भारतीय रोटी का सफर      Publish Date : 13/04/2025

                          भारतीय रोटी का सफर

                                                                                                                      सरिता ठाकुर एवं शीतल शर्मा

यादों में महकती रोटी भारतीय आहार की मुख्य कड़ी मानी जाने वाली रोटी अब विदेश में विशिष्ट व्यंजन के रूप अपनी पहचान बना रही है। रसोई से लेकर रेस्त्रां तक रोटी के इस सफर को साझा कर रही हैं, हमारी डायटीशियन श्रीमति सरिता ठाकुर-

                                       

मिट्टी के चूल्हे में कम होती लकड़ियों पर सिंकती रोटियों की सुगंध के साथ दादी मां की कहानियों का रोमांच आज भी हममे से अधिकतर लोगों की यादों में कैद है। इतने वर्षों बाद भी चूल्हों में पकी रोटियों पर लगी राख और धुएं की सौंधी खुशबू का आज तक कोई जोड़ नहीं। ऐसे रोटियां मात्र एक भोजन ही नहीं, बल्कि पूरा का पूरा एक अनुभव का पिटारा हैं, परंपरा से जुड़ाव हैं और उन पकती रोटियों के साथ साझा होता वह दुलार हैं, जो इन्हें विशिष्टतम बनाता है। रोटी की यह यादें केवल हम भारतीयों के दिल-दिमाग में ही नहीं, बल्कि विदेश जा बसे अनेक भारतीय मूल के लोगों के भी जेहन में वैसी ही ताजा है और वर्तमान में कई हजार किलोमीटर लंबी दूरी के बीच रोटी पुल भी बनती जा रही है। तभी तो सामान्य भोजन की थाली का हिस्सा रहने वाली रोटी को बड़े-बड़े अंतरराष्ट्रीय रेस्त्रां के मेन्यू में भी अब शामिल किया जा रहा है।

जैसा देश वैसा भेष का मूलमंत्र

                                                   

भारतीय घरों की रसोई से शुरू हुई रोटी की यात्रा बाद में कब ढाबा संस्कृति का केंद्र बन गई, पता ही नहीं चला, जहां लोगों को यात्रा के दौरान देसी घरेलू स्वाद वाला भोजन मिलता था। जैसे-जैसे भारत में रेस्त्रां संस्कृति लोकप्रिय हुई, तंदूरी रोटी और नान मेन्यू के रूप से शामिल होती गई। जब भारतीयों ने विदेश में अपनी जड़ें जमाई, तो फिर रोटी दुनियाभर में फैल गई। आज अंतरराष्ट्रीय रसोई से लेकर सुपरमार्केट और फ्यूजन व्यंजनों में रैप के एक स्वस्थ विकल्प के रूप में रोटी मौजूद है। बात अगर रोटी के आरंभ की करें तो रोटी का प्रथम निर्माण करने वाला ऐसा कोई मुख्य बिंदु तय करना असंभव है। जैसे जैसे संस्कृति आगे बढ़ती गई, उसके अनुरूप ही रोटी का अंदाज भी होता चला गया। अपने देश में ही तमाम तरह की रोटियां महकती हैं।

महाराष्ट्र में मसालेदार मल्टीग्रेन रोटी थाली-पीठ है तो कर्नाटक में चावल के आटे से बनने वाली अक्की रोटी है। राजस्थान व गुजरात में बाजरे की रोटी और पंजाब की मक्के की रोटी का स्वाद बेजोड़ है तो उत्तर भारत की रुमाली रोटी, तवे की रोटी देशभर में स्वाद की विविधता की पहचान हैं। इन स्थानों के लोग जब जबरन या काम की तलाश में प्रवास पर निकले तो अपने अंदाज में व उस स्थान पर उपलब्ध सुविधाओं के हिसाब से ही रोटी बनाने लगे। चार कोस पर बदले पानी से बढ़कर आज प्रति चार कोस पर नाम बदल रही रोटी अब एक सहज, भोजन का विकल्प बनती जा रही है।

सामान्यतः गेहूं के आटे और पानी की मदद से गूंथे आटे से बनने वाली रोटी जब मलेशिया पहुंची तो कनाई रोटी बन गई, गुबाना पहुंचकर शैगी रोटी, श्रीलंका में कोट्टू रोटी, केन्या में चपाती बनकर लोगों की स्वाद ग्रधियों को तृप्त करती आ रही है। मल्टीटास्किंग के वर्तमान दौर में स्वाद और सेहत की जुगलबंदी का आसान तरीका बनती रोटी न सिर्फ सामान्य थाली में है बल्कि इतालवी सैलेड पेजानेला, फ्रेंच टोस्ट, स्पैनिश डिश कीसडिला, टैकोज और पित्जा के बेस में भी खूब पसंद की जा रही है। अब आलम तो यह है कि विदेशों के सुपरमार्केट में इसके फ्रोजन बर्तन धड़ल्ले से बिक रहे हैं, तो भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है।

जारी है प्रयोग

                                            

पिछले कुछ वर्षों के दौरान, रोटी बनाने के मेरे तरीके में काफी बदलाव आया है, क्योंकि मैंने रोटी बनाने की अपनी तकनीक को और बेहतर बनाने पर काम किया। है। ऐसा नहीं है कि गोआ में रेस्त्रां है तो वहां खाने में रोटी की कोई जगह नहीं। सामान्य तवा रोटी से लेकर रोटी बेस वाले पिज्जा, टैकोज आदि की यहां भी मांग है। जिसके मूल में है ठीक ढंग से तैयार की गई रोटी। इसके लिए मैंने मूल बातों पर ध्यान केंद्रित किया है। समय के साथ मुझे सही तरीके से आटा गूंधने, उसे कुछ देर ढंककर रखने और बेलने को सही प्रक्रिया का महत्व समझ आ गया है। मैंने अलग-अलग आटे के साथ भी प्रयोग किया और कभी-कभी बनावट और स्वाद को बढ़ाने के लिए घी या दही जैसी सामग्री भी डाली है और इसके साथ ही तवे की सही आंच और कितनी देर तक रोटी को तवे पर और फिर सीधी आंच पर पकाना है. इन जैसी सामान्य किंतु अति महत्वपूर्ण बातों पर पूरा ध्यान दिया है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मेरी बनाई प्रत्येक रोटी खाने वाले को पूरा स्वाद परोस सके।

जिस तेजी से भारत सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय रेस्त्रां की पहुंच और संख्या बढ़ रही है. अब भारतीय रोटी में निश्चित रूप से नवाचार और परंपरा दोनों शामिल हो रही हैं। जाहिर है, सेहत के प्रति सजग हो रहे लोगों के लिए यह स्वाद और स्वास्थ्य का मिश्रित संगम है। साथ ही इसको बनाने के तरीकों में आने वाले नित नवाचार भी रोटी को आज की पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त है। हां, अगर आपको गोट मटोल गर्मागर्म भाप भरी रोटी की खुशबू बचपन की यादों में ले जाए, तो आपकी इस भूख तो कोई और मिटा नहीं सकता।

लेखकः श्रीमति सरिता ठाकुर एक जानीमानी डायटीशिन एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।