मानसून और ग्रामीण अर्थव्यवस्था      Publish Date : 25/07/2025

               मानसून और ग्रामीण अर्थव्यवस्था

                                                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

Rural Economy and Monsoon: मानसून केवल बारिश ही लेकर नहीं आता है, बल्कि यह हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आर्थिक इंजन भी है-

थ्कसान जागरण डॉट कॉम से बातचीत के दौरान सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ0 के. के. सिंह ने बिलकुल स्पष्ट शब्दों कहा हैं, कि यदि मानसून अच्छा रहेगा तो खेती, किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था तीनों सतम्भ ही मजबूत होंगे। उन्होंने कहा कि भारत की खेती वर्तमान समय में भी 45 प्रतिशत मानसून पर ही निर्भर करती है।

                                                       

इस बार दक्षिण पश्चिम मानसून मेहरबान बना हुआ है, जिससे उत्तर भारत में झमाझम बारिश लगातार हो रही है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने भी इस बार के मानसून को लेकर इसे सामान्य बने रहने की भविष्यवाणी कर दी है। हमारे देश में मानूसन आगमन से केवल बारिश ही नहीं आती बल्कि यह ग्रामीण भारत का एक आर्थिक इंजन भी है। देश के प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री डॉ. प्रताप सिंह बिरथल का मानना है कि भले ही तकनीक और सिंचाई के साधन काफी संख्या में बढ़े हों, लेकिन भारत की कृषि आज भी मानसून पर गहराई से निर्भर करती है।

खेती, किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था तीनों होंगे मजबूत

यदि मानसून अच्छा बना रहेगा तो इससे खेती, किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था तीनों मजबूत होते हैं। यदि मानसून के शुरुआत में ही अच्छी बारिश होती है तो भूमिगत जल का स्तर (Groundwater Level) अच्छी प्रकार से रिचार्ज हो जाता है, जो सूखे के समय काम आता है। फसल अच्छी होगी तो किसानों की आय बढ़ेगी, और आय बढ़ेगी तो किसान की क्रय-शक्ति (Purchesing Power) भी बढ़ेगी और इस खपत से निवेश तथा निवेश से विकास होगा।

                                                        

ग्रामीण बाजारों में मांग बढ़ती है

किसान आय बढ़ने पर ट्रैक्टर, मशीनरी, उपकरण आदि खरीदते हैं। इससे ग्रामीण बाजारों में मांग बढ़ती है, जो औद्योगिक उत्पादनों और सर्विस सेक्टर की ग्रोथ को रफ्तार देता है। यह प्रभाव धीरे-धीरे GDP को लाभ पहुंचाते हैं। किसान का खर्च बढ़ता है तो वह देश के विकास में हिस्सेदार बनता है। 

मानसून की अनिश्चितता के सम्भावित खतरें

अगर शुरुआत में बारिश होकर बीच में बंद हो जाती है, तो इसके फलस्वरूप फसल खराब हो सकती है। हार्वेस्टिंग के समय बारिश आने से फसल की गुणवत्ता और मूल्य दोनों गिर सकते हैं। अत्यधिक बारिश से बाढ़ और नुकसान का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए केवल मानसून का समय पर आना ही नहीं, बल्कि उसकी टाइमिंग भी बहुत अहम भूमिका अदा करती है।

पशुपालन और मिश्रित खेती में मानसून की भूमिका

भारत की खेती प्रणाली मुख्य रूप से मिक्स्ड फार्मिंग है, जिसमें पशुपालन एक प्रमुख भूमिका निभाता है। मानसून अच्छा होगा तो पशुओं को हरा चारा मिलेगा, सूखे चारे का भंडारण किया जा सकेगा, पशुओं की सेहत सुधरेगी और उनका दूध उत्पादन बढ़ेगा। पशुपालन से किसानों को नियमित आमदनी मिलती है, यह कृषि का इंश्योरेंस और एक अतिरिक्त आमदनी का स्रोत होता है।

मानसून का सीधा असर राज्य और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर

भारत की जीडीपी में कृषि और ग्रामीण क्षेत्र का योगदान 30 प्रतिशत से अधिक है। राजस्थान, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में तो यह 40 प्रतिशत तक पहुंचता है। मानसून अच्छा होगा तो इन राज्यों को सबसे अधिक लाभ होगा। जैसे ही किसान की आय बढ़ती है, तो लोग फल, सब्जी, दूध, ड्राई फ्रूट्स जैसे पोषण वाले आहार की ओर बढ़ते हैं। इससे ग्रामीण उपभोक्ता बाजार में बदलाव आता है और नई मांग उत्पन्न होती है। फूड बास्केट में बदलाव का असर पूरे रिटेल नेटवर्क और कृषि आपूर्ति श्रृंखला पर भी सकारात्मक रूप से पड़ता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।