
गन्ने की सूखी पत्तियों का उचित प्रबन्धन Publish Date : 06/05/2025
गन्ने की सूखी पत्तियों का उचित प्रबन्धन
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
आमतौर पर किसान उचित जानकारी के अभाव में गन्ने की पत्ती को खेत में ही जलाकर नष्ट कर देते हैं। इससे किसानों को आर्थिक और पर्यावरण की सेहत का नुकसान होता है। गन्ने की फसल में सूखी हुई पत्तियों की मात्रा गन्ने की प्रजाति, फसल की आयु, मिट्टी के प्रकार और मौसम आदि कारकों पर निर्भर करती है। अनुमान के अनुसार यह फसल के कुल बॉयोमास का लगभग 10 से 15 प्रतिशत तक हो सकती है।
ऐसे में किसान बन्धुओं से अपील है कि वह गन्ने की सूखी पत्तियों का उचित प्रबन्ध कर इसका जैविक खाद बनाए और भूमि की उर्वरता को बढ़ाने के साथ ही फसल की लागत और पर्यावरण को होने वाले नुकसान को भी बचाएं।
गन्ने की पत्ती को जलाने से होने वाले नुकसान
1. गन्ने की सूखी पत्तियों को खेत जलाने से भूमि के तापमान में वृद्वि होती है, जिससे भूमि के अंदर रहने वाले किसान मित्र कीट समाप्त हो जाते हैं।
2. भूमि में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या कफी कम हो जाती है।
3. भूमि की उर्वरा शक्ति का भी ह्रास होता है।
4. इससे भूमि की जल की मांग भी बढ़ जाती है।
5. पत्ती जलाने से हमारा वायुमण्डल प्रदूषित होता है।
6. खेत मे पत्ती को जलाने से किसानों को वैधानिक समस्या से भी जूझना पड़ सकता है।
गन्ने की पत्ती का उचित प्रबन्धन करने से प्राप्त होने वाले लाभ
1. गन्ने की पत्ती का उचित प्रबन्धन करने से मृदा में नमी का स्तर उचित बना रहता है, जिससे 25 से 30 प्रतिशत तक सिंचाई जल की बचत होती है।
2. पत्ती का प्रबन्धन करने से खरपतवारों पर नियंत्रण होता है जिससे खरपतवार नाशियों तथा निराई-गुड़ाई पर होने वाले खर्च की बचत होती है।
3. इससे खेत की मृदा में जीवांश पदार्थ की बढ़ोत्तरी होती है और लगातार दो वर्षों तक ऐसा करने से 0.2 से 0.3 प्रतिशत तक जीवांश की मात्रा खेत में वृद्वि हो जाती है।
4. खेत की मृदा में मित्र कीटों एवं सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है।
5. गन्ने की एक टन पत्ती से 5.4 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 1.3 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 3.1 कि.ग्रा. पोटाश के डालने के जितना लाभ प्राप्त होता है।
6. किसान को किसी भी प्रकार की वैधानिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है।
अतः समस्त गन्ना किसान भाईयों अपील है कि वह गन्ने की पत्ती को खेत में नहीं जलाए, अपितु अचित विधि से उसे खेत की मृदा में मिलाएं और खेत की उर्वरता को बढ़ाएं और साथ इसके माध्यम से होने वाले प्रदूषण से वायूमण्ड़ल की रक्षा करें।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।