स्टार्टअप के साथ वर्कलाइफ बैलेंस का ध्यान रखना जरूरी      Publish Date : 31/05/2025

   स्टार्टअप के साथ वर्कलाइफ बैलेंस का ध्यान रखना जरूरी

                                                                                                                                प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

स्टार्टअप को सही तरीके से संचालित करना है, तो वर्कलाइफ को बैलेंस रखें, क्योंकि स्टार्टअप के साथ वर्कलाइफ को करना भी जरूरी है, यह आपकी क्षमता को बढ़ाता है। कर्मचारियों को मोटिवेट करता है और ऐसा रुटीन तैयार करता है कि चीजों को व्यवस्थित रखा जा सके। हमारे विशेषज्ञ आपको बता रहे हैं कि स्टार्टअप के लिए वर्कलाइफ को कैसे बैलेंस रखें-

तय करें वर्क और पर्सनल लाइफ का दायरा

आपको निजी जिंदगी को कितना समय देना है और स्टार्टअप को कितना समय देना है, यह तय करें। अपने वर्किंग आवर्स को तय करने के बाद अपने काम का एक रुटीन बनाएं। यह ऐसा होना चाहिए कि हर जरूरत को समय मिले। दिन की वर्किंग का एक चार्ट बनाएं और अपने समय को उसके हिसाब से बांटें। इस तरह आप एक व्यवस्थित प्लान तैयार कर पाएंगे और उसे लागू कर पाएंगे।

ऐसा न करने पर समय व्यर्थ होने का खतरा ज्यादा होता है और धीरे-धीरे काम पेंडिंग होने लगते हैं। नतीजा एक समय के बाद तनाव की स्थिति बनती है।

काम के साथ ब्रेक भी लें

अपने कामों का जो भी चार्ट तैयार करते हैं, उसे पूरा करने पर फोकस करें, लेकिन शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए ब्रेक भी लें। ब्रेक के दौरान गाने सुन सकते हैं, कोई पसंदीदा खेल खेल सकते हैं। किसी से बात कर सकते हैं। इस तरह खुद तय करें ब्रेक के दौरान क्या करने से मन को सुकून मिलता है ताकि दोगुनी एनर्जी के साथ वापस जुट सकें।

परिवर्तन का स्पेस भी रखें

दिनभर के अपने कामों को पूरा करने के लिए एक प्लान का होना अनिवार्य है, लेकिन उसमें बदलाव की गुंजाइश भी रखें। कई बार अचानक से स्थितियां बदलती हैं और प्लानिंग में बदलाव करना अनिवार्य हो जाता है। इसका ध्यान रखें सपोर्ट और फीडबैक लें।

हर काम खुद को ही करना है, ऐसी सोच न रखें। आपके पास जो भी टीम है, उसका बेहतर इस्तेमाल करें। जिम्मेदारियों को बांटें और कर्मचारियों को गाइड करें ताकि एक रिजल्ट देने वाली टीम तैयार हो सके।

हर काम को खुद करने बैठेंगे तो टार्गेट पूरा करना मुश्किल हो जाएगा। विशेषज्ञ कहते हैं, सपोर्ट के साथ फीडबैक लेना भी जरूरी होता है। अगर कोई समस्या सामने आ रही है, तो एक बार टीम से भी समाधान पूछें। इसके बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचें। धीरे-धीरे इसे अपनी प्रैक्टिस का हिस्सा बनाएंगे तो बेहतर रिजल्ट आएंगे।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।