशः अफ्रीका में 1.9 प्रतिशत, एशिया में 0.8 प्रतिशत, यूरोप में 1.3 प्रतिशत, उत्तरी अमेरिका में 2.0 प्रतिशत, दक्षिण प्रशात में 0.8 प्रतिशत और दक्षिण अमेरिका में 0.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

मशीन लर्निंग मॉडल का किया गया उपयोग

इस अध्ययन में मशीन लर्निंग दृष्टिकोण का उपयोग किया गया, जिसमें मान्यता प्राप्त जलवायु मानकों जैसे कि हवा का तापमान, सौर और तापीय विकिरण, हवा की गति, वायुमंडलीय दबाव और वर्षा को शामिल किया गया। इसके अलावा, ऊंचाई और अक्षांश जैसे भौगोलिक कारकों को शामिल किया गया है, जो पर्यावरणीय परिस्थितियों में स्थानिक विविधताओं को पकड़ने की मॉडल की क्षमताको बढ़ाते हैं। इसके अलावा, दो जल गुणवत्ता सूचकांक अर्थात् सतही शैवाल सूचकांक और रंग कोण के माध्यम से जल की गुणवत्ता को परखा गया। सतही शैवाल सूचकांक पादप प्लवक (फाइटोप्लैंकटन) के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जहाँ उच्च सतही शैवाल सूचकांक मान सतह फाइटोप्लांकटन के घने एकत्रीकरण को दर्शाता है।

विकसित मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग करके 2003 से 2023 तक विभिन्न अस्थायी पैमानों (वार्षिक और मासिक) में फैले घुलित ऑक्सीजन रिकॉर्ड के अध्ययन के लिए किया गया। घुलित ऑक्सीजन संतृप्ति और यूट्रोफिकेशन के मध्य संबंधों को भी जांचा गया और संरचनात्मक समीकरण मॉडलिंग दृष्टिकोण का उपयोग करके घुलित ऑक्सीजन सांद्रता पर जलवायु वार्मिंग और यूट्रोफिकेशन के प्रभाव का पता लगाया गया।

घुलित ऑक्सीजन की कमी के गंभीर नुकसान

ये निष्कर्ष मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के गहन प्रभाव को रेखांकित करते हैं, तथा दुनिया भर में झील पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए शमन और अनुकूलन रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता पर बल देते हैं। यह अध्ययन मीठे पानी में ऑक्सीजन की कमी के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए काम कर रहे नीति निर्माताओं और पर्यावरण प्रबंधकों के लिए महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।विशेष रूप से, छह महाद्वीपों में स्थित झीलों में पिछले दो दशकों में क्रमशः अफ्रीका में -0.03 मिलीग्राम प्रति लीटर, एशिया में -0.024 मिलीग्राम प्रति लीटर, यूरोप में -0.074 मिलीग्राम प्रति लीटर, उत्तरी अमेरिका में -0.13 मिलीग्राम प्रति लीटर, दक्षिण प्रशांत में -0.052 मिलीग्राम प्रति लीटर और दक्षिण अमेरिका में -0.012 मिलीग्राम प्रति लीटर की गिरावट देखी गई है।

घुलित ऑक्सीजन सांद्रता में वृद्धि वाली झीलें मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में स्थित प्रतीत होती हैं। वैश्विक स्तर पर, अध्ययन की गई झीलों में से 17 प्रतिशत में सतही घुलित ऑक्सीजन सांद्रता में वृद्धि देखी गई, जिसकी औसत दर 0.064 मिलीग्राम प्रति लीटर प्रति दशक थी; जबकि 83 प्रतिशत झीलों में सतही घुलित ऑक्सीजन सांद्रता में कमी देखी गई, जो औसतन-0.079 मिलीग्राम प्रति लीटर प्रति दशक थी। कुल मिलाकर, पिछले दो दशकों के दौरान वैश्विक स्तर पर झील की सतही घुलित ऑक्सीजन में -0.10 मिलीग्राम प्रति लीटर की कमी आई है।

