ऑपरेशन सिंदूर राष्ट्रीय सुरक्षा में आत्मनिर्भरता की नवीन पद्धति का उदय      Publish Date : 19/07/2025

ऑपरेशन सिंदूर राष्ट्रीय सुरक्षा में आत्मनिर्भरता की नवीन पद्धति का उदय

                                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

ऑपरेशन सिंदूर विषम युद्ध (सैन्य कर्मियों के साथ-साथ निहत्थे नागरिकों को निशाना बनाना) के उभरते स्वरूप के लिए एक संतुलित सैन्य प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया है। अप्रैल, 2025 में पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकवादी हमला, इसी स्वरूप की याद दिलाता है। इसके बाद भारत की प्रतिक्रिया सतर्क, सटीक और रणनीतिक थी। नियंत्रण रेखा या अंतरराष्ट्रीय सीमा को पार किए बिना, भारतीय सेना ने आतंकवादी ढांचे पर हमला कर कई खतरों को खत्म कर दिया। हालांकि सामरिक प्रतिभा से परे इसमें सबसे खास बात स्वदेशी हाई-टेक प्रणालियों का राष्ट्रीय रक्षा में निर्वाध एकीकरण था। चाहे ड्रोन युद्ध हो, बहुस्तरीय हवाई सुरक्षा हो या इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, ऑपरेशन सिंदूर सैन्य अभियानों में तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत की यात्रा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

हवाई सुरक्षा क्षमताएं सुरक्षा की पहली पंक्ति के रूप में तकनीक

                                                         

7-8 मई, 2025 की रात को, पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइलों से अवंतीपुरा, श्रीनगर, जम्मू, पठानकोट, अमृतसर, कपूरथला, जालंधर, लुधियाना, आदमपुर, बठिंडा, चंडीगढ़, नल, फलोदी, उत्तरलाई और भुज सहित उत्तरी और पश्चिमी भारत में कई सैन्य ठिकानों पर हमला करने का प्रयास किया, लेकिन इन्हें एकीकृत काउंटर यूएएस (मानव रहित हवाई प्रणाली) ग्रिड और वायु रक्षा प्रणालियों द्वारा निष्प्रभावी कर दिया गया। हवाई सुरक्षा प्रणालियां रडार, नियंत्रण केंद्रों, तोपखाने और विमान और जमीन आधारित मिसाइलों के नेटवर्क का उपयोग करके ऐसे खतरों का पता लगाकर उनका पीछा करते हुए, उन्हें बेअसर करती हैं। 8 मई की सुबह, भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान में कई स्थानों पर हवाई सुरक्षा रडार और प्रणालियों को निशाना बनाया। लाहौर में एक हवाई सुरक्षा प्रणाली को बेअसर कर दिया गया।

प्रणालियों का प्रदर्शन

ऑपरेशन सिंदूर के तहत निम्नलिखित का उपयोग किया गयाः

  • युद्ध-प्रमाणित एडी (वायुरक्षा) प्रणालियां जैसे पिकोरा, ओएसए-एके और एलएलएडी गन (निम्न स्तरीय वायु रक्षा बंदूकें)।
  • बेहतर प्रदर्शन करने वाली आकाश जैसी स्वदेशी प्रणालियां।

आकाश छोटी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली एक मिसाइल प्रणाली है, जो हवाई हमलों की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों और सामरिक बिंदुओं की रक्षा करती है। आकाश हथियार प्रणाली समूह मोड या स्वायत्त मोड में एक साथ कई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटर मेजर (ईसीसीएम) सुविधाएं अंतर्निहित हैं। संपूर्ण हथियार प्रणाली को मोबाइल प्लेटफॉर्म पर विशिष्ट कार्यों के अनुरूप किया गया है।

