
राष्ट्रीय सुरक्षा और प्राकृतिक संकट Publish Date : 11/06/2025
राष्ट्रीय सुरक्षा और प्राकृतिक संकट
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
राष्ट्रीय सुरक्षा केवल सैन्य शक्ति का ही मामला नहीं है। प्राकृतिक दुनिया भी सामाजिक स्थिरता में अहम भूमिका निभाती है। इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा योजना बनाते समय इस पर भी ध्यान देना होगा।
भोजन, स्वच्छ हवा, पेयजल और इनके जैसी अन्य बुनियादी मानवीय जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से ज्यादा प्राकृतिक पर्यावरण का दोहन किया जाता है, तो यह सिर्फ विश्व समुदाय के लिए मानवीय चिंता का विषय नहीं रह जाता, बल्कि शोधों के मुताबिक, यह संकट अमेरिका एवं कई अन्य देशों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला भी बन जाता है।
पेंटागन और अमेरिकी खुफिया समुदाय ने लंबे समय से राष्ट्रीय सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का बारीकी से अध्ययन किया है। हालांकि ट्रंप प्रशासन की ताजा खुफिया रिपोर्टों में जलवायु परिवर्तन का कोई उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन पिछली रिपोर्टों ने स्पष्ट रूप से दर्शाया है कि जलवायु परिवर्तन वैश्विक संघर्ष के लिए चरम बिंदु कैसे बन सकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा पर पारिस्थितिकी व्यवधानों के प्रभावों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। लेकिन वे भी सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संघर्ष और तनावपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संबंधी का कारण बन सकते हैं।
दुनिया भर में लगभग 3.2 अरब लोग प्रोटीन के मुख्य स्रोत के रूप में मत्स्य पालन पर निर्भर समुद्री मत्स्य पालन का अत्यधिक दोहन अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का एक आम कारण है। 1950 से 1970 के दशक तको आइसलैंडिक कॉड मछली पकड़ने के क्षेत्र को लेकर ब्रिटिश और आइसलैंडिक महासागरों के बीच में संघर्ष जारी रहा। कॉड वार के चलते कुछ समय तक आइसलैंड और यूनाइटेड किंगडम के बीच राजनयिक संबंध भी खत्म हो गया था।
हाल ही में चीन ने अपने तटीय जल में अंत्यधिक मछली पकड़ना शुरू किया, जिसका मतलब है दक्षिण चीन सागर में मछली पकड़ने का विस्तार करना और नए क्षेत्रीय दावों को स्थापित करने के लिए मछली पकड़ने वाले बेड ब्रैडली जे. कार्डिनल का उपयोग करना। चीन के मछली पकड़ने वाल बेड़ों ने कई देशों के तटों पर भी अपनी गतिविधियों का विस्तार किया है, जिससे मछली के भंडार कम हो रहे हैं और उन क्षेत्रों में भी राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो रही है।
पारिस्थितिकी से संबंधित सार्वजनिक स्वास्थ्य संकटों के सबसे प्रसिद्ध उदाहरण, जो राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालते हैं, उनमें जुनोटिक रोग शामिल है, जो लोगों और वन्यजीवों के बीच घनिष्ठ संपर्क के चलते जानवरों से मनुष्यों में फैलते हैं। दुनिया की 70 फीसदी से अधिक उभरती संक्रामक बीमारियां जंगली जानवरों के संपर्क से ही उत्पन्न होती हैं।
इसका ताजा उदाहरण कोरोना वायरस है. जिससे 70 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई और न केवल वैश्विक बाजारों और आपूर्ति श्रृंखलाओं में गंभीर व्यवधान पैदा हुआ, बल्कि सामाजिक सामंजस्य और राजनीतिक स्थिरतां भी प्रभावित हुई। प्रति वर्ष 91 अरब डॉलर से 258 अरब डॉलर तक वन्यजीवों का अवैध शिकार और वन उत्पादों का व्यापार होता है। यह पर्यावरण अपराध की दुनिया के सबसे बड़े अपराध में से एक बनाता है। दुर्लभ वन्यजीव नमूनों और शरीर के अंगों की अत्यधिक काला बाजारी रकम को आतंकवादी समूहों, वन माफियाओं और आपराधिक संगठनों को वित्त पोषण प्रदान करती है।
उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि प्रकृति में पारिस्थितिक व्यवधान किस प्रकार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ाते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सिर्फ सैन्य शक्ति का मामला नहीं है। प्राकृतिक दुनिया भी सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।