दक्षिण भारतीय राज्यों में हाथियों की समस्या      Publish Date : 13/05/2025

          दक्षिण भारतीय राज्यों में हाथियों की समस्या

दक्षिण भारतीय राज्यों-कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु में मानव पर हाथियों के हमले का मुख्य कारण गन्ने के खेत बनते हैं जो उनका प्रिय भोजन होता है।

जंगलों में हाथियों के लिए चारे में कमी के कारण और देश में मवेशियों की भारी संख्या का होना भी एक महत्वपूर्ण कारक है। गांवों में पहले कुछ जमीन ‘‘परती’’ छोड़ दी जाती थी, जहां अनेक प्रकार की झाड़ियां उग कर उसे चरागाह का रूप दे देती थी। इस चरागाह में गांव के मवेशियों को पर्याप्त भोजन मिल जाता था। आज ऐसे चरागाह बनाने की परंपरा समाप्त हो चुकी है। इसलिए मवेशियों को चरने के लिए ग्रामीण जंगलों में भेज देते हैं जहां ये मवेशी उस चारे को खा जाते हैं जो हाथियों के लिए होता है। नतीजतन इन्हें खेतों की ओर रुख करना पड़ता है।

                                                

वैसे इनकी उग्रता बढ़ाने में वे उपाय भी उत्तरदायी हैं जो हाथी को गांव की और रुख करने से रोकने के लिए अपनाए जाते हैं। हाथी को हमला करने से रोकने और डराने के लिए सबसे अच्छा उपाय माना जाता है आतिशबाजी का प्रयोग करना। कई बार ऐसा होता है कि आतिशबाजी के धमाके से डर कर हाथियों के झुंड में भगदड़ मच जाती है। ऐसी स्थिति में वे गांव की ओर भागने लगते हैं जिससे काफी तबाही मच जाती है।

कई जगहों पर गांव वाले सौर ऊर्जा से संचालित बिजली के तारों से अपने खेतों और गांवों को घेर देते हैं। इन तारों से लगने बाले बिजली के तेज झटकों से हाथी का गुस्सा अपने चरम पर पहुंच जाता है, जिससे ग्रामीणों को फायदे से ज्यादा नुकसान ही उठाना पड़ता है। गांव से हाथियों को दूर रखने का एक और उपाय है, गांव की बाहरी सीमा पर गहरी खाई खोदना। यह उपाय वैसे तो काफी कारगर है लेकिन कभी-कभी जब कोई हाथी या उसका बच्चा इसमें गिर जाता है तब उनका दल वहां काफी उत्पात मचाता है। कई बार तो वे आस-पास की मिट्टी ढहा कर खाई को भर देते हैं तथा खेतों में चले आते हैं। वैसे यह विधि काफी मंहगी और श्रमसाध्य भी है।

                                                

मानव तथा हाथियों के बीच लगातार जारी इन संघर्षों का परिणाम हाथियों के शिकार के रूप में भी सामने आता है। एक अनुमान है कि सिर्फ दक्षिण भारत में प्रतिवर्ष 60 से ज्यादा हाथियों को मार डाला जाता है। वैसे हाथियों की मौत के विषय में काफी विवाद है। कुछ लोगों का मानना है कि हाथी भोजन के अभाव में मर रहे हैं तो कुछ विशेषज्ञ इनकी मौत के लिए गर्मी और ‘लू’ जैसी मौसमी घटनाओं को जिम्मेदार ठहराते हैं। इसके बावजूद अधिकांश लोगों का मानना है कि हाथियों की हत्या ‘हाथी दांत’ के लिए ही की जाती है। 

                                              

कभी-कभी बदले की भावना से भी इनकी हत्या कर दी जाती है। ऐसे हालात तभी उत्पन्न होते हैं जब ग्रामीणों को भारी क्षति होती है। जहां तक ‘लू’ और गर्मी से हाथियों के मरने की बात है, यह तथ्य आसानी से स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि ‘लू’ का असर तो सबसे पहले जंगल के नाजुक पशु-पक्षियों पर होना चाहिए, उसके बाद ही इस विशालकाय जानवर पर।

भारत में हाथियों की कम होती जा रही संख्या भी इसका एक बड़ा कारण है, हाथी दांत के लिए उनका शिकार। हमारे यहां हाथियों का भारी मात्रा में शिकार देसी बाजार में हाथी दांत की भारी मांग के कारण किया जाता है। कुछ वर्ष पूर्व तक तस्करी से काफी संख्या में हाथी दांत अफ्रीका देशों से आता था, लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इन तस्करों की धर-पकड़ और पशु-प्रेमियों के कड़े रुख के कारण अब काफी कम संख्या में हाथी दांत भारत में आता है। इसका सीधा असर भारतीय हाथियों पर पड़ा है। परिणामस्वरूप आज हाथियों अस्तित्व संकट में है।

भारतीय बाजार में हाथी दांत की कीमत अभी पांच से छह हजार रुपये प्रति किलो है। पैसे के लालच में ग्रामीण शिकारी हाथियों को मारकर उनका दांत बिचौलियों को बेच देते हैं। ये बिचौलिए तीन-चार सौ रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से इन दांतों को खरीद कर भारी कीमत पर बड़े व्यापारियों को बेंच देते।

प्रकृति ने हाथियों को ये दांत उनकी शोभा बढ़ाने के लिए दिए थे, जो आज उनकी मौत का सामान बन गए हैं। इन दांतों का देश के अनेक संपन्न लोग अपनी संपन्नता और समृद्धि का दिखावा करने के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल करते हैं। ऐसे लोगों के घरों में सुन्दर कलाकृतियों से लेकर कलमदान, पीकदान, श्रृंगारदान और कंघी तक हाथी दांत से बने होते हैं। घरों में हाथी दांत के सामान का प्रयोग करना एक ‘स्टेटस सिंबल’ बन चुका है। यह एक शर्मनाक बात है कि पृथ्वी के इस विशालकाय जीव के अस्तित्व को खतरे में डालकर भी ऐसे लोग संवेदनशील और सभ्य कहलाते हैं।

                                                       

अब वक्त आ गया है कि हाथियों के संरक्षण के लिए कारगर उपाय किए जाए। हाथियों के लिए भोजन एवं आवास के लिए जंगलों का क्षेत्रफल बढ़ाया जाए ताकि हाथी गांव और खेतों की ओर रुख करने की अपेक्षा जंगल में रहना ही श्रेयस्कर समझें। ऐसा होने पर ही ‘गज’ और ‘ग्राह’ की लड़ाई से ‘गज’ और ‘नर’ की लड़ाई बन चुके इस संघर्ष का अंत हो सकेगा।