खेती में युवाओं की रूचि से होगा कायाकल्प      Publish Date : 11/04/2025

            खेती में युवाओं की रूचि से होगा कायाकल्प

                                                                                        प्रोफसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

यदि खेती देश में आर्थिक संपदा तथा बौद्धिक संतुष्टि लाने लायक हो जाएगी तो युवा स्नातक खेती को एक व्यवसाय के रूप में अपनाने में नहीं हिचकिचाएंगे। निजी कंपनियों या सहकारी समितियों के माध्यम से कृषि व्यापार तथा कृषि क्लिनिक चलाने के लिए खेती, पशुपालन तथा गृह विज्ञान के स्नातकों के समूहों की प्रोत्साहित करना होगा। इससे कृषि को ज्ञान आधारित बनाने में मदद मिलेगी। गृह विज्ञान के स्नातक बच्चों और महिलाओं समेत स्थानीय जनता की पौष्टिक सुरक्षा में सुधार में मदद कर सकते हैं।

                                                    

पौष्टिक पदार्थों की कमी को पूरा करने के लिए पौष्टिक सब्जियां ही एक उचित समाधान है। इसके लिए कृषि को आय अर्जित करने और बुद्धि का उपयोग करने वाला क्षेत्र बनाना होगा। इसके लिए एक ऐसी रणनीति बनानी होगी, जिससे प्रत्येक कृषि जलवायु क्षेत्र में सभी सम्बन्धित संस्थानों का एक समूह काम करे। यह निहायत जरूरी है।

राजस्थान के दूर-दराज के इलाकों में सूखे के वर्षों में रोटी के लाले पड़ जाते हैं और कुपोषण की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है। ऐसी स्थितियों में जीन बैंक, बीज बैंक, अनाज बैंक तथा जल बैंक युक्त सामुदायिक पोषण प्रबंध और जल सुरक्षा व्यवस्था तंत्र विकसित करने के लिए स्थानीय समुदाय का सहयोग लेना अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है।

राजस्थान के लिए एक अन्य जरूर अंतर्विविशेषज्ञों की टोली के द्वारा सूखा संहिता, बाढ़ संहिता और संहिताएं कभी बाढ़, कभी सूखे और कभी-कभी दोनों ही स्थितियों में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए आदि के लिए मार्गदर्शक साबित हो सकती है।

राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में मौसम संहिता बहुत जरूरी है, क्योंकि कई वर्षों के अन्तराल के बाद कुछ क्षेत्रों में कुछ ही दिनों में अचानक भारी वर्षा बाढ़ के हालात पैदा कर देती है और कई लोगों की जान भी चली जाती है। कुछ वर्षों में लगातार वर्षा से उपयुक्त पेड़ों के पौधरोपण से सूखे का मुकाबला किया जा सकता है। राज्यस्तरीय मौसम का प्रयास उत्पादन बढ़ाने तथा अच्छे मौसम में आय बढ़ाने में हो सकता है और असामान्य मौसम में होने वाली हानियों को कम किया जा सकता है।

                                               

सूखा तथा बाढ़ संहिता में विभिन्न मौसमों में वैकल्पिक फसल उगाने का प्रावधान किया जा सकता है। यह प्रयास तत्काल किए जाने की जरूरत है, क्योंकि आने वाले वर्षों में वैश्विक स्थितियों और मौसम में बदलाव के कारण असामान्य मौसम की परिस्थितियां ज्यादा आने की संभावना है। राजस्थान में तत्काल कृषि तथा ग्रामीण आबादी के लिए मौसम प्रबंध केंद्र की स्थापना करने की जरूरत है। अपनी कृषि के तकनीकी उनयन के लिए राजस्थान को सूचना संचार तकनीकी, बायोतकनीकी, अंतरिक्ष तकनीकी, नाभिकीय तकनीकी तथा नैनी तकनीकी जैसी नई तकनीकों को बढ़ावा देना चाहिए।

जिन अन्य क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, वह है प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, खासकर जैनेटिक संपदा। क्षेत्र में उपयुक्त खाद्यान तथा बारे की फसलों के लिए जैनेटिक गार्डन विकसित किया जाना चाहिए। इससे स्थानीय समुदायों की अपने पर्यावरण, आर्थिक, और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप पौधों के चयन में मदद मिलेगी।

