जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से मृदा की उर्वरता को बहाल करने की रणनीति      Publish Date : 20/06/2025

जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से मृदा की उर्वरता को बहाल करने की रणनीति

                                                                                                                                 प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

प्राकृतिक खेती अपनानाः- प्राकृतिक खेती एक रसायन मुक्त उपज पारंपरिक खेती पद्धति है। इसे कृषि पारिस्थितिकी आधारित विविध कृषि प्रणाली माना जाता है जो फसलों, पेड़ों और पशुधन को कार्यात्मक जैव विविधता के साथ एकीकृत करती है।

प्राकृतिक खेती ही क्यों?

प्राकृतिक खेती को अपने ग्रह प्रथ्वी को बचाने की एक प्रमुख रणनीति के रूप में पुनर्योजी कृषि का एक रूप माना जाता है।

विभिन्न शोधों के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि पौधों की वृद्वि के लिए आवश्यक सभी प्रमुख पोषक तत्व, जड़ क्षेत्र के आसपास उपलब्ध हैं और पौधे हवा, पानी और सौर ऊर्जा से लगभग 98 से 98.5 प्रतिशत तक पोषक तत्व और शेष 1.5 प्रतिशत पोषक तत्व मिट्टी से ग्रहण करने में सक्षम होते हैं।

प्राकृतिक खेती काफी हद तक ऑन-फार्म बायोमास रिसाइक्लिंग पर आधारित है, इस प्रक्रिया में बायोमास मल्चिंग पर प्रमुख जोर दिया जाता है, पोषक  तत्वों के कुशल  रिसाइक्लिंग के लिए नाइट्रोजन फिक्सिंग फलीदार फसलों के साथ सहजीवन में फसल चक्र में विविधिता लाने के बाद खेत में गाय के गोबर-मूत्र फॉमूर्लेशन का उपयोग किया जाता है।

प्राकृतिक खेती लागत में कमी और फसल के जोखिम को कम करके किसानों की आय बढाने में मदद करती है।

प्राकृतिक खेती कृषि-अपशिष्ट से खेती में प्रयोग यानी इनपुट के उपयोग को बढावा देती है, जिससे किसान आत्मर्निभर बनते हैं और किसान को बाजार से खेती के लिए खरीददारी कम करनी पड़ती है। 

प्राकृतिक खेती में रासायनिक आदानों के अनुप्रयोग वर्जित हैं और इस प्रकार सरुिक्षत और प्राकृतिक भोजन प्रदान किए जाते है जो सभी के लिए काफी लाभदायक हो सकता है।

प्राकृतिक खेती सूखे, कीटों, बीमारियों और अन्य जलवायु संबंधी जोखिमों और झटकों के प्रति संवेदनशीलिा को कम करके लचीलापन बढ़ाती है, और इसलिए छोटे मौसमों और अनियमित मौसम पैटर्न जैसे दीर्घकालिक हवाओं का सामना करने और बढने की क्षमता में सुधार होता है।

प्राकृतिक खेती मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की स्थिति को बहाल करने में मदद करती है और खराब हुई मिट्टी और जैव-प्रणालियों को पुनर्जीवित करती है और इस प्रकार मिट्टी के स्वाथ्य को फिर से जीवंत करती है।

अगर प्राकृतिक खेती को पेशेवर तरीके से अपनाया जाए तो यह प्राकृतिक खेती के इनपुट उद्यमों, स्थानीय क्षेत्रों में मूल्य संवर्धन, प्रमाणीकरण और विपणन आदि के कारण इस क्षेत्र में रोजगार पैदा कर सकता है।

प्राकृतिक खेती पानी की खपत को कम करने में मदद करती है जिसमें वाष्पीकरण के माध्यम से अनावश्यक पानी की हानि को रोकने के लिए गीली घास और विविध फसलें मिट्टी को ढक देती हैं, इस प्रकार यह ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ की मात्रा को अनुकूलित करती है।

प्राकृतिक खेती की प्रणाली कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार प्राकृतिक खेती (एनएफ) की परिभाषा एक रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती प्रणाली है जिसमें कम लागत वाले इनपुट (गाय के गोबर/मूत्र और पौधे के भाग आधारित) के साथ-साथ मल्चिंग और इंटर क्रॉपिंग जैसी अनुशंसित कृषि प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है। नीति आयोग के अनुसार, प्राकृतिक खेती को रसायन मुक्त और पशुधन आधारित खेती के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह परिभाषा प्रचलित प्रक्रियाओं पर आधारित है। कृषि-पारिस्थितिकी पर आधारित, यह एक विविध कृषि प्रणाली है जो फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकतृ करती है, जिससे कार्यात्मक जैव विविधता का इष्टतम उपयोग होता है।

रसायन मुक्त खेती के विभिन्न तरीकें

जैविक खेती

प्राकृतिक खेती जैविक कृषि संतुलित जैविक खेती और प्राकृतिक खेती कृषि-पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं के रूप हैं। कभी-कभी किसानों के द्वारा इन शब्दों का उपयोग किया जाता है। व्यावहारिक रूप से, जैविक खेती में, किसान जैव-जैविक जैसे ऑफ-फार्म खरीदे गए इनपुट का भी उपयोग किया हैं, हालांकि, जैविक खेती में एक्स-सीटू इनपुट का उपयोग करना आवश्यक नहीं है। प्राकृतिक खेती बाहर से खरीदे जाने के बजाय खेतों और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को जैव-इनपुट के रूप में उपयोग किए जाते है।

समानताएँ:

  • प्राकृतिक खेती और जैविक खेती दोनों ही रसायन मुक्त् खेती के  तरीके हैं।
  • दोनों प्रक्रियाएं गैर-रासायनिक, जैविक कीट नियंत्रण विधियों को बढावा देती हैं। जैविक खेती में, जैविक खाद जैसे कम्पोस्ट, गाय के गोबर की खाद आदि का उपयोग किया जाता है और बाहरी स्रोतों से खेत में मिलाया जाता है। प्राकृतिक खेती में मिट्टी में नमी रासायनिक खाद न डालकर जैविक खाद डाली जाती है। स्थानीय रूप से उपलब्ध पौधों और पशुधन बायोमास का उपयोग जैव-उत्तेजक का उपयोग किया जाता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।