एक चमत्कारिक ‘‘आवाज’’      Publish Date : 17/04/2025

                       एक चमत्कारिक ‘‘आवाज’’

                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं इं0 कर्तिकेय

अब बिना हेडफोन लगाए मोबाइल की ध्वनि सीधे आपके कानों में पहुंच सकेगी और आसपास के दूसरे किसी आदमी को सुनाई भी नहीं देगी। यह शोध ध्वनि विज्ञान को अलग स्तर पर पहुंचा सकता है।

नित नए आविष्कार संचार, मनोरंजन और संवाद को लेकर हमारे अनुभव निरंतर बदलते जा रहे हैं। ऐसा ही एक नवाचार है ‘‘ऑडिबल एन्क्लेव’’, जो बिना किसी अतिरक्ति डिवाइस के आपके कान तक आवाज पहुंचा देता है और यह किसी दूसरे व्यक्ति को सुनाई भी नहीं देती है, यानी सार्वजनिक जगहों पर भी आप बिना किसी हेडफोन के गोपनीय तरीके से अपने मोबाइल या लैपटॉप की आवाज सुन सकते हैं।

                                       

ऑडियो इंजीनियरिंग को अलग स्तर पर ले जाने वाली इस नई तकनीक को पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनीवर्सिटी के इंजीनियरिंग कॉलेज ‘‘पेन स्टेट कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग’’ के वैज्ञानिकों ने ईजाद किया है। यह व्यक्तिगत रूप से सुनने के अनुभव को नया आयाम देती है। हालांकि अभी इसके व्यावहारिक उपयोग में कुछ चुनौतियां बाकी हैं, लेकिन आने वाले वर्षों में यह ध्वनि संचार में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। यह शोध ‘‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’’ में प्रकाशित हुआ है।

क्या है ‘‘ऑडिबल एन्क्लेव’’

                                               

यह एक तरह से ध्वनि का बुलबुला है, जो इसे सीधे लक्षित स्थान तक पहुंचाता है। शोध टीम के प्रमुख और विश्वविद्यालय में ध्वनि विज्ञान के प्रोफेसर यून जिंग के अनुसार, उन्होंने ध्वनि के स्थानीयकृत पर्किट्स बनाकर सुनने की सीमा को एक सटीक बिंदु पर निर्धारित कर दिया, यानी ध्वनि उत्पन्न होने वाले स्रोत से लेकर सुनने वाले व्यक्ति के बीच एक बुलबुला बना दिया। इस तकनीक को ही ‘‘ऑडिबल एन्क्लेव’’ कहा जाता है। एक एन्क्लेव में एक श्रोता ही ध्वनि सुन सकता है। आस-पास खड़े अन्य लोग नहीं सुन सकते हैं। भले ही वे किसी बंद स्थान, वाहन या सीधे ऑडियो स्रोत के सामने खड़े हों।

कैसे काम करती है तकनीक ‘‘ऑडिबल एन्क्लेव’’

दो नॉन-लीनियर अल्ट्रासोनिक बीम उत्सर्जित करने पर बनते हैं, जिसमें ध्वनि को केवल दोनों अल्ट्रासोनिक बीम के क्रॉस प्वाइंट पर ही सुना जा सकता है, यानी केवल एक किरण से ध्वनि नहीं सुनाई देती है। ऐसे में यदि किरण किसी मानव कान से गुजरती भी है तो सुनाई नहीं देती है। केवल वहीं पर सुनाई देती है, जहां पर दोनों किरणें मिलती हों। इसके लिए वे एक ध्वनिक मेटासर्फेस लेंस के साथ युग्मित दो अल्ट्रासाउंड ट्रांसड्यूसर का उपयोग करते हैं। इससे निकलने वाली किरणें स्वतः ही एक निश्चित बिंदु पर प्रतिच्छेद करती है। उस बिंदु पर खड़ा व्यक्ति ध्वनि सुन सकता है। ध्वनि को एक प्रकार से निर्देशित कर दिया जाता है। यह ठीक वैसे ही है, जैसे टॉर्च की रोशनी पड़ती है।

यह बीच में आने वाली बाधाओं से भी प्रभावित नहीं होती है। शोध टीम में शामिल वैज्ञानिक जिया-जिन झोंग के अनुसार, यह मानव सिर जैसी बाधाओं को भी पार कर सकती है। परीक्षण के दौरान उन्होंने डमी सिर का उपयोग किया। उसके कानों में आवाज रिकॉर्ड करने के लिए माइक्रोफोन लगाया गया था, लेकिन कोई ध्वनि नहीं पहुंची और आसानी से किरण तय बिंदु पर पहुंच गई। यह एक प्रकार का आभासी हेडसेट है। अभी यह 60 डेसिबल ध्वनि को एक मीटर की दूरी तक स्थानांतरित कर सकता है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि अल्ट्रासाउंड की तीव्रता बढ़ाकर इसकी दूरी और ध्वनि को बढ़ाया जा सकता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।