चौपाल, जिसका अस्तित्व खिलजी भी न मिटा सका      Publish Date : 23/07/2025

       चौपाल, जिसका अस्तित्व खिलजी भी न मिटा सका

                                                                                                                                     प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य

इतिहासकारों का कहना है कि गुलामवंश शासन के दौर में कुतुबुद्दीन ऐबक के सिपहसालार बख्तियार खिलजी ने सोरम को काफी नुकसान पहुंचाया था। सर्वखाप ने कई सामाजिक सुधारों की पहल की है। अब गांव सोरम की इस चौपाल की देखरेख का जिम्मा पर्यटन मंत्रालय ने लिया है और कई नेताओं ने अपनी निधि भी भवन के लिए प्रदान की है।

मुजफ्फरनगर के गांव सोरम पहुंचते ही मुख्य मार्ग पर बना विशाल भवन अपनी ओर ध्यान खीच लेता है। इस भवन के बाहर ऐतिहासिक सोरम चौपाल का बोर्ड लगा है और सामने ही मुख्य दीवार पर भगत सिंह और बिस्मिल जैसे कांतिवीरों की तस्वीरें भी लगी हैं। यह कोई आम भवन नहीं, बल्कि सर्वखाप पंचायतों का मुख्यालय है। एक ऐसा केंद्र, जहां पर देश की खुशहाली और समाज के सुधार के लिए अनेक फैसले लिए जाते रहे हैं।

पिछले दिनों जब पाकिस्तान से युद्ध की बात हुई, तो सोरम में चौपाल पर सर्वखाप की आकस्मिक पंचायत बुलाई गई और इसमें निर्णय लिया गया कि देश को जरूरत पड़ने पर अन्न और खून की कभी किसी भी कीमत पर नहीं होने दी जाएगी। युवा रक्तदान कर सैनिकों तक मदद पहुंचाएंगे और जरूरत पड़ने पर वह सीमा पर दुश्मन से लड़ने भी जाएंगे। माना जाता है कि यह गांव छठी शताब्दी में पंचायतों का एक प्रमुख केंद्र बन गया था। इतिहासकारों का कहना है कि गुलाम वंश के दौर में कुतुबुद्दीन ऐबक के सिपहसालार बख्तियार खिलजी ने सोरम को काफी नुकसान पहुंचाया था।

                                                                   

यह गांव उस समय लगभग पूरी तरह से ही उजड़ ही गया था। वर्ष 1305 में रामराव राणा ने इस गांव का फिर नए सिरे से निर्माण किया। पुराने जमाने में यह चबूतरा जैसा हुआ करता था, जिसे बाद में भवन का आकार दिया गया। माना जाता है कि वर्तमान भवन भी ढाई सौ साल से ज्यादा पुराना है। चौधरी नरपत सिंह और करम सिंह ने इसे बनवाया था। बाद में कबूल सिंह ने इस परंपरा को मजबूती से आगे बढ़ाया।

सर्वखाप पंचायत के मंत्री सुभाष बालियान बताते हैं कि गांव में बाबर, अकबर, शाहजहां और बहादुर शाह जफर जैसे शासकों का भी लगातार आना रहता था। अकबर की ओर से तो सौ-सौ रुपये और पगड़ी भेंट की जाती थी। इन शासकों से जुड़े तापपत्र आज भी यहां मौजूद है। पंचायत के फैसलों पर किताब लिख चुके अमित बालियान बताते हैं कि सर्वखाप ने आजादी की लड़ाई में भी अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था।

इतना ही नहीं, देश आजाद हुआ, तो दहेज प्रथा के खिलाफ एलान करते हुए वर्ष 1950 में कहा कि पांच बर्तन, साड़ी और पांच बरातियों के साथ ही विवाह सम्पन्न कराए जाने चाहिए। महिलाओं के भारी घाघरे जैसे पहनावे पर भी सर्वखाप पंचायत ने ही छूट देने की पहल की थी। इसके बाद गांवों में स्कूल खोलने की पैरवी की। इसके साथ ही बेटियों की संख्या कम होने पर भ्रूण हत्या के खिलाफ भी सर्वखाप की पंचायत में एलान किया गया। अब गांव सोरम की इस चौपाल की देखरेख का जिम्मा पर्यटन मंत्रालय ने लिया है और कई नेताओं ने अपनी निधि भी भवन के लिए दी है। दुनिया के अनेक इतिहासकार यहां पर अब तक आ चुके हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।