भारत की हवाई सुरक्षा प्रणाली ने सेना, नौसेना और मुख्य रूप से वायु सेना की युद्धक सामग्रियों को मिलाकर, असाधारण तालमेल के साथ प्रदर्शन किया है। इन प्रणालियों ने एक अभेद्य दीवार बनाई, जिसने पाकिस्तान की तरफ से की गई जवाबी कार्रवाई के कई प्रयासों को विफल किया।

भारतीय वायुसेना की एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (आईएसीसीएस) इन सभी घटकों को एक साथ लाई, जिससे आधुनिक युद्ध के लिए आवश्यक केंद्रित परिचालन क्षमता प्रदान की गई।

अत्यधिक सटीक सटीकता के साथ आक्रामक कार्रवाई

भारत के आक्रामक हमलों ने सर्जिकल सटीकता के साथ प्रमुख पाकिस्तानी एयरबेस नूर खान और रहीमयार खान को निशाना बनाया। विनाशकारी प्रभाव के लिए लोइटरिंग हथियारों का इस्तेमाल किया गया, जिनमें से प्रत्येक ने दुश्मन के रडार और मिसाइल सिस्टम सहित महत्वपूर्ण लक्ष्यों को ढूंढा और नष्ट किया। लोइटरिंग हथियारों को 'आत्मघाती ड्रोन' या 'कामिकेज ड्रोन' के रूप में भी जाना जाता है, वे ऐसी हथियार प्रणालियां हैं जो हमला करने से पहले उपयुक्त लक्ष्य की तलाश में अपने लक्ष्य क्षेत्र पर मंडराते या चक्कर लगाते हैं।

इन सभी हमलों में भारतीय संपत्तियों को किसी भी तरह का नुकसान नहीं हुआ, जो हमारी निगरानी, योजना और वितरण प्रणालियों की प्रभावशीलता को रेखांकित करता है। आधुनिक स्वदेशी तकनीक के उपयोग ने लंबी दूरी के ड्रोन से लेकर निर्देशित हथियारों तक इन हमलों को अत्यधिक प्रभावी और राजनीतिक रूप से संतुलित बनाया। भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान को आपूर्ति की गई चीनी हवाई सुरक्षा प्रणालियों को दरकिनार किया और उन्हें जाम कर दिया। इससे मात्र 23 मिनट में मिशन पूरा कर भारत की तकनीकी क्षमता को प्रदर्शित किया गया।

खतरों को बेअसर करने के साक्ष्य

ऑपरेशन सिंदूर ने भारतीय प्रणालियों द्वारा शत्रु देश की प्रौद्योगिकियों को बेअसर करने के ठोस सबूत भी पेश किएः

  • पीएल-15 मिसाइलों के टुकड़े (चीन निर्मित)।
  • तुर्की निर्मित यूएवी, जिन्हें 'यीहा' या 'यीहाव' नाम दिया गया।
  • लंबी दूरी के रॉकेट, क्वाडकॉप्टर और वाणिज्यिक ड्रोन।

इन्हें बरामद कर उनकी पहचान की गई, जिससे पता चलता है कि पाकिस्तान द्वारा विदेशों से हासिल किए गए उन्नत हथियारों का इस्तेमाल करने के प्रयासों के बावजूद, भारतीय के स्वदेशी वायु रक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध नेटवर्क बेहतर बने रहे।

प्रणालियों का प्रदर्शनः भारतीय सेना के हवाई सुरक्षा उपाय

12 मई को, लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई, महानिदेशक सैन्य संचालन, ने ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित प्रेस ब्रीफिंग में विरासत और आधुनिक प्रणालियों के मिश्रण के उत्कृष्ट प्रदर्शन पर प्रकाश डालाः

तैयारी और समन्वयः

चूंकि आतंकवादियों पर सटीक हमले नियंत्रण रेखा या अंतरराष्ट्रीय सीमा को पार किए बिना किए गए थे, इसलिए यह अनुमान लगाया गया था कि इन्हें लेकर पाकिस्तान की तरफ से जवाबी कार्रवाई होगी।