झील की सतही बुलित ऑक्सीजन में परिवर्तन की दर (-0.022 मिलीग्राम प्रति लीटर प्रति दशक) महासागरों (-0.022 मिलीग्राम प्रति लीटर प्रति दशक) और नदियों (-0.038 मिलीग्राम प्रति लीटर प्रति दशक) में समान समय अवधि में देखी गई दरों से अधिक है।

इस प्रकार से हालिया शोध ने दर्शाया है कि झीलों में घुलित ऑक्सीजन की सांद्रता में कमी पारिस्थितिकी तंत्र के नाजुक संतुलन को गंभीर रूप से बाधित कर सकती है, खासकर तब जब घुलित ऑक्सीजन जैविकऔर जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं को चलाने में एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में कार्य करता है। एरोविक जीवन को बनाए रखने और स्वस्थ जैविक समुदायों को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन का स्तर महत्वपूर्ण है।

घुलित ऑक्सीजन सांद्रता में कमी से काफी दुष्परिणाम सामने आते हैं, जिसमें नाइट्रोजन फिक्सेशन में कमी, खाद्य सुरक्षा, आजीविका और तटीय अर्थव्यवस्थाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना शामिल हैं। जल में घुलित ऑक्सीजन की कमी होने के कारण मछलियां और अन्य जीव मरने लगते हैं, जिससे जैवविविधता घटती है।

जैवविविधता के कम होने से पारिस्थितिकी तंत्र का विघटन आरंभ हो जाता है। इसके अलावा घुलित ऑक्सीजन की कमी होने के कारण पानी की गुणवता खराब होने लगती है। ऐसी स्थिति में पानी में शैवाल बढ़ने से पानी जहरीला हो सकता है, जिससे पीने लायक नहीं रहता।

झील में ऑक्सीजन कैसे बढ़ाएँ?

झीलें हमारे पर्यावरण की अमूल्य धरोहर हैं। यदि झील में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, तो जल जीवन संकट में पड़ सकता है। इसलिए झीलों में ऑक्सीजन को बढ़ाना बहुत जरूरी है। झील में ऑक्सीजन बढ़ाने के उपायों में पौधों और शैवालों का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। झील में पौधों और शैवालों की नियंत्रित मात्रा ऑक्सीजन के स्तर को संतुलित रखती है। जलीय पौधे दिन में प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं। इसके अलावा वायु प्रणाली का उपयोग भी किया जा सकता है जिसके अंतर्गत झील में कृत्रिम हवा या ऑक्सीजन डालने के लिए बब्बलर, फव्वारे या एरेशन मशीनों का प्रयोग किया जाता है। इससे पानी में ऑक्सीजन घुलती है। झील का पानी अगर रुका हुआ हो, तो ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। जल का प्राकृतिक या कृत्रिम प्रवाह बनाए रखने से ऑक्सीजन की मात्रा बनी रहती है। इसके अलावा सबसे प्रमुख बात यह है कि झीलों को प्रदूषण से मुक्त रखा जाए।

जल में घुलित ऑक्सीजन का महत्व

जलचरों के लिए आवश्यकः मछलियों, झींगे और अन्य जलीय जीवों के जीवित रहने के लिए घुलित ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।

पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखनाः पर्याप्त ऑक्सीजन की उपलब्धता झील में जैविक अपघटन को नियंत्रित करता है, जिससे पानी की गुणवत्ता बनी रहती है।

दुर्गंध और विषैली गैसों की रोकथामः ऑक्सीजन की कमी से झील में हानिकारक गैसें जैसे मीथेन और हाइड्रोजन सल्फाइड बनने लगती हैं, जिससे पानी दूषित हो सकता है।

शैवाल वृद्धि पर नियंत्रणः ऑक्सीजन की कमी से झील में शैवाल की अत्यधिक वृद्धि हो सकती है, जो पानी को हानिकारक बनाती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।