राजस्थान के पास मवेशियों का प्रचुर भंडार है जिसमें देशी गाएं, भैंस, बकरी, भेड़, मुर्गियों, ऊंट, घोड़े तथा सुअर आदि प्रमुख है। पशुओं की किस्म में सुधार, रोगों पर नियंत्रण, चारे तथा दुग्ध उत्पादन आदि पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। मछलियों के आहार, प्रजनन और विपणन पर ध्यान देकर राजस्थान में उनका उत्पादन 18,000 टन से बढ़ाकर 50,000 टन किया जा सकता है। सूरतगढ़ के सरकारी फार्म को राज्य में गाय, भैंस, भेड़ और अन्य पशुओं के प्रजनन के लिए लिविंग हेरिटेज जीन बैंक में बदला जा सकता है।

ग्रामीण गोदाम, कोल्ड स्टोरेज सुविधा, गांवों में परिवहन व्यवस्था, किसानों की गुणवत्ता व सुधार की जानकारी देकर, इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र में जूट और चारे की उन्नत किस्म उगाकर, प्रचुर दाल उत्पादन क्षेत्र बांसवाड़ा, धौलपुर, अलवर, झालावाड़ आदि क्षेत्रों में दालों का उत्पादन बढ़ाकर खेती में विविधता तथा उसे लाभप्रद बनाने के जैसे उपाय किए जा सकते हैं। बाजार में मांग से किसानों को जोड़ने में ग्राम चौपाल, इंटरनेट सेलफोन व्यवस्था कारगर साबित हो सकती है। इसके लिए राजस्थान कौंसिल का गठन उपयोगी हो सकता है।

जरूरत है खेती में उच्य तकनीक प्रयुक्त करने की और युवाओं में खेती को व्यवसाय बनाने की रूचि जाग्रत करने की, इसी से राजस्थान में कृषि के भविष्य के प्रति नया विश्वास पैदा होगा। जमीन पर आबादी का दबाव बढ़ रहा है। इस कारण छोटे किसान खेती छोड़कर जमीन बेचने में लगे हैं, इसलिए जरूरी है कि ऐसी नीति बनाई जाए कि वे भूमि की बिक्री के बाद अन्य व्यवसाय अपनाने में सक्षम हो पाएं।

                                                

सेज के मामले में किसान परिवारों को सेज क्षेत्र में विशेष सुविधाएं और समर्थन दिया जाना चाहिए। धनाड्य उद्योगपतियों के बजाय छोटे किसानों को समर्थन और प्रोत्साहन की ज्यादा जरूरत है। यह दूसरी हरित क्रांति की शुरूआत हो सकती है।

ग्रामीण चिकित्सा में सुधार के लिए

गरीबी व पिछड़े राज्यों के लिए अधिकाधिक मोबाइल हेल्थ क्लीनिक शुरु करना बेहद आवश्यक है, ताकि घर-घर लोगों को स्वास्थ्य सेवा मिल सके।

किसी भी राष्ट्र की समृद्धि वहां के लोगों के स्वास्थ्य पर निर्भर करती है, क्योंकि सेहतमंद लोग ही अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा सकते हैं। केंद्रीय बजट वर्ष 2023-24 में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 89,155 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो पिछले बजट से 13 प्रतिशत अधिक है। ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी (आरएचएम)-2020 के अनुसार, देश में 1,57,921 उप-स्वास्थ्य केंद्र, 30,813 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 5,649 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 1,193. अनुमंडलीय अस्पताल और 810 जिला अस्पताल हैं।

आराएचएस के अनुसार, देश भर में क्रमशः 24 प्रतिशत एसस्सी, 29 प्रतिशत पीएचसी व 38 प्रतिशत सीएचसी की कमी बताई गई है। अभी 10,423 पीएचसी सप्ताह में 24 घंटे सेवाएं दे रहे हैं। सवाल है कि इतने स्वास्थ्य केंद्र होने के बावजूद ग्रामीण उप-स्वास्थ्य केंद्रों का हाल बुरा क्यों है? क्या जर्जर, अभावग्रस्त, निष्क्रिय और मृतप्राय हैं।

