
मानव सभ्यता को बचाने के लिये पृथ्वी संरक्षण जरूरी Publish Date : 26/04/2025
मानव सभ्यता को बचाने के लिये पृथ्वी संरक्षण जरूरी
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, जलवायु परिवर्तन से निपटने और जैव विविधता संकट को रोकने के लिए कार्रवाई अतिआवश्यक है। पृथ्वी दिवस जो पूरे विश्व में 22 अप्रैल को मनाया जाता है। पृथ्वी या सृष्टि के क्षण और स्थिरता के लिए जागरूकता पैदा करना इसलिये आवश्यक हो गया कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और वनों की कटाई के कारण प्रकृति एवं पर्यावरण पर गहरे संकट है। वर्ष 2025 में पृथ्वी दिवस की थीम है ‘हमारी शक्ति हमारा ग्रह’ जो यह स्पष्ट करता है कि जलवायु परिवर्तन और हमारे पर्यावरण के दुरूपयोग से निपटने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा की तत्काल आवश्यकता है।
हमारे स्वास्थ्य हमारे परिवारों आहार और हमारी धरती को एक साथ संरक्षित करने का समय आ गया है। पृथ्वी दिवस आधुनिक पर्यावरण आंदोलन की वर्षगांठ का प्रतीक है, जो पहली बार सन् 1970 में मनाया गया था। इसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील एवं पृथ्वी के संरक्षण के लिये जागरूक करना है। दुनिया में पृथ्वी के वनप्रति प्रदूषण एवं जैविक संकट को लेकर काफी चर्चा हो रही है।
190 से अधिक देशों को पृथ्वी दिवस में शामिल करते हुए एक वैश्विक आंदोलन बन गया है जो प्रवास्टिक प्रदूषण करणीय संसाधन चलर्निंग और कि जीवन जैसी प्रमुख पर्यावरणीय चिंताओं की ओर ध्यान आकर्षित करता है, सफाई अभियान, शैक्षिक अभियान और वकालत वैश्विक स्तर पर सरकारी संगठनों स्कूलों और समुदायों द्वारा की जाने वाली गतिविधियों में से है।
इसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण की दृष्टि से अधिक सही निर्णय लेने तथा पृथ्वी के अनुकूल नौतियों के पक्ष में खड़ा करता है और इस बात पर जोर देता है कि आपको करना होगा आप कहीं भी रहते हो, आप पृथ्वी को अधिक स्वस्थ और टिकवाने में योगदान दे सकते है और ऐसा करते हुए शांति की स्थापना एवं पूर्ण जीवन को सुदद बना सकते हैं।
पृथ्वी दिवस के माध्यम से ऐसे विचारों एवं जीवनशैली को संगठित करना है जिससे पर्यावरण निर्माता सरकारों को प्रेरित करे ताकि पर्यावरणीय स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए कानूनों और प्रथाओं में एवं नवाकरों और हरित प्रौरोगिकियों के विचार को काल देते हुए पर्यावरण को होने वाले नुक्सान को कम करने और भविष्य में स्थिरता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा सके।
आज विश्व भर में हर जगह प्रकृति का दोहन एवं दुरूपयोग किया जा रहा है जिसके कारण पृथ्वी पर अक्सर उत्तरी धूब की ठोस बर्फ कई किलोमीटर तक विचलन, सूर्य की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकने वाली ओजोन परत में छेद होना, भयंकर तूफान, सुनामी और भी कई प्राकृतिक आपदाओं का आना आदि ज्वलंत समस्या विकराल होती जा रही है, जिसके लिए मनुष्य है जिम्मेदार है। ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जो आज हमारे सामने है।