  • सेना और वायु सेना दोनों की जवाबी मानव रहित हवाई प्रणालियों, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध सामग्रियों और वायु रक्षा हथियारों का एक अनूठा मिश्रण।
  • अंतरराष्ट्रीय सीमा से भीतर की ओर कई रक्षात्मक परतेः
  1. जवाबी मानव रहित हवाई प्रणालियां,
  2. कंधे पर रखकर दागे जाने वाले हथियार,
  3. पुराने वायु रक्षात्मक हथियारों का इस्तेमाल,
  4. आधुनिक वायु रक्षा हथियार प्रणालियां। इस बहु-स्तरीय सुरक्षा ने 9-10 मई की रात को हमारे हवाई अड्डों और सामरिक प्रतिष्ठानों पर पाकिस्तानी वायु सेना के हमलों को रोका। पिछले एक दशक में लगातार सरकारी निवेश से निर्मित ये प्रणालियां इस ऑपरेशन के दौरान मनोबल बढ़ाने वाली साबित हुईं। उन्होंने यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि दुश्मन के जवाबी हमलों के दौरान भारत में नागरिक और सैन्य बुनियादी ढांचा दोनो ही बड़े पैमाने पर अप्रभावित रहे।

इसरो का योगदानः इसरो के अध्यक्ष वी नारायणन ने 11 मई को एक कार्यक्रम में उल्लेख किया कि देश के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कम से कम 10 उपग्रह लगातार चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं। देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, राष्ट्र को अपने उपग्रहों के माध्यम से अपने 7,000 किलोमीटर के समुद्री तट क्षेत्रों की निगरानी करनी है। इसे पूरे उत्तरी भाग की लगातार निगरानी करनी है। उपग्रह और ड्रोन तकनीक के बिना, देश यह हासिल नहीं कर सकता।

ड्रोन पावर का व्यवसायः एक उभरता हुआ स्वदेशी उद्योग

ड्रोन फेडरेशन इंडिया (डीएफआई), एक प्रमुख उद्योग निकाय है जो 550 से अधिक ड्रोन कंपनियों और 5500 ड्रोन पायलटों का प्रतिनिधित्व करता है। डीएफआई का लक्ष्य वर्ष 2030 तक भारत को वैश्विक ड्रोन हब बनाना है और यह दुनिया भर में भारतीय ड्रोन और काउंटर ड्रोन तकनीक के डिजाइन, विकास, निर्माण, अपनाने और निर्यात को बढ़ावा देता है। डीएफआई व्यापार करने में आसानी को सक्षम बनाता है, ड्रोन तकनीक को अपनाने को बढ़ावा देता है और भारत ड्रोन महोत्सव जैसे कई कार्यक्रमों की मेजबानी करता है। भारतीय ड्रोन बाजार वर्ष 2030 तक 11 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है, जो वैश्विक ड्रोन बाजार का 12.2 प्रतिशत है।

आधुनिक युद्ध के केंद्र में ड्रोन

भारत के सैन्य सिद्धांत में ड्रोन युद्ध को शामिल करने की सफलता का श्रेय घरेलू शोध एवं विकास और नीति सुधार को जाता है। वर्ष 2021 से, आयातित ड्रोन पर प्रतिबंध और पीएलआई (उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन) योजना की शुरुआत ने तेजी से नवाचार को बढ़ावा दिया है। नागर विमानन मंत्रालय की ड्रोन और ड्रोन घटकों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन की योजना को 30 सितंबर, वर्ष 2021 को अधिसूचित किया गया था, जिसमें तीन वित्तीय वर्षों (वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2023-24) में कुल 120 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया गया था। भविष्य एआई-संचालित निर्णय लेने वाले स्वायत्त ड्रोन में निहित है और भारत पहले से ही इसकी नींव रख रहा है।