उप-स्वास्थ्य केंद्र के भरोसे ग्रामीणों का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है।

सच तो यह है कि इन उप-स्वास्थ्य केंद्रों पर केवल टीकाकरण और किन्हीं विशेष अवसरों पर महज कागजी खानापूर्ति के लिए ही या स्वास्थ्य सेवक उपस्थित होते हैं।

बाकी दिनों में ये उप-स्वास्थ्य केंद्र पूरी तरह से ठप रहते हैं। चिकित्सा की कोई सुविधा न होने के कारण लोग ग्रामीण स्तर पर इलाज करने वाले अवैध चिकित्सकों की शरण में जाते हैं और कभी-कभार उनकी जान जोखिम में पड़ जाती है। प्रखंड स्थित पीएचसी जाने के लिए ग्रामीणों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। यह जरूर है कि प्रसव व परिवार नियोजन हेतु प्रखंड स्तर पर सरकार की अच्छी व्यवस्था है, जहां जाकर बच्चा-जच्चों, दोनों ही सुरक्षित व स्वस्थ होकर घर लौटते हैं।

आशा दीदी भी गर्भवती महिलाओं की सेहत की सुरक्षा के बारे में घर-घर जाकर जानकारियां देती हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे कई स्वास्थ्य केंद्र केवल दिखावा है और इससे अधिक कुछ नहीं हैं।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पश्चिमी दियारा के लोगों का स्वास्थ्य भी भगवान भरोसे है। जिले के साहेबगंज और पारु प्रखंड के हजारों लोगों को इलाज के लिए प्रखंड स्थित पीएचसी जाने के लिए 15-20 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। यदि पीएचसी में इलाज नहीं हुआ, तो उन्हें जिले के निजी अस्पतालों में महंगा इलाज कराना पड़ता है। पारू प्रखंड स्थित पीएचसी में एक्सरे व अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं है।

दवा एवं जांच कराने के लिए भी अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। कई ग्रामीणों की शिकायत है कि आयुष्मान कार्ड रहते हुए भी उन्हें इसलिए शहरों का रुख करना पड़ता है, क्योंकि गांव के स्वास्थ्य केंद्र में नाममात्र की सुविधा होती है। शहर के अस्पतालों में भी कार्ड से सभी बीमारियों का इलाज नहीं होता है। फिर शहर आने-जाने का खर्च भी अलग लगता है। उनका कहना है कि पीएचसी का संचालन नियमित होना चाहिए, ताकि निर्धन व बेबस लोगों का इलाज हो सके।

हेल्थ इंडेक्स के मुताबिक, स्वास्थ्य के मामले में बिहार और उत्तर प्रदेश का सबसे अधिक बुरा हाल है। इंडेक्स में 20वें एवं 21वें स्थान पर बिहार व उत्तर प्रदेश हैं, जबकि शीर्ष तीन राज्यों में केरल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र हैं।

                                              

साफतौर पर कहा जा सकता है कि भारत में स्वास्थ्य के मामले में अभी और काम करने की जरूरत है। बिहार में 10 मोबाइल हेल्थ क्लीनिक शुरू किए गए है, जिनमें से तीन को महिला स्वास्थ्य सेवा के लिए तैयार किया गया है। मोबाइल हेल्थ क्लीनिक सराहनीय कदम है। गरीबी व पिछड़े राज्यों के लिए अधिकाधिक मोबाइल हेल्थ क्लीनिक शुरू करना बेहद आवश्यक है, ताकि घर-घर लोगों को स्वास्थ्य सेवा मिल सके।

ग्रामीण भारत में सेहत व सुरक्षा की जवाबदेही पीएचसी की अधिक है। यदि उप-स्वास्थ्य केंद्रों को आधुनिक सुविधाओं से लैस कर दिया जाए, तो निस्संदेह आम नागरिकों की सेहत सुधर जाएगी। स्थानीय स्तर पर भी जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों व समाजसेवियों को उपयुक्त स्वास्थ्य सेवा मुहैया करने के लिए आगे आना चाहिए। आम आदमी स्वस्थ होगा, तो देश खुशहाल होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।