ये आपदाएँ पृथ्वी पर ऐसे ही आती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से जीव-जन्तु व वनस्पति का अस्तिव ही समाप्त जाएगा। जीव-जन्तु अंधे हो जाएंगे। लोगों की फसलें सूख्ने या झुलसने लगेगी और कैसर रोगियों की संख्या बढ़ जाएगी एवं अनेक नयी-नयी व्याधियों रह-रहकर जीवनन संकट का कारण बनते रहेंगे।
इसीलिये विश्व पृथ्वी दिवस भी आज ज्यादा प्रासंगिकता एवं उपयोगिता है। यह दीर्घकालिक परिवर्तन को संभव बनाने की दिशा में काम करेगा क्योंकि यह पर्यावरण जागरूकता की संस्कृति को विकसित करता है और वर्तमान और भविष्य के पेड़ों को पृथ्वी का सक्रिय संरक्षक बनने के लिए सशक्त बनाता है।
जिस पृथ्वी को हम माँ का दर्जा देते हैं उसे हम खुद अपने ही हाथों दूषित करने में कैसे लगे रहते हैं? आज जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा संकट बन गया है। अगर पृथ्वी के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाए तो मानव जीवन कैसे सुरक्षित एवं संरक्षित होगा? पृथ्वी है तो हम सब है इसलिये पृथ्वी अनमोल तथ्य है। इसी पर आकाश है, जल, अग्नि, और हवा है। इन सबके मेल से प्रकृति भी संरचना सुन्दर एवं जीवनमय होती है।
अपने-अपने स्वार्थ के लिए पृथ्वी पर आत्याचार रोकना होगा और कार्बन उत्सर्जन में कटौती पर ध्यान केंद्रित करना होगा। अतिशयोक्तिपूर्ण से औधोगिक प्रगति पर नियंत्रण करना होगा क्योंकि उनके कारण कार्बन और दूसरी तरह के प्रदूषण में बढ़ोतरी हुई है। वर्तमान परिक्ष्य में कई प्राकृतिक स्रोत एवं वनस्पति विलुप्त हो रहे है, जिससे पृथ्वी असंतुलित हो रही है। विलुप्त होते जीव-जंतु और बनस्पति की रक्षा के लिये विश्व-समुदाय को जागरूक करने के लिये ही इस दिवस को मनाया जाता है।
आज चिन्तन का विषय न तो रूस-यूक्रेन युद्ध है, न अमेरिका का टैरिफ बार है और न मानव अधिकार, न कोई विश्व को राजनैतिक घराना और न ही किसी देश की रक्षा का मामला है। चिन्तन एवं चिन्ता का एक ही मामला है लगातार एवं भीषण आकार ले रही गर्मी, सिकुड़ से जलस्रोत, विनाश की ओर धकेली जा रही पृथ्वी एवं प्रकृति के विनाश के प्रयास प्रदूषण, नष्ट होता पर्यावरण, दूषित गैसों से छिद्रित होती ओजोन की परत का हाल, प्रकृति एवं पर्यावरण का अत्यधिक दोहन ये सब पृथ्वी एवं पृथ्वीवासियों के लिए सबसे बड़े खतरे है और इन खतरों का आभास करना ही विश्व पृथ्वी दिवस का ध्येय है।
प्रतिवर्ष धरती का तापमान बढ़ रहा है। आबादी बढ़ रही है, जमीन कम पड़ रही है। हर चीज की उपलब्धता कम हो रही है। आक्सीजन की कमी हो रही है। साथ ही साथ हमारा सुविधावादी नजरिया एवं जीवनशैली पृथ्वी और उसके पर्यावरण एवं प्रकृति के लिये एक गंभीर खतरा बन कर प्रस्तुत हो रहा है। जल, जंगल और जमीन इन तीन से पृथ्वी और प्रकृति निर्माण है। यदि यह तत्व न हो तो पृथ्वी और प्रकृति इन तीन तथ्यों के बिना अधूरी है।
विश्व में ज्यादातर समृद्ध देश धनी माने जाते हैं जहां इन तीनों तत्थों का बहुल्य है। आधुनिकीकरण के इस दौर में जब इन संसाधनों का अंधाधुन्ध दोहन हो रहा है तो ये तत्व भी खतरे में पड़ गए हैं। अनेक शहर पानी की कमी से परेशान है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।