वित्त वर्ष 2024-25 में रक्षा निर्यात ने लगभग 24,000 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड आंकड़ा पार कर लिया। इसका उद्देश्य वर्ष 2029 तक इस आंकड़े को 50,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाना और वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र और दुनिया का सबसे बड़ा रक्षा निर्यातक देश बनाना है। मेक इन इंडिया रक्षा क्षेत्र के विकास को गति दे रहा है। भारत 'मेक इन इंडिया' पहल और आत्मनिर्भरता के लिए एक मजबूत प्रयास से प्रेरित होकर एक प्रमुख रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरा है। वित्त वर्ष 2023-24 में, स्वदेशी रक्षा उत्पादन रिकॉर्ड 1.27 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जबकि वित्त वर्ष 2024-25 में निर्यात बढ़कर 23,622 करोड़ रुपये हो गया, जो 2013 14 से 34 गुना वृद्धि है।

रणनीतिक सुधारों, निजी क्षेत्र की भागीदारी और ठोस अनुसंधान एवं विकास के कारण धनुष आर्टिलरी गन सिस्टम, एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस), मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) अर्जुन, लाइट स्पेशलिस्ट व्हीकल्स, हाई मोबिलिटी व्हीकल्स, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच),लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर (एलयूएच), आकाश मिसाइल सिस्टम, वेपन लोकेटिंग रडार, उडी टैक्टिकल कंट्रोल रडार और सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो (एसडीआर) जैसे उन्नत सैन्य प्लेटफॉर्म के साथ-साथ विध्वंसक, स्वदेशी विमानवाहक पोत, पनडुब्बी, फ्रिगेट, कोरवेट, तेज गश्ती पोत, तेज गति से हमला करने वाले जहाज और अपतटीय गश्ती पोत जैसी नौसेना सामग्रियों का विकास हुआ है।

सरकार ने रिकॉर्ड खरीद अनुबंधों, आईडीईएक्स के तहत नवाचारों, सूजन जैसे अभियानों और उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो रक्षा औद्योगिक गलियारों के साथ इस वृद्धि को अपना समर्थन किया है। एलसीएच (लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर) प्रचंड हेलीकॉप्टर और एटीएजीएस (एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम के लिए स्वीकृति) जैसे प्रमुख अधिग्रहण स्वदेशी क्षमता की ओर बदलाव को दर्शाते हैं। भारत वर्ष 2029 तक 3 लाख करोड़ रुपये के उत्पादन और 50,000 करोड़ रुपये के निर्यात के लक्ष्य के साथ, भारत खुद को एक आत्मनिर्भर और वैश्विकरूप से प्रतिस्पर्धी रक्षा विनिर्माण शक्ति के रूप में मजबूती से स्थापित कर रहा है।

ऑपरेशन सिंदूर केवल सामरिक सफलता की कहानी नहीं है। यह भारत की रक्षा स्वदेशीकरण नीतियों की पुष्टि है। वायु रक्षा प्रणालियों से लेकर ड्रोन तक, काउंटर यूएएस क्षमताओं से लेकर नेट-केंद्रित युद्ध प्लेटफार्मों तक, स्वदेशी तकनीक ने तब काम किया है जब इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी। निजी क्षेत्र के नवाचार, सार्वजनिक क्षेत्र के निष्पादन और सैन्य दृष्टि के संयोजन ने भारत को न केवल अपने लोगों और क्षेत्र की रक्षा करने में सक्षम बनाया है, बल्कि 21वीं सदी में एक हाई-टेक सैन्य शक्ति के रूप में अपनी भूमिका को भी सक्षम बनाया है। भविष्य के संघर्षों में युद्ध के मैदान को तेजी से तकनीक द्वारा आकार दिया जाएगा।

जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर ने पूरी तरह साबित कर दिया है। भारत अपने स्वयं के नवाचारों से लैस है, एक दृढ़ राष्ट्र द्वारा समर्थित और अपने नागरिकों की निष्कपटता से संचालित है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।